तीन तलाक कानून की समीक्षा करने को तैयार हुआ सुप्रीम कोर्ट, केंद्र सरकार को भेजा नोटिस
सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार के तीन तलाक कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करने को तैयार हो गया है। कोर्ट कानून की समीक्षा करेगा और उसने मामले पर केंद्र सरकार को नोटिस भी जारी किया है। याचिकाएं स्वीकार करने पर हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि अगर किसी धार्मिक प्रथा (दहेज या सती) को अपराध घोषित किया गया है तो उसे अपराध की सूची में क्यों नहीं रखा जाए।
कानून के खिलाफ दायर की गईं थी तीन याचिकाएं
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक के खिलाफ तीन याचिकाएं दायर की गईं थीं। उलेमा-ए-हिंद, केरल जमीयतुल उलेमा और आमिर रशादी मदनी ने अलग-अलग याचिकाओं में इसे चुनौती दी है। इन याचिकाओं में कहा गया है कि क्योंकि मुस्लिम पति द्वारा पत्नी को तत्काल तीन तलाक देने को पहले ही अमान्य और गैरकानूनी घोषित किया जा चुका है, इसलिए इस कानून की कोई जरूरत नहीं है। हिंदू या अन्य समुदायओं में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।
याचिकाकर्ताओं की दलील, कानून का एकमात्र मकसद मुस्लिम पतियों को सजा देना
तीन तलाक कानून पर सवाल उठाते हुए इन याचिकाओं में कहा गया है कि इसका एकमात्र मकसद मुस्लिम पति को सजा देना है और इसे असंवैधानिक घोषित किया जाना चाहिए। विपक्षी नेता भी कानून के खिलाफ यही तर्क देते रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने ही दिया था केंद्र सरकार को कानून बनाने का आदेश
बता दें कि 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने ही ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए तत्काल तीन तलाक को अवैध करार दिया था। कोर्ट में सभी पक्ष, याचिकाकर्ता महिलाएं, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और केंद्र सरकार, इस बात पर एकमत रहे थे कि ये एक गलत प्रथा है, जिसके बाद कोर्ट ने अपना ये फैसला सुनाया था। तब कोर्ट ने केंद्र सरकार को 6 महीने के अंदर इस पर कानून बनाने को कहा था।
पहले कार्यकाल में बिल को संसद से पास कराने में नाकाम रही मोदी सरकार
मोदी सरकार मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) बिल नाम से तीन तलाक पर बिल लेकर आई। हालांकि सरकार अपने पहले कार्यकाल में इसे संसद से पास कराने में सफल नहीं रही। सरकार ने इस पर अध्यादेश लाकर काम चलाया और एक साल के अंदर तीन अध्यादेश लाए गए। लेकिन अपने दूसरे कार्यकाल के पहले ही सत्र में मोदी सरकार इसे संसद में पास कराने में कामयाब रही और अब ये कानून बन चुका है।
तत्काल तीन तलाक पर 3 साल तक की सजा
तीन तलाक कानून में तत्काल तीन तलाक यानि तलाक-ए-बिद्दत को दंडनीय अपराध बनाते हुए पति को अधिकतम 3 साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान किया गया है। मजिस्ट्रेट को पीड़िता का पक्ष सुनने के बाद सुलह कराने और जमानत देने का अधिकार दिया गया है। वह पीड़िता का पक्ष सुनकर आरोपी को जमानत भी दे सकता है। बता दें कि तलाक-ए-बिद्दत प्रथा मुख्यतौर पर सुन्नी मुस्लिमों के हनफी समुदाय में प्रचलित थी।