#NewsBytesExplainer: दम तोड़ रहे देश के सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर, क्या मल्टीप्लेक्स या OTT का है असर?
पहले ब्लैक एंड व्हाइट फिल्में बना करती थीं। फिर रंगीन फिल्मों का दौर शुरू हुआ। बदलते वक्त के साथ सिनेमाघरों में भी बदलाव देखने को मिल रहे हैं। एक समय भारत में सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर ही हुआ करते थे, लेकिन अब सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों की जगह मल्टीप्लेक्स ने ले ली है। आलम यह है कि आज सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों की खूबसूरत दुनिया लगभग गायब हो गई है। आइए जानें क्यों अपनी आखिरी सांसें गिन रहे देश के सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर।
सबसे पहले जानिए सिंगल स्क्रीन और मल्टीपल सिनेमाघर का मतलब
सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर में एक स्क्रीन होती है। उसी स्क्रीन पर रोज फिल्म के 4 शो दिखाए जाते हैं। यह सबसे पुराने सिनेमाघरों में से एक है। ये सिनेमाघर साधारण से होते हैं। यहां ज्यादा ताम-झाम नहीं होता। उधर मल्टीप्लेक्स या नए जमाने के सिनेमाघरों में एक फिल्म स्क्रीन होती है। इनमें एक समय में कई फिल्में साथ में चल सकती हैं। ऐसे सिनेमाघरों में बैठने की व्यवस्था स्टेडियम के जैसी होती है। इनका चलन अब काफी बढ़ गया है।
घूमा तकनीकी क्रांति का पहिया
एक जमाना था, जब देहरादून में फिल्मों का इतना क्रेज था कि बच्चे, युवा और बुजुर्ग हर उम्र के लोग अपने दोस्तों-परिवार के साथ सिनेमा हॉल जाया करते थे, लेकिन बदलते वक्त और तकनीकी क्रांति का पहिया कुछ ऐसा घूमा कि लोगों ने धीरे-धीरे सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों से मुंह मोड़ लिया। देहरादून में मनोरंजन का एकमात्र साधन बने सिनेमाघर कभी फिल्मों की कहानी दिखाया करते थे, जो आज खुद खंडहर में तब्दील होकर कहानी बनकर रह गए हैं।
कमाई से ज्यादा हो रहा नुकसान
सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों को 'हाउस फुल' का बोर्ड लगाए जमाने गुजर गए हैं। सन्नाटा बढ़ता जा रहा है। थिएटर मालिकों की मानें तो परचून की दुकानों की दुकानदारी भी इनकी रोजाना की कमाई से ज्यादा है। मालिक सिनेमाघर बंद रखना पसंद कर रहे हैं। कारण है खुलने पर वे रोजाना लगभग 4,000 रुपये कमाते हैं, वहीं बिजली, रख-रखाव और अन्य परिचालन लागतों पर खर्च लगभग 7,000 रुपये आता है। इस तरह यह पूरी तरह नुकसान का सौदा बन गया है।
अब मनोरंजन के सारे साधन घर पर मौजूद- नितिन दातार
सिनेमैटोग्राफ ओनर्स एंड एग्जिबिटर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष नितिन दातार कहते हैं, "पहले सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर ही मनोरंजन का एकमात्र साधन हुआ करते थे। अब यूट्यूब, मौज और इंस्टाग्राम जैसे कई और ऑनलाइन माध्यमों ने मनोरंजन को आपके घर पर ला दिया है। मोबाइल या टीवी पर कुछ ही हफ्तों में कोई फिल्म देखने को मिल रही है तो कोई सिनेमाघर में आकर फिल्म क्यों देखेगा? वे केवल तभी फिल्में देखने आते हैं, जब वो बड़ी स्क्रीन पर देखने लायक हो।"
हर साल खुल रहे 200 नए मल्टीप्लेक्स
मल्टीप्लेक्स के साथ ही OTT प्लेटफॉर्म ने भी सिंगल स्क्रीन सिनेमा को काफी प्रभावित किया है। इससे उनकी लोकप्रियता में गिरावट आई है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, हर साल खुलने वाले 200 नए मल्टीप्लेक्स के कारण लगभग 150 सिंगल स्क्रीन सिनेमा बंद हो जाते हैं। कोरोना महामारी ने मल्टीप्लेक्स को भी प्रभावित किया है। लिहाजा इससे OTT की लोकप्रियता में बढ़ोतरी हुई है। लोगों को घर बैठे-बैठे दमदार और अपनी पसंदीदा कहानियां देखने को मिल रही हैं।
OTT की ओर आकर्षित हो रहे दर्शक
थिएटर मालिकों का कहना है कि बॉलीवुड खराब कंटेंट बना रहा है और फ्लॉप फिल्मों के कारण भी लोग सिनेमाघरों का रुख करने से कतरा रहे हैं। उधर OTT पर खासतौर से तरह का कंटेंट मौजूद है। कई प्लेटफॉर्म पर मुफ्त में एक से बढ़कर एक फिल्में और वेब सीरीज देखने को मिल रही हैं। दर्शकों को जो आजादी OTT पर मिलती है, वो सिनेमाघरों में नहीं मिल पाती, इसलिए लोग OTT की ओर ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं।
सैटेलाइट टीवी भी बना मनोरंजन का जरिया
टीवी की लोकप्रियता बढ़ने के बाद से सिंगल स्क्रीन सिनेमा को चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। सैटेलाइट टीवी ने लोगों को दुनियाभर की फिल्में और शो देखने में सक्षम बनाया। लिहाजा उन्हें स्थानीय सिनेमा में जाने की जरूरत महसूस ही नहीं हो रही है।
मल्टीप्लेक्स की ओर क्यों भाग रहे दर्शक?
BookMyShow के हालिया सर्वे के अनुसार, 90 प्रतिशत भारतीय अब भी बड़ी स्क्रीन पर फिल्में देखना पसंद करते हैं। ऐसे में सिनेमाघरों में फिर से उछाल तो देखने को मिल रहा है, लेकिन यह उछाल मुख्य रूप से मल्टीप्लेक्स में देखा जा रहा है। कोई भी व्यक्ति खराब रख-रखाव वाले सिंगल-स्क्रीन थिएटर में फिल्म देखना क्यों पसंद करेगा, जहां खाने-पीने के सीमित विकल्प हों और फिल्म से पहले या बाद में बॉलिंग या शॉपिंग जैसे मनोरंजन के विकल्प न हों?
न्यूजबाइट्स प्लस
पूर्व सिनेमैटोग्राफर हेमंत चतुवेर्दी के एक हालिया शोध के मुताबिक, 1990 के दशक में भारत में लगभग 25,000 सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर थे, जो अब घटकर लगभग 6,000 या उससे भी कम रह गए हैं और जो बचे हैं, उनका भविष्य भी खतरे में है।