नागपुर: कोरोना संक्रमित युवक के लिए बुजुर्ग ने छोड़ा अपना बेड, तीन दिन बाद हुई मौत
इस समय पूरा देश कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर से जूझ रहा है। तेजी से बढ़ती संक्रमितों की संख्या के कारण अस्पतालों में ऑक्सीजन और बेड खत्म हो गए हैं। ऐसे में अस्पतालों में बेड के लिए मारामारी चल रही है। इसी बीच नागपुर में एक 85 वर्षीय कोरोना संक्रमित बुजुर्ग ने गंभीर हालत होने के बाद भी एक अन्य संक्रमित युवक के लिए अस्पताल में अपना बेड छोड़ दिया। इसके तीन दिन बाद बुजुर्ग की मौत हो गई।
ऑक्सीजन स्तर कम होने पर बुजुर्ग को अस्पताल लाए थे परिजन
TOI के अनुसार आसावरी कोठीवन ने बताया कि उनके पिता नारायण भाऊराव दाभाडकर (85) की तबीयत बिगड़ने पर 16 अप्रैल को कोरोना टेस्ट कराया था। इसमें 19 अप्रैल को उनके संक्रमण की पुष्टि हो गई। इसके बाद उनका घर पर ही उपचार चल रहा था। उन्होंने बताया कि 22 अप्रैल को उनका ऑक्सीजन स्तर 60 पर आ गया था। ऐसे में उन्हें इंदिरा गांधी शासकीय अस्पताल में लाया गया था, जहां भारी मशक्कत के बाद बेड मिला।
बिलखती महिला को देखकर दाभाडकर ने किया बेड छोड़ने का निर्णय
कोठीवन ने बताया कि उनके पिता को अस्पताल में भर्ती हुए महज दो ही घंटे हुए थे। उसी दौरान बीच एक महिला बिलखती हुई अस्पताल पहुंची और अपने 40 वर्षीय कोरोना संक्रमित पति को बेड देने की गुहार लगाने लगी। इस पर अस्पताल प्रशासन ने बेड उपलब्ध नहीं होने की बात कह दी। उन्होंने बताया कि बिलखती महिला को देखकर उनके पिता का दिल पसीज गया और उनहोंने अपना बेड उसके पति को देने का निर्णय कर लिया।
मैंने अपनी जिंदगी जी ली है, महिला का पति युवा है- दाभाडकर
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सदस्य दाभाडकर ने महिला को देखकर कहा, "मैं 85 वर्ष का हो चुका हूं और मैंने अपनी जिंदगी जी ली है। उस महिला का पति युवा है और यदि उसकी मौत हो जाती है तो उसके बच्चे अनाथ हो जायेंगे। इसलिए मेरा कर्तव्य है कि मैं उस व्यक्ति के प्राण बचाऊं।" उन्होंने यह भी कहा कि वह अपनी जिंदगी के अंतिम क्षण अस्पताल में पड़े रहने की जगह परिवार के साथ बिताना चाहते हैं।
अस्पताल प्रशासन ने दाभाडकर से भरवाया सहमति पत्र
दाभाडकर के इस निर्णय के बाद अस्पताल प्रशासन ने परिजनों की मौजूदगी में उनसे बेड छोड़ने के सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कराए और उसके बाद उन्हें घर जाने की अनुमति दे दी। इसके बाद अस्पताल प्रशासन ने महिला के पति को बेड उपलब्ध करा दिया।
दाभाडकर ने तीन दिन बाद घर में तोड़ा दम
कोठीवन ने बताया कि अस्पताल से घर पहुंचने के बाद उनके पिता की हालत लगातार बिगड़ती गई। उनके नाखून काले पड़ गए थे और सभी अंग सुन्न पड़ने लगे थे। गत 25 अप्रैल को उन्होंने कुछ निवाले खाने के बाद दम तोड़ दिया। बता दें कि दाभाडकर महाराष्ट्र सरकार के सांख्यिकी विभाग का एक कर्मचारी रहे थे। इसके अलावा वह RSS के सक्रिय सदस्य होने के साथ श्रीराम शाखा पवन भूमि से भी जुड़े हुए थे।
दाभाडकर ने स्वेच्छा से छोड़ा था अस्पताल
इस संबंध में अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि दाभाडकर ने स्वेच्छा से अस्पताल छोड़ा था। इसके लिए उनके भर्ती कार्ड पर चिकित्सकीय सलाह के बिना अस्पताल छोड़ना (DAMA) इंगित किया गया है। उन्होंने बताया कि किसी मरीज के बेड खाली करने पर उसकी इच्छानुसार अन्य मरीज को बेड देने का कोई प्रावधान नहीं है। यह अस्पताल प्रबंधन पर निर्भर करता है। हालांकि, उनके जाने से एक मरीज के लिए बेड जरूर उपलब्ध हो गया।
सोशल मीडिया पर हो रही है दाभाडकर की प्रशंसा
यह घटना सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। सभी लोग दाभाडकर की तारीफ कर रहे हैं। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी ट्वीट किया, 'दूसरे व्यक्ति की प्राण रक्षा करते हुए श्री नारायण जी तीन दिनों में इस संसार से विदा हो गये। समाज और राष्ट्र के सच्चे सेवक ही ऐसा त्याग कर सकते हैं, आपके पवित्र सेवा भाव को प्रणाम!' नागपुर RSS के उप प्रमुख श्रीधर ने उनके परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त की है।