फिल्म 'आई लव यू' रिव्यू: एकतरफा प्यार का खतरनाक अंत, रकुल भी दिखीं बेरंग
रकुल प्रीत सिंह किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। वह कई फिल्मों में अपने उम्दा अभिनय का परिचय दे चुकी हैं। साउथ के बाद उन्होंने बॉलीवुड का रुख किया और हिंदी भाषी दर्शकों के बीच भी अपनी खुद की एक अलग पहचान बनाई। उनकी फिल्म 'आई लव यू' का इंतजार खासकर उनके प्रशंसकों को बेसब्री से था। निखिल महाजन के निर्देशन में बनी यह फिल्म 16 जून को जियो सिनेमा पर आ गई है। आइए जानते हैं कैसी है फिल्म।
रकुल की जिंदगी में प्यार लाता है भूचाल
फिल्म की कहानी के केंद्र में सत्या प्रभाकर (रकुल) है, जो मुंबई में काम करती है और अपने प्रेमी (अक्षय ओबेरॉय) के साथ रिश्ते में एक कदम आगे बढ़ाने को तैयार है, लेकिन इसी बीच उसकी जिंदगी में एक ऐसे शख्स (पावेल गुलाटी) की एंट्री होती है, जो उसे जुनून की हद तक प्यार करता है और रकुल की जान पर बन आता है। उसके एकतरफा प्यार का अंजाम कितना बुरा होता है, जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।
आ जाती हैं शाहरुख की फिल्म 'डर' की याद
डेढ़ घंटे की यह फिल्म शुरुआत में दिलचस्पी जगाती है, लेकिन 20 मिनट बाद मजा किरकिरा हो जाता है। यह शाहरुख खान की फिल्म 'डर' से प्रेरित लगती है, जिसमें शाहरुख ने पीछा करने वाले एक ऐसे आशिक की भूमिका अदा की थी, जो अपना प्यार पाने के लिए किसी का कत्ल करने से भी पीछे नहीं हटता। बस यहां भी मामला ऐसा ही है। प्यार का जुनूनी होना कितना खतरनाक हो सकता है, फिल्म में यही दिखाया गया है।
रकुल की ओवर एक्टिंग ने किया डिब्बा गोल
रकुल बस फिल्म में खूबसूरत दिखी हैं, लेकिन असल में वह अपनी भूमिका को समझ नहीं पाईं। 'आई लव यू' में उनकी ओवर एक्टिंग ने निराश किया है। उनके अभिनय में स्वाभाविकता नहीं दिखी। इस बार हिंदी पट्टी के दर्शकों के बीच रकुल का जादू नहीं चल पाया। स्क्रिप्ट रटकर संवाद बोल देना अभिनय नहीं होता है। किरदार की भाव भंगिमा निखरकर आनी चाहिए। हालांकि, इस बात का ध्यान निर्देशक को रखना चाहिए था।
अन्य कलाकार
पावेल फिल्म में रकुल से बेहतर लगे हैं, लेकिन उनका अभिनय भी ऐसा नहीं है, जो फिल्म देखने की वजह बने। अक्षय ओबेरॉय का अभिनय भी औसत है। कुल मिलाकर कलाकारों की अदाकारी भी इस फिल्म की लाज नहीं बचा पाई।
निर्देशक से कहां हुई चूक?
यह फिल्ल्म बनाते समय निर्देशक निखिल महाजन की क्या सोच रही होगी, समझ नहीं आता। कहीं-कहीं तो ऐसा लगता है कि 'डर' और 'एक हसीना थी' जैसी फिल्मों में नया कलेवर जोड़कर कहानी परोस दी गई। मतलब इसमें कुछ नयापन नहीं है। यह नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज 'यू' की भी याद दिलाती है। दूसरी तरफ उन्होंने फिल्म के किरदार ठीक से नहीं गढ़े। नतीजतन न इसकी कहानी बांधे रखती है और ना ही किरदार से कोई जुड़ाव महसूस होता है।
संगीत और सिनेमैटोग्राफी
फिल्म का संगीत ठीक-ठाक है। बैकग्राउंड में बज रहे पुराने गीत सुनने में अच्छे लगते हैं। सिनेमैटोग्राफी बेहतर हो सकती थी। फिल्म में दिखाए गए दृश्य ऐसे नहीं हैं, जो असर छाेड़ें। संगीतकार या सिनेमैटोग्राफर ने कुछ ऐसा कमाल नहीं किया, जो याद रह जाए।
देखें या न देखें?
क्यों देखें?- थ्रिलर फिल्मों के शौकीन हैं तो जियो सिनेमा पर मुफ्त में मौजूद यह फिल्म आपको उतना निराश नहीं करेगी। इसमें जहां लव स्टोरी है, वहीं मर्डर भी है। फिल्म में एक रात की कहानी कही गई है। रफ्तार तेज है, इसलिए इसे एक मौका दिया जा सकता है। क्यों न देखें?- अगर फिल्म का नाम देख इसे देखने वाले हैं तो ऐसी गलती न करें क्योंकि रोमांटिक थ्रिलर से ज्यादा यह साइको थ्रिलर लगती है। न्यूजबाइट्स स्टार- 1.5/5