पूर्वी-मध्य रेलवे: RPF ने पिछले पांच साल में 3,600 बच्चों को बचाया
पढ़ाई और अन्य घरेलू मुद्दों को लेकर परिजनों का बच्चों को डांटना आम बात है, लेकिन बदलते दौर के साथ अब बच्चों को परिजनों की डांट बर्दाश्त नहीं हो रही है। ऐसे में वह बिना बताए घर छोड़कर भागने जैसा कदम उठाने लगे हैं। यही कारण है कि पूर्वी-मध्य रेलवे जोन के स्टेशनों पर रेलवे सुरक्षा बल (RPF) के जवानों ने पिछले पांच सालों में विभिन्न रेलवे स्टेशनों और ट्रेनों से घर से भागे 3,600 बच्चों को बचाया है।
परिजनों के क्रिकेट खेलने से रोकने पर दो नाबालिग भाइयों ने छोड़ा घर
न्यू इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार गत 2 फरवरी को गया निवासी एक 13 वर्षीय नाबालिग ने परिजनों द्वारा क्रिकेट खेलने से रोकने पर अपने 12 वर्षीय भाई के साथ घर छोड़ दिया। इसके बाद वह गया रेलवे स्टेशन पर पटना स्पेशल MEMU ट्रेन में सवार हो गए। हालांकि, स्टेशन पर तैनात RPF के जवानों ने जांच के दौरान दोनों को अकेला पाकर ट्रेन से उतार लिया और पूछताछ करने के बाद उनके परिजनों को सूचना दी।
मां के डांटने पर किशोरी ने छोड़ा घर
RPF के अनुसार गत 21 जनवरी को घर में मां के डांटने पर झारखंड के डाल्टनगंज जिला निवासी 15 वर्षीय किशोरी बिना बताए घर से निकल गए और मुंबई जाने वाली ट्रेन में सवार हो गई। एक अन्य 15 वर्षीय किशोरी भी मां की डांट से नाराज होकर दिल्ली की ट्रेन में सवार हो गई। उसी दिन बेगुसराय में 10 और 11 वर्षीय दो बालक घर से भागकर बेगुसराय स्टेशन पहुंच गए। इन सभी को RPF जवानों ने बचा लिया।
RPF ने साल 2017 में सबसे ज्यादा नाबालिगों को बचाया
पूर्वी-मध्य रेलवे मुख्यालय हाजीपुर के डाटा के अनुसार 2016 से 2020 के बीच RPF के जवानों ने जोन के विभिन्न रेलवे स्टेशन और ट्रेनों से घर से भागे कुल 3,674 नाबालिगों को बचाया है। इनमें 2016 में 364 (310 बालक और 54 बालिका), 2017 में सबसे अधिक 1,309 (1,128 बालक और 181 बालिका), 2018 में 854 बच्चे, 2019 में 730 और 2020 में घर से भागे सबसे कम 317 बच्चों को बचाकर परिजनों के सुपुर्द किया है।
2020 में ट्रेन संचालन बंद होने से आई कमी
हाजीपुर में मुख्य सुरक्षा आयुक्त और महानिरीक्षक (IG) एस मयंक ने बताया कि 2020 में कोरोना महामारी के चलते ट्रेनों का संचालन बंद होने के कारण घर से भागने वाले बच्चों की संख्या में कमी आई है। RPF जवान मुस्तैदी से काम कर रहे हैं।
नाबालिगों पर चौकस निगाहें रखते हैं RPF जवान
IG मयंक ने कहा, "RPF जवान घर से भागे नाबालिगों पर नजर रखने के लिए ट्रेनों और रेलवे स्टेशनों के आसपास कड़ी निगरानी रखते हैं। जब भी कोई नाबालिग प्लेटफॉर्म, ट्रेन या किसी अन्य संदिग्ध परिस्थितियों में घूमते मिलता है तो उन्हें पकड़कर जांच की जाती है। इसके बाद उन्हें संबंधित स्टेशनों पर स्थापित चाइल्ड लाइन इकाइयों को सौंप दिया जाता है।" उन्होंने कहा कि RPF द्वारा बेसहारा बच्चों के खाने और रहने की व्यवस्था भी की जाती है।
इन स्टेशनों पर स्थापित है चाइल्ड लाइन इकाई
IG मयंक ने बताया कि जोन के दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन पटना, गया, धनबाद, हाजीपुर, मुजफ्फरपुर, बापूधाम, मोतिहारी, दरभंगा, रक्सौल और समस्तीपुर रेलवे स्टेशनों पर चाइल्ड लाइन इकाई स्थापित की गई है। उन्होंने बताया कि यूनिसेफ (UNICEF) के अधिकारी बचाए गए बच्चों के बेहतर प्रबंधन के लिए रेलवे और अन्य एजेंसियों के साथ समन्वय करते हैं। इसी तरह RPF टीम बच्चों की तस्करी से जुड़े मामलों की भी जांच करती है।
बच्चों की जिद और परिवार की सख्ती के कारण घर छोड़ते हैं नाबालिग- शुक्ला
हाजीपुर चाइल्ड लाइन इकाई के नोडल निदेशक सुधीर शुक्ला ने बताया कि बदलते समय के साथ नाबालिगों के घर से भागने के मामलों में इजाफा हो रहा है। इसका प्रमुख कारण बच्चों की जिद और परिवार की सख्ती है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में बच्चे अपनी इच्छा के अनुसार हर काम करना चाहते हैं और परिजन उनके भविष्य को लेकर पढ़ाई के चलते उन पर पाबंदी लगाते हैं। यही पाबंदी बच्चों को घर छोड़ने के लिए दुष्प्रेरित करती है।
घर से भागे हुए बच्चों की होती है काउंसलिंग- शुक्ला
शुक्ला ने बताया कि परिजनों की डांट से घर से भागे बच्चों को बचाने के बाद उनकी काउंसलिंग की जाती है और उन्हें भविष्य में घर से नहीं भागने के लिए प्रेरित किया जाता है। बच्चों को परिजनों के व्यवहार का कारण समझाया जाता है।