'सलाम वेंकी' रिव्यू: कमजोर स्क्रिप्ट पर बेहतरीन सिनेमा है काजोल की ये फिल्म
क्या है खबर?
काजोल की फिल्म 'सलाम वेंकी' काफी समय से चर्चा में है। बीते दिनों फिल्म की स्पेशल स्क्रीनिंग से कई सितारों की तस्वीरें सामने आई थीं।
9 दिसबंर को फिल्म बड़े पर्दे पर रिलीज हो चुकी है। फिल्म सच्ची घटनाओं और किरदारों से प्रेरित है। फिल्म का निर्देशन अभिनेत्री-निर्देशिका रेवती ने किया है।
फिल्म के ट्रेलर से दर्शकों को अंदाजा था कि फिल्म जीवन और मौत पर आधारित एक प्रेरक फिल्म होगी।
आइए, जानते हैं क्या ऐसा ही है।
कहानी
आने वाली मौत से पहले इच्छामृत्यु चाहता है वेंकी
मुख्य किरदार वेंकी, DMD नाम की बीमारी पीड़ित है। उसकी मां (काजोल) ने अपना जीवन उसकी देखभाल में लगाया, लेकिन अब वेंकी इच्छामृत्यु चाहता है।
एक मां के लिए यह बेहद कठिन निर्णय होता है, लेकिन वह अपने बेटे की इच्छा पूरी करने का फैसला करती है।
कानून इच्छामृत्यु की इजाजत नहीं देता और इसलिए वेंकी का परिवार कोर्ट का दरवाजा खटखटाता है।
वेंकी जो अब तक शारीरिक लड़ाई लड़ रहा था, अब एक कानूनी लड़ाई भी लड़ता है।
जानकारी
न्यूजबाइट्स प्लस
यह फिल्म एक युवा चेस खिलाड़ी कोलावेनु वेंकटेश पर आधारित है। वह DMD से पीड़ित थे और इच्छामृत्यु के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे। साल 2004 में कोर्ट द्वारा उनकी याचिका खारिज होने के दो दिन बाद उन्होंने दम तोड़ दिया था।
अभिनय
वेंकी की दुनिया में ले गए सभी कलाकार, स्टार पावर के लिए आए आमिर खान
विशाल जेठवा (वेंकी) पूरी फिल्म में सिर्फ बिस्तर पर रहे, लेकिन अपने अभिनय से उन्होंने पूरी फिल्म अपने नाम कर ली।
वेंकी की मां के किरदार में काजोल ने सारे संघर्ष और तकलीफ को पर्दे पर उड़ेल दिया।
फिल्म में आमिर खान गेस्ट अपीयरेंस में हैं। हालांकि, ऐसा लगता है उन्हें फिल्म में सिर्फ स्टार पावर के लिए लिया गया है।
राजीव खंडेलवाल, राहुल बोस, प्रकाश राज, रिद्धी कुमार समेत सभी कलाकार आपको एक अलग दुनिया में ले जाते हैं।
संगीत और सिनेमैटोग्राफी
भावनाओं को गहराई में ले जाते हैं संगीत और सिनेमैटोग्राफी
फिल्म में कलाकारों से ज्यादा कैमरे ने संवाद किया है। हर फ्रेम कहानी की संजीदगी को बयां करता है।
वेंकी की बहादुरी कभी प्रेरित करती है, तो कभी उसकी हालत डराती है। उसकी मां को उसे खोने का डर भी है और उसके मरने के अधिकार के लिए कानूनी लड़ाई भी लड़ रही है।
सिनेमैटोग्राफी और बैकग्राउंड म्यूजिक इन सभी इमोशन को गहराई में ले जाते हैं और आप फिल्म को अपलक देखते रह जाते हैं।
निर्देशन
रुलाने में निकल गई एक अच्छा संदेश देने वाली फिल्म
फिल्म में वेंकी के आशावादी नजरिए को दिखाने की कोशिश की गई, लेकिन यह उसकी तकलीफों पर ही केंद्रित रह गई। यह फिल्म पहले दृश्य से रुलाती है और आखिर तक रुलाती ही है।
फिल्म के कई दृश्यों में जिंदगी के प्रति उत्साह दिखाने के प्रयास होता है, लेकिन वह दृश्य भी भावुक करके निकल जाता है।
इच्छामृत्यु और अंगदान फिल्म की स्क्रिप्ट का अहम हिस्सा हैं, लेकिन निर्देशक इसे लेकर कुछ ठोस देने में कामयाब नहीं रहीं।
गानें
गानों से आई एक भारी फिल्म में मिठास
फिल्म का संगीत बेजोड़ है। भावनात्मक रूप से इस भारी-भरकम फिल्म में गाने कुछ मिठास भरते हैं।
पलक मुच्छल और जुबिन नौटियाल का 'यूं तेरे हुए हम' तो पहले से ही चर्चा में था। इसके अलावा 'जो तुम साथ हो', 'अंडा बटा पराठा' जैसे गीत फिल्म के इमोशन को दर्शकों से जोड़ते हैं।
वेंकी का किरदार गानों पर थिरक नहीं सकता, ऐसे में इसकी कमी भी फिल्म की सिनैमैटोग्राफी शानदार तरीके से पूरी करती है।
निष्कर्ष
देखें या न देखें?
क्यों देखें?- गंभीर इमोशनल फिल्में पसंद हैं या काजोल के प्रशंसक हैं तो यह फिल्म देख सकते हैं। 'द स्काई इज पिंक' जैसी फिल्म को पसंद किया था तो यह फिल्म भी देख सकते हैं।
क्यों न देखें?- उदास करने वाली भावुक फिल्मों से परहेज है तो इस फिल्म से दूर रहें। यदि किसी करीबी का इलाज चल रहा है तो यह फिल्म देखने में मुश्किल होगी।
न्यूजबाइट्स स्टार- 3.5/5