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    कूनो राष्ट्रीय उद्यान में 3 महीने में 3 चीते मरे, क्या संकट में है प्रोजेक्ट चीता?
    कूनो राष्ट्रीय उद्यान में अब तक तीन चीतों की हुई मौत

    कूनो राष्ट्रीय उद्यान में 3 महीने में 3 चीते मरे, क्या संकट में है प्रोजेक्ट चीता?

    लेखन सकुल गर्ग
    May 10, 2023
    08:20 pm

    क्या है खबर?

    मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में मंगलवार को मादा चीता 'दक्षा' की मौत हो गई।

    पिछले तीन महीने में कूनो राष्ट्रीय उद्यान में अफ्रीकी चीते की मौत का यह तीसरा मामला है, जिसके बाद प्रोजेक्ट चीता पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं।

    प्रोजेक्ट चीता के तहत पिछले साल सितंबर में नामीबिया से 8 चीते और दिसंबर में दक्षिण अफ्रीका से 12 चीतों को भारत लाया गया था।

    कारण 

    मेटिंग के दौरान हिंसक व्यवहार के कारण हुई मादा चीता की मौत

    मध्य प्रदेश के वन विभाग ने मंगलवार को एक बयान जारी कर बताया था कि मॉनिटरिंग टीम ने दक्षिण अफ्रीका से लाई गई मादा चीता दक्षा को जख्मी हालत में पाया था, जिसके बाद इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई।

    विभाग ने कहा था कि दक्षा के शरीर पर पाए गए घाव मेटिंग के दौरान आने की आशंका है। वन विभाग के मुताबिक, मेटिंग के दौरान नर और मादा चीतों के बीच हिंसक व्यवहार सामान्य घटना है।

    मौत 

    कैसे हुई थी अन्य 2 चीतों की मौत? 

    कूनो राष्ट्रीय उद्यान में मादा चीता दक्षा की मौत से पहले दो और चीतों की मौत हो चुकी है। पिछले साल सितंबर में नामीबिया से लाई गई मादा चीता 'साशा' की मार्च में गुर्दे में संक्रमण के कारण मौत हो गई थी।

    इसी तरह दक्षिण अफ्रीका से लाया गया नर चीता 'उदय' पिछले महीने अप्रैल में बेहोशी की हालत में मिला था, जिसके बाद उसकी मौत हो गई थी। उसकी मौत के पीछे कार्डियक अरेस्ट को वजह बताया गया था।

    चीता 

    कूनो राष्ट्रीय उद्यान में फिलहाल कितनी है चीतों की संख्या? 

    कूनो राष्ट्रीय उद्यान में पिछले साल 20 अफ्रीकी चीते लाए गए थे, जिनमें से 3 चीतों की मौत हो चुकी है। उद्यान में फिलहाल 17 चीते और 4 शावक हैं।

    पिछले साल दिसंबर में दक्षिण अफ्रीका से 12 चीते भारत लाए गए थे, जिनमें 7 नर और 5 मादा चीता शामिल थे।

    इससे पहले सितंबर में नामीबिया से 8 चीते लाए गए थे, जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने जन्मदिन के अवसर पर पिंजरे से बाड़े में छोड़ा था।

    चुनौती

    भारत के वातावरण में ढलना अफ्रीकी चीतों के लिए मुख्य चुनौती 

    प्रोजेक्ट चीता से जुड़ी चुनौतियों में सबसे बड़ी चुनौती अफ्रीकी चीतों को भारत में उनके नए वातावरण के अनुकूल बनाना है।

    चीतों को उत्तरी, पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका के खुले घास के मैदानों, घने वनस्पतियों और पहाड़ी इलाकों में रहने के लिए जाना जाता है।

    वन्यजीव विशेषज्ञों ने कहा कि सवाना के घास के मैदानों के गीले और सूखे मौसम और उष्णकटिबंधीय जलवायु के विपरीत भारतीय परिस्थितियों में इन चीतों को ढलने में कई वर्ष लगेंगे।

    चुनौती

    उद्यान की सीमा से बाहर निकलकर गांव में घुस गया था एक चीता

    बाड़े से खुले में छोड़े जाने के बाद अफ्रीकी चीतों को कूनो राष्ट्रीय उद्यान की सीमाओं के बाहर घूमते हुए देखा गया है।

    पिछले महीने ओबान नामक नर चीता उद्यान से निकलकर करीब 20 किलोमीटर दूर एक गांव में घुस गया था, जिसके बाद उसे ट्रैंक्यूलाइज कर वापस लाया गया था।

    आशंका है कि भविष्य में अन्य चीतों को खुले जंगल में छोड़ने के बाद इस तरह के मामलों में बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है।

    जानकारी

    एक मादा चीता ने दिया था 4 शावकों को जन्म 

    तमाम चुनौतियों के बीच मार्च में एक मादा चीता ने 4 शावकों को जन्म दिया था। प्रोजेक्ट चीता के लिहाज से यह एक बड़ी उपलब्धि थी क्योंकि भारत की धरती पर 1952 के बाद पहली बार किसी चीता का प्रजनन हुआ था।

    पृष्ठभूमि

    भारत में 1952 में विलुप्त घोषित कर दिए गए थे चीते

    भारत में साल 1948 में आखिरी बार चीते देखने को मिले थे। इसके बाद चीते नजर नहीं आए और 1952 में चीतों को विलुप्त घोषित कर दिया गया।

    चीतों को दुनिया में सबसे तेज दौड़ने वाला जानवर माना जाता है और ये जंगली बिल्ली की श्रेणी में आते हैं।

    1970 के दशक में ऐतिहासिक श्रेणियों में शामिल जानवरों की प्रजातियों को फिर से देश में स्थापित करने की योजना के तहत कई देशों से करार किया गया था।

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