क्या है न्यूजीलैंड का सबसे बड़ा माओरी विरोध प्रदर्शन, जिसमें हजारों लोगों ने निकाला मार्च?
न्यूजीलैंड इस समय चल रहे माओरी समुदाय के विराेध प्रदर्शन से जूझ रहा है। यह देश का सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन है। यह प्रदर्शन पिछले सप्ताह संसद में पेश हुए एक विधेयक प्रस्ताव के विरोध में किया जा रहा है। मंगलवार को भी 35,000 से अधिक माओरी समुदाय के लोग देश के विभिन्न हिस्सों से मार्च करते हुए वेलिंगटन में संसद के बाहर जमा हुए और विधेयक को रद्द करने की मांग की। ऐसे में आइए पूरा मामला जानते हैं।
संसद में क्या पेश किया था विधेयक प्रस्ताव?
दरअसल, 14 नवंबर को न्यूजीलैंड की ACT पार्टी ने संसद में 1840 में हुई 'ट्रीटी ऑफ वेटांगी' संधि को दोबारा से परिभाषित करने को लेकर एक विधेयक प्रस्ताव पेश किया था। ACT पार्टी के नेता डेविड सेमोर का कहना था कि कि इस प्रस्ताव से माओरी नागरिकों को मिलने वाली विशेष सुविधा समाप्त हो जाएगी और लोगों को समान अधिकार मिलने का रास्ता साफ हो जाएगा। इस विधेयक को लेकर देश के माओरी समुदाय के लोगों में रोष फैल गया।
क्या है 'ट्रीटी ऑफ वेटांगी' संधि?
'ट्रीटी ऑफ वेटांगी' संधि 1840 में ब्रिटिश क्राउन और 500 से अधिक माओरी नेताओं के बीच हस्ताक्षरित हुई थी। इसे न्यूजीलैंड का संस्थापक दस्तावेज माना जाता है और इसे माओरी और यूरोपीय न्यूजीलैंडवासियों के बीच सत्ता साझा करने के समझौते के रूप में भी देखा जाता है। यह संधि यह अंग्रेजी और माओरी दोनों भाषाओं में उपलब्ध है। इसमें माओरी लोगों को ब्रिटिश नागरिकों के सभी अधिकार और विशेषाधिकार देने का वादा किया गया था।
माओरी समुदाय क्यों कर रहा है विधेयक का विरोध?
इस विवादित विधेयक प्रस्ताव का उद्देश्य सभी नागरिकों को समान अधिकार देना है। इसके समर्थक तर्क देते हैं कि 'ट्रीटी ऑफ वेटांगी' संधि में माओरी समुदाय को बढ़ावा देने का प्रयास किया गया था, लेकिन वर्तमान में यह संधि न्यूजीलैंड के कानूनों और नीतियों को प्रभावित करती है। इस संधि के कारण गैर-माओरी नागरिकों के अधिकारों का हनन हो रहा है। ऐसे में संधि की दोबारा समीक्षा की जानी चाहिए। इसी कारण माओरी लोग विरोध कर रहे हैं।
कौन हैं माओरी जनजाति?
माओरी जनजाति न्यूजीलैंड की एक प्राचीन और मूल निवासी जनजाति है। उनकी संस्कृति में धरती और पूर्वजों से गहरा संबंध होता है। माओरी भाषा 'ते रेओ माओरी' उनकी पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसे आज भी कई लोग बोलते हैं। माओरी लोग खुद को 'कायटियाकी' यानी प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षक मानते हैं और 'वाकापापा' के सिद्धांत पर विश्वास करते हैं, जो कि सभी जीवित और निर्जीव वस्तुओं के बीच एक जुड़ाव को दर्शाता है।
कैसे हुई विरोध की शुरुआत?
गत 16 नवंबर को स्पीकर जैरी ब्राउनली ने 22 वर्षीय सांसद हाना-राविती माईपी-क्लार्क से विधेयक पर उनकी पार्टी का रूख जानना चाहा था। इस पर माईपी-क्लार्क ने विधेयक की कॉपी फाड़ दी और पारंपरिक हाका नृत्य विधेयक का विरोध किया। अन्य विपक्षी नेताओं ने भी उनका समर्थन किया और हाका नृत्य में शामिल हो गए। इसके बाद संसद सत्र को स्थगित करना पड़ा। बाद में स्पीकर ने घटना को अनादरपूर्ण मानते हुए माईपी-क्लार्क को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया।
क्या होता है 'हाका' नृत्य?
माओरी संस्कृति में हाका नृत्य शक्ति, एकता और साहस का प्रतीक है। यह नृत्य जोशीले हावभाव, दमदार आवाज और समन्वित शारीरिक मुद्राओं के साथ किया जाता है। इसे किसी संदेश को व्यक्त करने, विरोध दर्ज कराने या अतिथियों के स्वागत में किया जाता है।
'हिकोई' के जरिए पूरे न्यूजीलैंड में फैला विरोध प्रदर्शन
विधेयक का संसद में विरोध होने के बाद माओरी समुदाय ने 9 दिवसीय 'हिकोई' यानी पैदल मार्च का आह्वान कर दिया। इसमें देश के विभिन्न कौने से प्रदर्शनकारी पैदल मार्च करते हुए वेलिंगटन में स्थित संसद के लिए रवाना हो गए। करीब 15,000 से अधिक लोगों ने इसमें हिस्सा लिया। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने पारंपरिक माओरी कपड़े पहने और हाथों में माओरी झंडा लेकर चले। इस दौरान लोगों ने माओरी गीत गाकर भी विरोध जताया।
यहां देखें प्रदर्शन का वीडियो
प्रदर्शनकारियों ने किया संसद का घेराव
'हिकोई' के पूरा होने के बाद करीब 35,000 से अधिक लोग आज संसद के बाहर पहुंचे। इतनी संख्या में लोगों के वेलिंगटन पहुंचने से शहर की सड़के जाम हो गई और आम लोगों को आवागम में परेशानी हुई। हालांकि, सुरक्षाकर्मियों ने भीड़ को संसद में प्रवेश करने से रोक लिया। इसके बाद प्रदर्शनकारी संसद के बारह ही बैठ गए और अब विधेयक को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं। यह सरकार के लिए चिंता का विषय है।
अब क्या है विधेयक का भविष्य?
इस विधेयक ने संसद में अपनी पहली रीडिंग पास कर ली है, लेकिन इसे आगे के चरणों में पारित होने की संभावना कम है। संसद ने इसे मतदान के लिए बढ़ाया है। इस बीच नेशनल पार्टी और न्यूजीलैंड फर्स्ट जैसी सहयोगी पार्टियों ने स्पष्ट कर दिया है कि वे इसका समर्थन नहीं करेंगे। न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री क्रिस्टोफर लक्सन का कहना है कि इस विरोध को देखते हुए यह विधेयक किसी भी सूरत में कानून का रूप नहीं ले सकता है।