#NewsBytesExplainer: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप होने के बाद भी कैसे कमाई करती हैं फिल्में?
बॉलीवुड में हर साल न जाने कितनी फिल्में बनती हैं। कुछ सफल हो जाती हैं तो कुछ दर्शकों की कसौटी पर खरी नहीं उतरतीं और बॉक्स ऑफिस पर दम तोड़ देती हैं। 2023 भले ही बॉलीवुड के लिए अच्छा रहा हो, लेकिन इस साल भी ऐसी कई फिल्में आईं, जो बॉक्स ऑफिस पर फेल हो गईं। भले ही छोटे बजट की फिल्मों ने नुकसान झेला हो, लेकिन बड़े बजट वाली फिल्मों ने अपनी लागत निकाल ही ली।
बड़े बजट की फिल्मों के निर्माताओं को क्यों नहीं होता घाटा?
फिल्म बनाने में निर्माता का पैसा लगता है। वो ही निर्देशक से लेकर कलाकार, कहानी, पटकथा लिखने वाले, तकनीशियन और जूनियर कलाकारों को काम पर रखता है। फिल्म का असली मालिक ही निर्माता होता है, लेकिन बड़ी फिल्म अगर पिट गई तो अमूमन नुकसान निर्माता को नहीं, बल्कि डिस्ट्रीब्यूटर को होता है। फिल्म समीक्षकों और व्यापार विश्लेषकों के मुताबिक, बड़े बजट की फिल्में अगर बॉक्स ऑफिस पर धड़ाम हो जाएं तो निर्माताओं की सेहत पर असर नहीं पड़ता।
डिस्ट्रीब्यूटर को कैसे झेलना पड़ता है नुकसान?
अमूमन जब कोई बड़ी फिल्म बनकर तैयार हो जाती है तो निर्माता इसे मोटी रकम में डिस्ट्रीब्यूटर को बेच देते हैं। अब अगर फिल्म बड़ी है तो उसे लेकर उत्साह भी जबरदस्त होता है। लिहाजा डिस्ट्रीब्यूटर भी ज्यादा पैसों में फिल्म खरीदने से परहेज नहीं करते, लेकिन जब फिल्म फ्लॉप हो जाती है तो निर्माता को कोई नुकसान नहीं होता क्योंकि वह पहले ही लागत से ज्यादा पैसे वसूल चुका होता है। उधर डिस्ट्रीब्यूटर को बड़ा नुकसान झेलना पड़ता है।
उदाहरण से समझिए
आमिर खान की फिल्म 'लाल सिंह चड्ढा' का बॉक्स ऑफिस पर इतना बुरा हश्र होगा, खुद आमिर ने कभी नहीं सोचा था। 180 करोड़ रुपये के बजट में बनी यह फिल्म सिर्फ 129 करोड़ रुपये बटोर पाई थी। फिल्म के निर्माता भले ही आमिर थे, लेकिन डिस्ट्रीब्यूशन किसी और ने किया। तभी तो आमिर को आगे आकर कहना पड़ा कि वह डिस्ट्रीब्यूटर को हुए घाटे की भरपाई करेंगे। ऐसा ही कुछ विजय देवरकोंडा की फिल्म 'लाइगर' के साथ हुआ था।
2 तरह से होता है फिल्मों का सौदा
डिस्ट्रीब्यूटर को फिल्म 2 तरह से बेची जाती है। पहला है एडवांस। मानो किसी फिल्म का डिस्ट्रीब्यूटर, निर्माता को 15 करोड़ रुपये देता है। इसके बाद अगर फिल्म सिर्फ 10 करोड़ रुपये की कमाई कर पाती है तो निर्माता को 5 करोड़ रुपये डिस्ट्रीब्यूटर को वापस करने होंगे। दूसरा है मिनिमम गारंटी। इसके तहत डिस्ट्रीब्यूटर रिलीज से पहले निर्माता को पूरा भुगतान कर देता है। इसके बाद फिल्म के फ्लॉप होने के बाद भी उसे वापस कोई पैसा नहीं मिलता।
किस आधार पर फिल्म खरीदते हैं डिस्ट्रीब्यूटर?
फिल्म रिलीज होने से पहले डिस्ट्रीब्यूटर को दिखाई जाती हैं। फिल्म देखने के बाद ही डिस्ट्रीब्यूटर उसकी कीमत तय करते हैं। फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर को जितनी पसंद आती है, उसी के हिसाब से वो फिल्मों पर पैसे खर्च करते हैं। प्रोडक्शन हाउस, निर्माता आदि देखकर डिस्ट्रीब्यूटर फिल्मों को खरीदता है। बॉलीवुड में भले ही अब कलाकारों से ज्यादा फिल्म की कहानी को तवज्जो मिलने लगी हो, लेकिन कोई शक नहीं कि बड़े स्टार के कारण डिस्ट्रीब्यूटर भी खिंचे चले आते हैं।
OTT या सैटेलाइट राइट्स, स्पॉन्सरशिप से भी होता है फिल्म को फायदा
रिलीज के तय समय के बाद फिल्म को टीवी या OTT प्लेटफॉर्म पर दिखाया जाता है। इसके लिए चैनल या OTT प्लेटफॉर्म को फिल्म के राइट्स लेने पड़ते हैं, जिनके लिए वे करोड़ों रुपये चुकाते हैं। इसके अलावा कई बार किसी बड़ी कंपनी के प्रचार के लिए फिल्म में शोरूम या उसके नाम या लोगो को दिखाया जाता है। इसके लिए निर्माता कंपनियों से करोड़ों रुपये लेते हैं, वहीं म्यूजिक राइट्स बेचकर भी फिल्म को फायदा पहुंचता है।
'शमशेरा' ने भी पहले ही निकाल ली थी लागत
कोरोना के बाद कई फ्लॉप फिल्मों ने डिजिटल, सैटेलाइट राइट्स और नॉन थिएट्रिकल राइट्स की मदद से नुकसान की भरपाई कर ली। रणबीर कपूर की 'शमशेरा' बॉक्स ऑफिस पर धड़ाम हो गई थी, लेकिन रिलीज से पहले ही यशराज फिल्म्स ने इसकी लागत निकाल ली।