क्या आपको पता हैं आपके स्वास्थ्य अधिकार? अगर नहीं तो यहां जानें
क्या है खबर?
कोरोना वायरस संकट में अस्पतालों से संबंधित ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें मरीजों को इलाज के लिए मना किया जा रहा है। इस कारण कुछ मरीजों की जान भी चली गई है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि कोई भी अस्पताल आपका इलाज करने से मना नहीं कर सकता है।
अगर कोई ऐसा करता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए आपको स्वास्थ्य अधिकारों का पता होना जरूरी है।
आइये, इन अधिकारों के बारे में जानें।
जानकारी
मरीजों से संबंधित 17 अधिकार
देश में पहली बार साल 2018 में मरीजों से संबंधित अधिकारों को लेकर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक विस्तृत चार्टर जारी किया था जिसमें 17 अधिकारों को स्पष्ट रूप से शामिल किया हुआ है।
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मरीजों के हित से संबंधित अधिकार
1) अपने स्वास्थ्य और इलाज संबंधी रिकॉर्ड्स अस्पताल से ले सकते हैं।
2) स्वास्थ्य संबंधी हर सूचना अस्पताल से ली जा सकती है।
3) अपातकालीन स्थिति में बिना किसी भुगतान के आपको इलाज मिल सकता है।
4) अस्पताल को आपकी सेहत के बारे में गोपनीयता रखने के साथ-साथ अच्छा व्यवहार करना होगा।
5) किसी के भी साथ किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जा सकता।
6) मानकों के लिहाज से हर किसी को इलाज में गुणवत्ता और सुरक्षा मिलनी चाहिए।
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मरीजों की सुविधा को ध्यान रखकर जारी किए गए ये अधिकार
7) आप अपने मुताबिक इलाज के उपलब्ध विकल्प चुन सकते हैं।
8) हर एक सेकंड ओपिनियन लेने के लिए आजाद हैं।
9) अस्पतालों को इलाज की दरों और सुविधाओं को लेकर पारदर्शिता बरतनी चाहिए।
10) आप दवाएं या टेस्ट के लिए अपने हिसाब से जगह का चुन सकते हैं।
11) गंभीर रोगों के इलाज से पहले मरीज को उसके खतरे, प्रक्रियाओं और निष्कर्ष बताने जरूरी है।
12) व्यावसायिक हितों से परे ठीक से रेफर या ट्रांसफर किए जाना चाहिए।
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अस्पताल नहीं कर सकता मरीजों के साथ बुरा बर्ताव
13) आपको बायोमेडिकल या स्वास्थ्य शोधों में शामिल लोगों से सुरक्षा मिलनी चाहिए।
14) इसी के साथ क्लीनिकल ट्रायल में शामिल मरीजों से आपको सुरक्षित रखा जाना चाहिए।
15) अस्पताल बिलिंग आदि प्रक्रियाओं के कारण आपको डिस्चार्ज या शव सौंपने को टाल नहीं सकता।
16) डॉक्टरों को हर मरीज को आसान भाषा में इलाज के बारे में शिक्षित करना चाहिए।
17) अस्पताल हमेशा आपकी शिकायतें सुनकर उनका निवारण करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
संविधान
संविधान में शामिल है नागरिकों के स्वास्थ्य अधिकार
सबसे पहले 10 दिसंबर 1948 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मानव अधिकार पर सार्वभौम (यूनिवर्सल) घोषणा पत्र जारी किया था, जिसमें लोगों की स्वतंत्रता और समानता जैसे मुद्दों के साथ चिकित्सीय देखभाल को प्रमुखता से रखा गया था।
इसके बाद भारतीय संविधान में अनुच्छेद-21 के तहत जीने के अधिकार में 'स्वास्थ्य के अधिकार' को वर्णित किया है। इसमें हर एक व्यक्ति की स्वास्थ्य जरूरतों को पूरा करना सरकार की जिम्मेदारी है।
स्वास्थ्य अधिकार
इस वजह से नागरिकों के स्वास्थ्य संबंधी अधिकार हैं सुरक्षित
भारतीय संविधान के सातवें शेड्यूल के दौरान लोक स्वास्थ्य को देश के राज्यों की सूची में रखा गया है, लेकिन कुछ राज्य आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं इसलिए बेहतर स्वास्थ्य ढांचे का अभाव रहा है।
इसी को मद्देनजर रखते हुए कुछ राज्यों में लोक स्वास्थ्य की दिशा में कुछ कानूनी प्रावधान किए गए। जैसे तमिलनाडु पब्लिक हेल्थ एक्ट और कोचीन पब्लिक हेल्थ एक्ट आदि जिससे नागरिकों के स्वास्थ्य संबंधी अधिकार सुरक्षित हैं।
कानूनी अधिकार
स्वास्थ्य अधिकारों का हनन होने पर कानूनी कार्यवाही का ले सकते हैं सहारा
नेशनल हेल्थ बिल 2009 के तीसरे अध्याय में मरीजों के लिए न्याय का अधिकार सुरक्षित किया है।
इसके मुताबिक अगर किसी भी व्यक्ति के स्वास्थ्य का अधिकार हनन किया जाता है तो वह कानूनी अधिकारों के साथ लड़ाई लड़ सकता है, अपने अधिकारों का दावा कर सकता है और हर्जाना पा सकता है।
वैसे भारत में आप किसी अस्पताल या स्वास्थ्य केंद्र के खिलाफ क्षतिपूर्ति कानून, उपभोक्ता सुरक्षा कानून या संविधान संबंधी कानूनों के लिहाज से लड़ाई लड़ सकते हैं।