#NewsBytesExplainer: भारतीय सिनेमा में कब और कैसे शुरू हुआ रंगीन फिल्मों का दौर? जानिए सबकुछ
भारतीय सिनेमा का इतिहास काफी पुराना है, जिसका मूक से बोलने वाली फिल्मों और ब्लैक एंड व्हाइट से रंगीन फिल्मों तक का सफर बेहद शानदार रहा है। भारत में पहली रंगीन फिल्म 'किसान कन्या' 8 जनवरी, 1937 को रिलीज हुई थी, जिसे पहली बोलती फिल्म 'आलम आरा' बनाने वाली इंपीरियल फिल्म कंपनी ने ही बनाया था। आइए आज आपको भारतीय सिनेमा में रंगीन फिल्मों का दौर कब और कैसे शुरू हुआ, इसके बारे में विस्तार से बताते हैं।
वी शांताराम की पहली कोशिश रही नाकाम
भारत में पहली रंगीन फिल्म बनाने का कदम 1933 में पुणे की प्रभात फिल्म कंपनी ने उठाया था। निर्देशक वी शांताराम ने अपनी फिल्म 'सैरंध्री' को प्रभात स्टूडियो में शूट किया था, लेकिन तब भारत में प्रोसेसिंग नहीं हो सकती थी। ऐसे में निर्देशक प्रिंट लेकर जर्मनी गए, लेकिन जब वह वापस आए तो फिल्म के रंग धुंधले हो गए। यह देश में साधन न होने का नतीजा था। ऐसे में यह भारत की पहली रंगीन बनने से चूक गई।
'किसान कन्या' से मिले भारतीय सिनेमा को रंग
शांताराम की नाकाम कोशिश के बाद पहली रंगीन फिल्म बनाने का जिम्मा इंपीरियल फिल्म कंपनी के अर्देशिर ईरानी ने उठाया। इसके बाद मोती बी गिडवानी के निर्देशन में बनी 'किसान कन्या' ने 1937 में सिनेमाघरों में दस्तक दी, जो भारत की पहली रंगीन फिल्म बनी। एक अमेरिकी कंपनी ने फिल्म में रंग भरे थे। इसकी शूटिंग ब्लैक एंड व्हाइट में ही हुई थी। फिल्म को लेकर लोगों में इतना उत्साह था कि सिनेमाघरों में लोगों की भीड़ लगी थी।
इसलिए खास है 'किसान कन्या'
'किसान कन्या' का नाम इतिहास के पन्नों में सिर्फ इसलिए दर्ज नहीं है कि यह पहली रंगीन फिल्म थी, बल्कि इसलिए भी है कि इसके जरिए जाने माने लेखक सआदत हसन मंटो ने सिनेमा की दुनिया में कदम रखा। इसकी कहानी उनके उपन्यास पर आधारित थी। उन्होंने फिल्म की पटकथा और संवाद लिखे थे। इसके अलावा 'किसान कन्या' को संगीत रामगोपाल पांडे ने दिया था और इसमें 10 गाने थे।
जियाउद्दीन कैसे बने फिल्म के लेखक?
मंटो इंपीरियल स्टूडियो में मुंशी की नौकरी करते थे। उस दौरान इंपीरियल स्टूडियो की स्थिति अच्छी नहीं थी और ईरानी रंगीन फिल्म बनाना चाहते थे। साहित्य के शौकीन गिडवानी को मंटो पसंद थे इसलिए उन्होंने मंटो को कहानी लिखने के लिए प्रेरित किया। मंटो की कहानी गिडवानी को पसंद आई, लेकिन ईरानी मुंशी को लेखक का क्रेडिट नहीं देना चाहते थे। ऐसे में मंटो ने प्रोफेसर जियाउद्दीन से बात की और लेखक के रूप में उनका नाम आया।
ऐसी थी फिल्म की कहानी
'किसान कन्या' में उस दौर के सामाजिक-राजनीतिक ताने बाने को मंटो ने बखूखी दिखाया था। फिल्म की कहानी देश को आजादी मिलने के बाद किसानों और मजदूरी की हो रही दुर्दशा पर केंद्रित थी, जिसे बड़े ही बेहतरीन ढंग से फिल्माया गया था। इसमें गांव के एक लालची और क्रूर जमीदार को दिखाया गया था, जिसके जुल्म ने किसान और मजदूरों को परेशान कर दिया था। फिल्म में पद्मादेवी जिल्लो, निसार, गुलाम मोहम्मद, सैयद अहमद सहित कई कलाकार शामिल थे।
फिल्म ने खोले सिनेमा क्षेत्र में नवीनीकरण के रास्ते
'किसान कन्या' का खुमार लोगों के बीच भी खूब देखने को मिला था और इसने बॉक्स ऑफिस पर ठीक-ठाक प्रदर्शन किया था। इस फिल्म के जरिए ही मनोरंजन जगत में नवीनीकरण के रास्ते खुले थे, लेकिन उस जमाने के हिसाब से निर्माता को फिल्म बनाने में अच्छा खासा पैसा लगाना पड़ा था। 1913 में आई पहली मूक फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र' की तरह ही पहली रंगीन फिल्म 'किसान कन्या' का भी भारतीय सिनेमा में महत्व है।
न्यूजबाइट्स प्लस
दुनियाभर में पहली रंगीन फिल्म 'ए विजिट टू द सी साइड' को कहा जाता है, जो 1908 में रिलीज हुई थी। हालांकि, यह कोई लंबी फिल्म नहीं थी, बल्कि आठ मिनट की अवधि वाली एक लघु फिल्म थी।