
रामदेव की पतंजलि को डाबर च्यवनप्राश के खिलाफ भ्रामक विज्ञापन चलाने से रोका गया
क्या है खबर?
दिल्ली हाई कोर्ट ने एक बार फिर योग गुरु बाबा रामदेव की पतंजलि कंपनी को दूसरी कंपनियों के उत्पाद को निशाना बनाने से रोक दिया है। कोर्ट ने गुरुवार को अंतरिम आदेश देते हुए पतंजलि आयुर्वेद को डाबर च्यवनप्राश को लक्षित करते हुए भ्रामक विज्ञापन चलाने से मना किया है। आदेश न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा ने डाबर की ओर से दायर याचिका पर पारित किया, जिसका आरोप है कि पतंजलि उसके लोकप्रिय उत्पाद के बारे में अपमानजनक विज्ञापन चला रही है।
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पतंजलि ने विज्ञापन में क्या दावा किया है?
पतंजलि ने विज्ञापन में दावा किया है कि वह एकमात्र ऐसी कंपनी है जो आयुर्वेदिक शास्त्रों और शास्त्रीय ग्रंथों के अनुसार च्यवनप्राश बनाती है। विज्ञापन में कहा गया है, "जिनको आयुर्वेद और वेदों का ज्ञान नहीं, चरक, सुश्रुत, धन्वंतरि और च्यवनऋषि की परंपरा में 'असली' च्यवनप्राश कैसे बना पाएंगे?" इस विज्ञापन का मतलब है कि डाबर जैसे अन्य ब्रांडों में प्रामाणिक ज्ञान का अभाव है, इसलिए उनका मुकाबला पतंजलि के च्यवनप्राश से नहीं हो सकता है।
दावा
डाबर ने 2 करोड़ रुपये का हर्जाना मांगा
विज्ञापन का डाबर ने विरोध किया और तत्काल रोक लगाने की मांग करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट पहुंचा। उसने ब्रांड की प्रतिष्ठा को हुए नुकसान के लिए 2 करोड़ रुपये का हर्जाना मांगा। डाबर ने याचिका में कहा कि विज्ञापन में झूठा दावा है कि पतंजलि का च्यवनप्राश ही एकमात्र असली उत्पाद है, जो उपभोक्ताओं को गुमराह करता है। उसने विज्ञापनों में 40 जड़ी-बूटियों वाले च्यवनप्राश को "साधारण" कहने पर भी आपत्ति जताई। मामले की सुनवाई 14 जुलाई को होगी।
विवाद
पहला मामला नहीं, ऐसे कई मामले सामने आए
पतंजलि का दूसरी कंपनियों के खिलाफ भ्रामक विज्ञापन चलाने का मामला नया नहीं है। इससे पहले भी वह कई कानूनी कार्यवाही का सामना कर चुका है। इससे पहले कोरोना माहामारी के समय कोरोनिल दवा लॉन्च करते हुए रामदेव ने एलोपैथी चिकित्सा पर सवाल उठाए थे, जिसके बाद भारतीय चिकित्सा संघ (IMA) कोर्ट गया था। रामदेव ने पतंजलि का गुलाब शरबत बेचने के लिए हमदर्द के रूह-आफजा शरबत को भी निशाने पर लिया था और इसे शरबत जिहाद बताया था।