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    सालों तक 'गद्दार' समझे जाने वाले ISRO के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायणन को मिला न्याय

    सालों तक 'गद्दार' समझे जाने वाले ISRO के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायणन को मिला न्याय
    लेखन भारत शर्मा
    Aug 12, 2020, 04:52 pm 1 मिनट में पढ़ें
    सालों तक 'गद्दार' समझे जाने वाले ISRO के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायणन को मिला न्याय

    जासूसी के फर्जी मामले में पिछले 26 सालों से न्याय मिलने की उम्मीद में बैठे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायणन (79) को आखिरकार न्याय मिल गया है। केरल सरकार ने मंगलवार को उन्हें जासूसी मामले के निपटारे के लिए 1.30 करोड़ रुपये का अतिरिक्त मुआवजा दिया है। केरल पुलिस ने नारायणन को इस मामले में फंसा दिया था। केरल राज्य कैबिनेट ने पिछले साल दिसंबर में उन्हें मुआवजा देने की मंजूरी दी थी।

    जासूसी मामले में गिरफ्तार हुए थे नंबी नारायणन

    HT के अनुसार ISRO जासूसी मामला दो वैज्ञानिकों और दो मालदीवियन महिलाओं सहित चार अन्य लोगों द्वारा दुश्मन देशों को काउंटी के क्रायोजेनिक इंजन प्रौद्योगिकी के गोपनीय दस्तावेजों और जानकारी के हस्तांतरण से संबंधित है। नंबी नारायणन पर साल 1994 में दो कथित मालदीव के महिला खुफिया अधिकारियों को रक्षा विभाग से जुड़ी गुप्त जानकारी लीक करने का आरोप लगा था। नारायणन को इस मामले में गिरफ्तार भी किया गया था।

    इस तरह से चली थी मामले की जांच

    नवंबर 1994 में नंबी नारायणन की गिरफ्तारी के बाद जांच CBI को सौंपी गई थी। इसमें CBI कोई सबूत नहीं खोज पाई थी। 50 दिन बाद नारायणन को जमानत पर रिहा कर दिया गया। अप्रैल 1996 में CBI ने मामले को फर्जी मानते हुए बंद करने की सिफारिश की। मई में मजिस्ट्रेट अदालत ने मामला खारिज कर दिया, लेकिन माकपा ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी। साल 1998 में सपु्रीम कोर्ट ने भी मामले को खारिज कर दिया।

    मामला खारिज होने के बाद नारायणन ने लड़ी सम्मान की लड़ाई

    साल 1998 में मामला खारिज होने के बाद नंबी नारायणन ने साल 1999 में मुआवजे के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया। तीन साल की सुनवाई के बाद 2001 में NHRC ने केरल सरकार को 10 लाख रुपये मुआवजा देने को कहा। इसे सरकार ने हाईकोर्ट में चुनौती दे दी। साल 2012 में हाईकोर्ट ने NHRC के फैसले को बरकरार रखा था। इसके बाद नारायणन ने आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी।

    सुप्रीम कोर्ट ने दिया था नारायणन को 50 लाख की अंतरिम राहत देने का आदेश

    नंबी नारायणन की याचिका पर सुनवाई करते हुए साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने तिरुवनंतपुरम सत्र न्यायालय को दोषियों के खिलाफ मामला दर्ज कराने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि फर्जी मामले में नारायणन की गिरफ्तारी 'अनावश्यक' थी और उन्हें फंसाया गया था। कोर्ट ने उन्हें 50 लाख की अंतरिम राहत देेने का आदेश भी दिया था और नारायणन को इससे ज्यादा के हकदार बताते हुए अतिरिक्त मआवजे के लिए निचली अदालत जाने को कहा था।

    अदालत के समक्ष तय किया गया समझौता

    सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद केरल सरकार ने पूर्व मुख्य सचिव के जयकुमार को एक सटीक मुआवजा राशि तय करने की जिम्मेदारी दे दी थी। उसके बाद उन्होंने अदालत के सामने सभी सुझाव प्रस्तुत किए गए और 1.30 करोड़ का समझौता किया गया।

    धन नहीं बल्कि अन्याय के खिलाफ थी यह लड़ाई- नारायणन

    केरल सरकार द्वारा 1.30 करोड़ रुपये की मुआवजे राशि का चेक स्वीकार करते हुए नंबी नारायणन ने कहा, "मैं बहुत खुश हूं। मेरे द्वारा लड़ी गई यह लड़ाई केवल धन के लिए नहीं है। मेरी लड़ाई अन्याय के खिलाफ थी।" बता दें कि गिरफ्तारी के दौरान नारायणन को काफी यातनाएं दी गई थी। बेकसूर साबित नहीं होने तक उन्हें गद्दार कहा जाने लगा था। मामले में फैसला आने के बाद पिछले साल उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।

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