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    #NewsBytesExplainer: गीता का प्रभाव, भारतीय नागरिकता का प्रस्ताव; जानिए ओपेनहाइमर की खास बातें
    कौन थे रॉबर्ट ओपेनहाइमर?

    #NewsBytesExplainer: गीता का प्रभाव, भारतीय नागरिकता का प्रस्ताव; जानिए ओपेनहाइमर की खास बातें

    लेखन आकांक्षा शर्मा
    Jul 25, 2023
    01:41 pm

    क्या है खबर?

    क्रिस्टोफर नोलन की फिल्म 'ओपेनहाइमर' इन दिनों चर्चा में है। शुक्रवार को फिल्म ने सिनेमाघरों में दस्तक दी है। अभिनेता सिलियन मर्फी ने फिल्म में वैज्ञानिक जूलियस रॉबर्ट ओपेनहाइमर का किरदार निभाया है।

    IMAX, 3D में फिल्म के शानदार विजुअल को पसंद किया जा रहा है, तो कुछ दर्शक इस वैज्ञानिक के बारे में जानने के लिए फिल्म देख रहे हैं।

    आइए आपको बताते हैं रॉबर्ट ओपेनहाइमर और द्वितीय विश्वयुद्ध में उनकी भूमिका के बारे में।

    परिचय

    हावर्ड और कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में की थी पढ़ाई

    ओपेनहाइमर का जन्म 22 अप्रैल, 1904 को न्यूयॉर्क शहर में हुआ था। वह मैनहैट्टन में पले-बढ़े थे।

    एक छात्र के तौर पर ओपेनहाइमर फिजिक्स, केमिस्ट्री, लैटिन और फिलॉसफी में अव्वल थे। हावर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ाई के बाद वह रिसर्च के लिए इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय चले गए थे।

    यहां उन्होंने क्वॉन्टम फिजिक्स में रिसर्च की और अपनी PhD की डिग्री हासिल की। इसके बाद वह कैलिफॉर्निया विश्वविद्यालय में पढ़ाने लगे।

    मैनहैट्टन प्रोजेक्ट 

    क्या था मैनहैट्टन प्रोजेक्ट? 

    1939 में जब हिटलर की नाजी सेना ने पोलैंड पर कब्जा कर लिया, तब एलबर्ट आइंस्टाइन समेत कई वैज्ञानिकों ने अमेरिकी सरकार को चेताया कि दुश्मन उन पर परमाणु हथियार का इस्तेमाल कर सकते हैं।

    अमेरिकी सेना ने अमेरिकी और ब्रिटिश फिजिसिस्ट को परमाणु क्षमता को बढ़ाने का जिम्मा सौंपा। इसे 'मैनहैट्टन प्रोजेक्ट' का नाम दिया गया और इसके नेतृत्व की जिम्मेदारी ओपनेहाइमर को दी गई।

    16 जुलाई, 1945 को परमाणु बम का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया।

    परमाणु बम 

    जापान में मचाई थी तबाही

    6 अगस्त, 1945 को अमेरिकी सेना ने जापान के हिरोशिमा में परमाणु बम गिराया गया था। इस बम को 'लिटिल बॉय' नाम दिया गया था।

    इसके बाद 9 अगस्त को अमेरिका ने जापान के ही नागासाकी पर दूसरा परमाणु बम गिराया। इस बम का नाम 'फैट मैन' था।

    दोनों धमाकों में एक लाख से अधिक लोग मारे गए थे। ये पहली और आखिरी बार था जब परमाणु बमों का इस्तेमाल किया गया।

    पछतावा

    त्रासदी के बाद बदल गए ओपेनहाइमर

    जापानी त्रासदी के बाद ओपेनहाइमर खुद को इसका जिम्मेदार मानने लगे। उनके इसी भावनात्मक पक्ष को नोलन ने अपनी फिल्म में दिखाया है।

    वह मैनहैट्टन प्रोजेक्ट से बाहर हो गए। 1947 में वह इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज के प्रमुख बने। वह एटॉमिक एनर्जी कमिशन की एडवाइजरी कमिटी के अध्यक्ष रहे।

    उन्होंने हाइड्रोजन बम बनाने का पुरजोर विरोध किया था। हाइड्रोजन बम परमाणु बम से कई गुना ज्यादा शक्तिशाली है। इसका अब तक किसी देश ने इस्तेमाल नहीं किया है।

    भारतीय नागरिकता 

    नेहरू ने दिया था भारतीय नागरिकता का प्रस्ताव

    ओपेनहाइमर युद्ध नीति और परमाणु शक्ति का मुखर होकर विरोध कर रहे थे। ऐसे में अमेरिकी सरकार ने उनकी देशभक्ति पर सवाल खड़े किए और उन पर मुकदमा चलाया।

    रिपोर्ट्स के अनुसार, तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें भारतीय नागरिकता का प्रस्ताव दिया था।

    ओपेनहाइमर खुद को सच्चा अमेरिकी मानते थे, इसलिए उन्होंने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था।

    परमाणु बम के सफलतापूर्वक परीक्षण होने पर उन्होंने गीता का श्लोक पढ़ा था। ऐसे में वह भारत में लोकप्रिय थे।

    मृत्यु 

    62 वर्ष की उम्र में हुआ निधन

    18 फरवरी, 1967 को ओपेनहाइमर ने आखिरी सांस ली थी। तब वह 62 वर्ष के थे और गले के कैंसर से पीड़ित थे। शीत युद्ध के दौरान उन पर चले मुकदमे के बाद अमेरिकी सरकार ने उन्हें निर्दोष बताया था।

    ओपेनहाइमर के जीवन पर गीता का खास प्रभाव था। भारतीय पौराणिक कहानियों में उनकी दिलचस्पी थी, ऐसे में उन्होंने कई हिंदू ग्रंथ पढ़े थे।

    नोलान की फिल्म में भी उनकी यह दिलचस्पी नजर आती है।

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