NRC की अंतिम सूची से बाहर 19 लाख लोगों के लिए अब आगे क्या?
क्या है खबर?
शनिवार को असम के नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन (NRC) की अंतिम सूची में 19 लाख लोगों को जगह नहीं मिली।
लगभग 3.3 करोड़ लोगों ने इस सूची में अपना नाम शामिल करवाने के लिए आवेदन किया था।
सूची से बाहर लोगों को अभी फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में अपील करने के लिए 120 दिन का समय दिया गया है।
आइये, जानते हैं कि इस सूची में शामिल होने वाले और शामिल होने से रहने वाले लोग कौन हैं।
NRC
केवल असम में लागू है यह व्यवस्था
असम में 1951 में पहली जनगणना के बाद NRC का पहला ड्राफ्ट जारी हुआ था। पूरे देश में असम ही एकमात्र राज्य है, जहां यह व्यवस्था लागू है।
अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इसे अपडेट किया जा रहा है। इसके तहत 24 मार्च, 1971 से पहले राज्य में रहने वाले लोगों को यहां का नागरिक माना जाता है।
अगर कोई नागरिक इसके बाद असम में आया है तो उसे खुद को असम का नागरिक साबित करना पड़ेगा।
ड्राफ्ट
पिछले साल जुलाई में आया था ड्राफ्ट
पिछले साल जुलाई में इसका एक ड्राफ्ट जारी किया गया था। इसमें 2.89 करोड़ नागरिकों को भारतीय नागरिक माना गया, जबकि 40 लाख को ड्राफ्ट में जगह नहीं मिली।
इसके बाद इन 40 लाख लोगों को इसके खिलाफ अपील करने का मौका दिया गया।
इसके साथ ही अगर किसी को लगा कि कोई व्यक्ति भारतीय नागरिक नहीं है और उसका नाम शामिल किया गया है तो उसे भी अपील करने का विकल्प दिया गया।
जानकारी
क्या अंतिम सूची से बाहर 19 लाख लोग बाहरी नागरिक हैं?
यह जरूरी नहीं है कि अंतिम सूची से बाहर सभी 19 लाख लोग बाहरी नागरिक हैं। अभी उनके पास फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प बाकी है। यहां असफल होने के बाद उस व्यक्ति को डिटेनशन सेंटर भेजा जा सकता है।
दावा
19 लाख लोग अपना दावा कैसे पेश करेंगे?
अंतिम सूची से बाहर 19 लाख लोगों को यह साबित करना होगा कि वो या उनके पूर्वज 21 मार्च, 1971 से पहले असम के नागरिक थे।
1951 के ड्राफ्ट में जिन लोगों का नाम शामिल था, उनके वंशजों को अंतिम सूची में जगह मिली है।
जो लोग 24 मार्च, 1971 से पहले का जन्म प्रमाण-पत्र या जमीन के रिकॉर्ड प्रस्तुत कर सकेगा, उसे NRC में शामिल कर लिया जाएगा।
यानी अब दस्तावेज उनकी राष्ट्रीयता साबित करने में मदद करेंगे।
समझौता
24 मार्च, 1971 का बार-बार जिक्र क्यों आ रहा है?
दरअसल, 1985 में एक समझौता हुआ था। यह असम सरकार, केंद्र सरकार और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के बीच बातचीत के बाद तय किया गया कि 24 मार्च, 1971 के पहले असम में रहने वाले लोगों को भारतीय नागरिक माना जाएगा।
ऑल असम स्टूडेंट यूनियन ने बांग्लादेश से होने वाली अवैध घुसपैठ के खिलाफ लगभग छह साल तक अभियान चलाया था।
इस अभियान के बाद केंद्र और राज्य सरकार के साथ मिलकर एक समझौता किया गया था।
जानकारी
क्या इन 19 लाख लोगों ने ये दस्तावेज पहले जमा नहीं किए?
अब सवाल है कि क्या इन लोगों ने ये दस्तावेज पहले जमा नहीं किए थे। जवाब है कि दस्तावेज जमा किए, लेकिन ये पर्याप्त नहीं थे। अब इन्हें दोबारा दस्तावेज जमा करने होंगे। अगर इन्होंने पहले वाले दस्तावेज दिए तो ये फिर खारिज हो जाएंगे।
आगे का रास्ता
कानूनी विकल्पों में असफल होने पर क्या होगा?
हालांकि, असम में अवैध प्रवासियों के खिलाफ चल रहे अभियान की प्रमुख मांगों में से एक इन्हे वापस भेजना है, लेकिन बांग्लादेश ने कभी यह नहीं माना कि उसके नागरिक अवैध रुप से असम में जाते हैं।
फिलहाल राज्य में अवैध प्रवासियों के लिए जेलों के भीतर छह डिटेनशन कैंप है।
साथ ही सरकार ऐसा एक और कैंप बनाने की योजना बना रही है, जिसकी क्षमता 3,000 होगी। हालांकि, लाखों लोगों के लिए ये कैंप पर्याप्त नहीं है।
जानकारी
कैंपों में रहने पर इन लोगों की जिंदगी कैसे बदलेगी?
सभी कानूनी विकल्प खत्म होने के बाद अगर कोई व्यक्ति डिटेनशन कैंप में आता है तो वह गैर-नागरिक (non-citizen) होगा। इसके बाद क्या होगा, इसे लेकर भारत सरकार के कोई तय नियम नहीं है। हालांकि, यह तय है कि ऐसे लोग वोट नहीं डाल सकेंगे।