क्या है पाकिस्तान का विवादित ईशनिंदा कानून और ये फिर चर्चा में क्यों आया?
पाकिस्तान के सियालकोट में भीड़ ने ईशनिंदा के आरोप में पहले एक श्रीलंकाई नागरिकों को पीट-पीटकर मार डाला और फिर उसके शव को सरेआम आग के हवाले कर दिया। पाकिस्तान में पहले भी इस तरह के कई मामले सामने आए थे, जिनकी दुनियाभर में चर्चा हुई थी। इस ताजा घटना के बहाने समझने की कोशिश करते हैं कि पाकिस्तान का ईशनिंदा कानून क्या है और क्यों इसे लेकर विवाद की स्थिति बनी रहती है।
पाकिस्तान के लिए शर्मिंदगी का विषय बनी घटना
सियालकोट में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के मैनेजर प्रियानाथ कुमार को ईशनिंदा के आरोप में पीटकर मार डाला गया था। वो बीते करीब नौ सालों से यहां काम कर रहे थे। पुलिस ने इस मामले में 100 से अधिक आरोपियों को गिरफ्तार किया है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने इसे देश के लिए 'बेहद शर्मनाक दिन' बताया था। इस घटना के बाद उन्होंने श्रीलंका के राष्ट्रपति से बात की और दुख जताया।
ईशनिंदा कानून की शुरुआत कहां से हुई?
धर्म से जुड़े आपराधिक मामलों को 1860 में अंग्रेजों के राज के दौरान संहिताबद्ध किया गया और 1927 में इनका दायरा बढ़ाया गया था। शुरुआत में इसका मकसद उस व्यक्ति को दंड देना था, जो जानबूझकर किसी धार्मिक वस्तु या जगह को नुकसान पहुंचाता था। साथ ही इसके तहत किसी की धार्मिक भावनाओं को आहत करने को गैरकानूनी माना गया था। इस कानून के तहत 1-10 साल की सजा होती और जुर्माने का प्रावधान किया गया था।
आजादी के बाद पाकिस्तान ने कड़ा किया कानून
आजादी के बाद पाकिस्तान ने इस कानून को अपना लिया था और 1980 के दशक की शुरुआत में इसमें और कड़ा किया गया। साल 1982 में कानून में एक धारा जोड़कर प्रावधान किया गया कि अगर कोई व्यक्ति मुसलमानों के पवित्र ग्रंथ कुरान को अपवित्र करता है उसे उम्रकैद की सजा होगी। चार साल बाद यानी 1986 में एक और धारा जोड़कर प्रावधान किया गया कि पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ ईशनिंदा करने पर मौत या उम्रकैद की सजा दी जाएगी।
धाराएं सख्त होने के बाद बढ़े मामले
जनरल जिया उल हक ने ईशनिंदा के इस कानून को पाकिस्तान दंड संहिता की धारा 295-B और 295-C के तहत लागू किया था। सख्त धाराएं जोड़ने से पहले 1927 से लेकर 1985 तक इस कानून के तहत केवल 58 मामले ही कोर्ट तक पहुंचे थे, लेकिन 1986 के बाद इनमें एकदम उछाल देखा गया। पाकिस्तान का अल्पसंख्यक समुदाय आरोप लगाता रहा है कि इस कानून का उसके खिलाफ दुरुपयोग किया जाता है।
अदालत के बाहर हो चुकी हैं करीब 80 हत्याएं
1986 के बाद से अल्पसंख्यकों के खिलाफ ईशनिंदा के 1,500 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं। इनमें से किसी भी मामले में अदालत ने मौत की सजा नहीं सुनाई थी, लेकिन अदालत के बाहर करीब 80 लोगों की हत्या कर दी गई। इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस की 2015 की रिपोर्ट कहती है कि ट्रायल कोर्ट्स ने ईशनिंदा के जिन मामलों में सजा सुनाई, उनमें से 80 प्रतिशत में बाद में सजा पलट या खत्म कर दी गई।
आसिया बीबी का मामला रहा सबसे विवादित
पाकिस्तान के ईशनिंदा कानून का सबसे बदनाम मामला आसिया बीबी से जुड़ा रहा। दरअसल, ईसाई धर्म से जुड़ीं आसिया बीबी ने मुस्लिम महिलाओं को जग देने से पहले उससे पानी पी लिया था। इससे शुरू हुई कहासुनी आसिया बीबी के लिए आफत बन गई। उन्हें ईशनिंदा के आरोप में गिरफ्तार किया गया और 2010 में अदालत ने उन्हें दोषी मानकर मौत की सजा सुनाई थी। 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इस सजा को रद्द किया था।
रिहाई का हुआ था विरोध
आसिया बीबी को इस आरोप में कई साल तक जेल में रहना पड़ा और उनके परिवार पर कई हमले हुए। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी उनकी रिहाई का विरोध हुआ था। आसिया बीबी 2019 में पाकिस्तान छोड़कर कनाडा चली गई थीं।
कानून का विरोध करने पर भी हत्या
पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून के तहत मौत की सजा का प्रावधान है, लेकिन इसके खिलाफ बोलना भी खतरे से खाली नहीं है। पाकिस्तान के पंजाब के तत्कालीन गवर्नर सलमान तासीर आसिया बीबी को हुई सजा के खिलाफ थे और उन्होंने इस कानून में संशोधन की मांग की थी। इसी वजह से 2011 में उनके बॉडीगार्ड ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी। इसी तरह ईशनिंदा कानून के खिलाफ बोलने पर पूर्व मंत्री शाहबाज भट्टी की हत्या की गई थी।
आठ साल के बच्चे पर भी लग चुका कानून
इसी साल अगस्त में पाकिस्तान के पंजाब में एक आठ वर्षीय हिंदू बच्चे पर ईशनिंदा कानून के तहत मामला दर्ज हुआ था। किसी मासूम पर यह कानून लगने का यह पाकिस्तान के इतिहास का पहला मामला था।
इन देशों में हैं धर्म के अपमान से जुड़े कानून
2015 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, मलेशिया, इंडोनेशिया, मिस्त्र समेत दुनिया के करीब 26 देशों में धर्म के अपमान से जुड़े कानून हैं, जिनके तहत सजा और जुर्माने का प्रावधान है। इनमें से 70 फीसदी मुस्लिम बहुल आबादी वाले देश है। वहीं सऊदी अरब, पाकिस्तान और ईरान में इन कानूनों के तहत मौत तक की सजा का प्रावधान है। मलेशिया का कानून काफी हद तक पाकिस्तान के समान है, लेकिन इसमें अधिकतम तीन साल की सजा का प्रावधान है।