#NewsBytesExplainer: क्या है 'क्लिफहैंगर्स', जिसका फिल्मों से लेकर वेब सीरीज में हो रहा इस्तेमाल?
क्या है खबर?
फिल्मों को दर्शकों के लिए मनोरंजक बनाने के लिए निर्माता-निर्देशक हर संभव प्रयास करते हैं।
वे नई-नई तकनीकों का इस्तेमाल करते हैं। जहां शानदार VFX फिल्मों में जान डालते हैं, वहीं डी-एजिंग से लेकर प्रोस्थेटिक मेकअप तक का इस्तेमाल किया जाता है।
फिल्म को वजनदार बनाने में कहानी का महत्वपूर्ण स्थान है।
क्या आपने कभी सोचा है कि कहानी लिखने में भी किसी तकनीक का इस्तेमाल किया जा सकता है? अगर नहीं तो चलिए बताते हैं 'क्लिफहैंगर्स' के बारे में।
परिभाषा
दर्शकों की जिज्ञासा से खेलती है 'क्लिफहैंगर' तकनीक
क्या आपने उन बॉलीवुड फिल्मों के अंत पर गौर फरमाया है, जिन्हें देखकर आपको लगता है कि अब आपको इसके विलेन का असली चेहरा पता लगेगा, लेकिन अचानक से फिल्म खत्म हो जाती है?
यह वही फिल्में होती हैं, जिनके क्लाइमैक्स के लेखन में 'क्लिफहैंगर' का इस्तेमाल होता है।
'क्लिफहैंगर' वह तकनीक होती हैं जो दर्शकों की जिज्ञासा के साथ खेलती है और यह सुनिश्चित करती है कि वे लेखक द्वारा रची काल्पनिक दुनिया में फंस जाए।
परिभाषा
'क्लिफहैंगर' का इस्तेमाल कर फ्रैंचाइजी फिल्मों का होता है जन्म
इसका इस्तेमाल करके जानबूझकर कहानी को इस तरह लिखा जाता है कि दर्शकों की सांसें अटक जाएं, लेकिन फिल्म का अंत ना हो।
'क्लिफहैंगर' तकनीक इस्तेमाल करके निर्माता फिल्म को ऐसे कड़ी पर समाप्त करते हैं, जहां इसके दूसरा भाग बनने की संभावना रहे।
ऐसे में लोगों के मन आने वाले भाग के लिए बेकरारी पहले भाग के खत्म होने पर ही बढ़ जाती है।
इनका इस्तेमाल करके ही फ्रैंचाइजी फिल्मों का जन्म होता है।
उदाहरण
आइए उदाहरण से समझें
'क्लिफहैंगर' को समझने का सबसे बढ़िया उदाहरण प्रभास की 'बाहुबली: द बिगनिंग' है।
फिल्म जिस भव्यता से आगे बढ़ते हुए अपने अंत तक पहुंचती है और जब कटप्पा, महेंद्र बाहुबली को मारने जाता है, लेकिन ऐसा कर नहीं पाता।
तो दर्शकों को लगता अब हमें सारी कहानी बताई जाएगी, लेकिन अफसोस ऐसा नहीं होता।
निर्देशक एसएस राजामौली ने दर्शकों के दिलों में जिज्ञासा जगाकर जिस तरह फिल्म को दूसरे भाग बेकरारी पर समाप्त किया इसी को 'क्लिफहैंगर' कहते हैं।
जन्म
कब हुआ 'क्लिफहैंगर' का जन्म?
सिनेमा और साहित्य में शब्द और वाक्यांश अक्सर एक-दूसरे से टकराते हैं।
माना जाता है कि शब्द 'क्लिफहेंजर' 1870 के दशक में लिखे गए थॉमस हार्डी के उपन्यास से निकला है, जहां एक अध्याय का अंत सचमुच नायक के चट्टान (क्लिफ) पर लटकने के साथ हुआ था।
पाठकों को यह जानने के लिए इंतजार करना पड़ा था और इसका अगला अध्याय खरीदना पड़ा कि उसके साथ क्या हुआ था, क्या वह बच गया या मर गया था?
उद्देश्य
क्या है क्लिफहैंगर्स का उद्देश्य?
फिल्म की कहानी को अगली किस्तों में जीर रखने के लिए 'क्लिफहैंगर्स' का उपयोग किया जाता है। ज्यादातर इन्हें सस्पेंस फिल्मों में इस्तेमाल किया जाता है।
कभी-कभी इसका इस्तेमाल करके प्रयोग भी किया जाता है। दरअसल, निर्माता फिल्म को एक चकित कर देने वाले मोड़ पर खत्म करके पहले दर्शकों की प्रतिक्रिया का आकलन करना चाहते हैं।
अगर दर्शकों में उन्हें अगले भाग के लिए उत्सुकता और इंतजार दिखता है तो वह दूसरा भाग लाते हैं।
उदाहरण
इन फिल्मों और सीरीज में किया गया इस्तेमाल
आज के समय में बॉलीवुड में 'क्लिफहैंगर्स' का इस्तेमाल फिल्मों और वेब सीरीज दोनों में किया जा रहा है।
कुछ भारतीय फिल्में जिन्होंने अंत में दर्शकों के दिलों में जिज्ञासा छोड़ी और सबको हैरान किया वे आयुष्मान खुराना अभिनीत 'अंधाधुन', 'कार्तिक कॉलिंग कार्तिक', 'ए वेडनसडे!', 'फिर हेरा फेरी', 'द लंचबॉक्स' और 'विक्रम वेधा' हैं।
कुछ वेब सीरीज के उदाहरणों में पंकज त्रिपाठी अभिनीत 'मिर्जापुर', 'द फैमिली मैन', 'आर्या' और 'असुर' का नाम शामिल हैं।