आधुनिक कृषि बाजार खोलने के लिए दिए गए फंड का मात्र 0.5% हुआ इस्तेमाल

2018-19 के बजट में किसानों के लिए आधुनिक बाजार बनाने के लिए आवंटित किए गए लगभग 2,000 करोड़ रुपये के फंड के बेहद कम हिस्से को प्रयोग किया गया है। ' हिंदुस्तान टाइम्स' की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दो साल में इस फंड में से मात्र 10.45 करोड़ रुपयों का उपयोग किया गया है। देश में कृषि संकट के बीच ये आंकड़े दर्शाते हैं कि सरकारें इस संकट को लेकर कितनी लापरवाह हैं।
2,000 करोड़ रुपये के इस एग्री-मार्केट इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड (AMIF) के जरिए ग्रामीण कृषि बाजार (GRAMS) नाम से आधुनिक बाजार बनने थे जो कृषि उपज मंडी समितियां (APMCs) के नियंत्रण से बाहर होते। इन बाजारों में व्यापारी और किसान आजादी के साथ माल बेच और खरीद सकते हैं। इनका मकसद मौजूदा किसान मंडी व्यवस्था का एक विकल्प प्रदान करना है जिसमें बिचौलिये भरे पड़े हैं और उनके कारण फसल बेचकर किसानों को होने वाली कमाई में कमी आती है।
'हिंदुस्तान टाइम्स' द्वारा हासिल किए गए आंकड़ों के अनुसार, पिछले दो साल में इस फंड में से मात्र 10.45 करोड़ रुपये यानि 0.5 प्रतिशत उपयोग में लाए गए हैं। इस रकम से 376 आधुनिक बाजार बनाए गए हैं, हालांकि इनमें से एक भी अभी तक उपयोग के लिए तैयार नहीं है। योजना के तहत ऐसे कुल 22,000 बाजार बनने हैं। ये आंकड़े ये दर्शाने के लिए पर्याप्त हैं कि किसानों की समस्याओं के प्रति सरकारें कितना लापरवाह हैं।
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि वो इससे हैरान नहीं हैं कि कृषि बाजार में सुधार को एक और प्रयास असफल हो रहा है। उनके अनुसार, मंडियों में व्यापारियों, आयोगों और स्थानीय प्रभावशाली लोगों के हित शामिल हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, कृषि बाजारों में सुधार न होने के कारण मोदी सरकार के 2022 तक किसानों का आमदनी दोगुनी करने के लक्ष्य पर भी असर पड़ रहा है और इसकी प्राप्ति मुश्किल नजर आ रही है।
भारत में कृषि बाजारों की एक जटिल व्यवस्था है जिसमें संगठित और असंगठित बाजारों का मिश्रण है। किसान ज्यादातर अपना माल मंडियों में बेचते हैं जिन्हें APMC चलाता है। 1960 के दशक में शुरु हुए APMC के नियमों के अनुसार, किसानों को अपना माल इलाके की सरकारी मंडियों में लाइसेंस प्राप्त बिचौलियों को बेचना होता है, जिनसे व्यापारी माल खरीदते हैं। देश के 16 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में ऐसी 585 मंडियां हैं।
इन नियमों के पीछे तर्क था कि बिचौलिये व्यापारियों से अच्छी तरह से मोलभाव कर सकते हैं और इससे किसानों को कम कीमत में उनकी फसल बेचने से बचाया जा सकता है। लेकिन समय के साथ-साथ कई स्तरीय बिचौलियों पैदा हो गए और इसके कारण फसल की कीमत में बिचौलियों का हिस्सा बढ़ने लगा। इससे किसानों कमाई में कमी आई और उन्हें घाटा होने लगा। इसी कारण लंबे समय से मंडियों से बिचौलियों को हटाने की मांग हो रही है।