#NewsBytesExplainer: सिनेमाघर में कैसे रिलीज होती है फिल्म? जानिए डिजिटल सैटेलाइट तकनीक के बारे में
बॉलीवुड में हर हफ्ते सिनेमाघरों में कोई न कोई फिल्म रिलीज होती है। आज भले ही OTT के चलन से ज्यादातर लोग घर में बैठकर फिल्म देखने का लुत्फ उठाते हों, लेकिन सिनेमाघरों में फिल्म देखने का अपना अलग ही मजा है। आपने भी सिनेमाहॉल में जाकर कई फिल्में देखी होंगी और देखते भी होंगे, लेकिन क्या कभी यह सोचा कि वो फिल्म सिनेमाघर तक पहुंची कैसे। आज हम आपको इसी प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताने वाले हैं।
स्क्रीन से पहले अलग-अलग सिनेमाघरों में भेजी जाती है फिल्म
स्क्रीन होने से पहले फिल्म की हार्ड डिस्क ड्राइव को साधारण ब्रीफकेसनुमा बॉक्स में रखकर अलग-अलग सिनेमाघरों में भेजा जाता है। इन बक्सों को Peli 1300 फ्लाइट केस नाम से जाना जाता है। फिल्म की हार्ड-ड्राइव के साथ कई और उपकरण भी इस बक्से में मौजूद होते हैं। इस पूरे पैकेज को डिजिटल सिनेमा पैकेज कहते हैं। इस बॉक्स के ऊपर फिल्म का एस्पेक्ट रेश्यो, साउंड फॉर्मेट और फिल्म की अवधि से जुड़ीं जानकारियां लिखी होती हैं।
डिस्ट्रीब्यूटर खरीदता है फिल्म के राइट्स
फिल्म का असली मालिक होता है इसका निर्माता, जो फिल्म पूरी हो जाने के बाद देश के सभी बड़े डिस्ट्रिब्यूटर्स को अपनी फिल्म का ड्राफ्ट दिखाता है और डिस्ट्रिब्यूटर्स को प्रस्ताव देता है कि वे उसकी फिल्म के राइट्स खरीदें। अगर फिल्म बड़ी स्टारकास्ट के साथ बनी है और दमदार है तो निर्माता अपनी शर्तों पर फिल्म डिस्ट्रिब्यूटर्स को बेच देता है, वहीं अगर फिल्म में दम नहीं है तो डिस्ट्रिब्यूटर्स अपनी शर्तों पर फिल्म खरीदते हैं।
कॉर्पोरेट्स भी खरीदते हैं फिल्म
निर्माता फिल्म खरीदने के बाद डिस्ट्रिब्यूटर अपने इलाके के सिनेमाघरों के मालिकों को फिल्म चलाने के राइट्स हफ्ते के आधार पर देते हैं। वैसे आजकल डिस्ट्रीब्यूटर्स की जगह कॉर्पोरेट्स ने ले ली है। अब कॉर्पोरेट्स फिल्म बनने से पहले ही निर्माता को मोटी रकम देकर फिल्म खरीद लेते हैं। फिर अपने नेटवर्क के आधार पर फिल्म को सिनेमाघरों में चलाते हैं। इन कॉर्पोरेट्स का नेटवर्क जिन जगहों पर नहीं होता, वहां वे डिस्ट्रिब्यूटर्स के माध्यम से अपनी फिल्म चलाते हैं।
डिजिटल सैटेलाइट तकनीक का इस्तेमाल
सिनेमा के बदलते स्वरुप में अब कई बड़े शहरों में सिनेमाघर में सैटेलाइट तकनीक इस्तेमाल होती है, जिसमें पिक्चर और साउंड क्वालिटी काफी बेहतर होती है। डिजिटल सैटेलाइट तकनीक में एक सिग्नल रिसीविंग सिस्टम प्रोजेक्टर रूप में सेट किया जाता है, जहां से फिल्म स्क्रीन होती है। इसके साथ ही एक डिश एंटीना पहले से ही सिनेमाघर के छत पर लगाया जाता है। इसमें डिस्ट्रीब्यूटर करीब लगभग 1 हफ्ते के लिए निर्माता को एक निश्चित धनराशि का भुगतान करता है।
न्यूजबाइट्स प्लस
डिजिटल सैटेलाइट तकनीक के आने से हार्ड ड्राइव को लाने में लगने वाले समय की काफी बचत हुई है, वहीं दर्शकों को अच्छी क्वालिटी की फिल्म देखने मिलती हैं। हालांकि, कई शहरों में आज भी सिनेमाघरों में हार्ड ड्राइव के जरिए फिल्म दिखाई जाती है।
सिनेमा के डिजिटल होने से आया बदलाव
मल्टीप्लेक्स और डिजिटल तकनीक की वजह से पिछले 5 सालों में फिल्मों को चाहने वाले लोगों ने एक बार फिर से सिनेमा हॉल की तरफ रुख किया है। वर्षों तक फिल्में रील पर रिकार्ड कर सिनेमाहॉल तक पहुंचाई जाती थीं। तब हर प्रिंट पर लगभग 1 लाख रुपये खर्च किए जाते थे। लाने-ले जाने का खर्च अलग, लेकिन सिनेमा के डिजिटल हो जाने से फिल्म की रील की जगह CD और हार्ड ड्राइव ने ले ली है।
डिजिटल तकनीक का उदय
भारत में अब तक एक स्क्रीन वाले 5,600 से ज्यादा सिनेमाघरों को डिजिटलाइज किया जा चुका है। फिल्में अब सैटेलाइट सिग्नल की मदद से सिनेमाघर तक पहुंचती हैं। यही कारण है कि अब फिल्मों के हजारों-लाखों प्रिंट एक साथ रिलीज होते हैं। डिजिटलाइजेशन के साथ सिनेमा जगत में कई और बदलाव भी आए हैं। फिल्मों की क्वालिटी में सुधार आया है। 3डी की क्वालिटी में भी फर्क आया है। पुरानी फिल्मों को भी अब 3डी में बदला जाने लगा है।