छत्तीसगढ़: शाकाहारी मगरमच्छ 'गंगाराम' की अंतिम विदाई पर रोया पूरा गाँव, सम्मान में अब बनेगा मंदिर
क्या है खबर?
दुनिया का हर व्यक्ति अपने प्रियजन की मौत से दुखी होता है, लेकिन छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले में बिलकुल अलग ही मामला सामने आया है।
जिले के मोहतरा गाँव में लोग एक मगरमच्छ की मृत्यु से काफ़ी दुखी हैं और मंदिर बनाने की बात कर रहे हैं।
गाँव वालों ने मगरमच्छ का नाम 'गंगाराम' रखा था। बताया जा रहा है कि पिछले 100 सालों से गाँव वाले और मगरमच्छ गहरे दोस्त थे और एक ही तालाब में तैरते थे।
गंगाराम
ग्रामीणों का मगरमच्छ से था काफ़ी गहरा लगाव
गाँव के सरपंच मोहन साहू का कहना है कि गाँव के तालाब में पिछले 100 सालों से मगरमच्छ निवास करता था।
एक दिन अचानक ग्रामीणों ने मगरमच्छ को तालाब में अचेत अवस्था में देखा तो उसे तालाब से बाहर निकाला।
बाहर निकालने के बाद पता चला कि मगरमच्छ की मौत हो गई है। इसके बाद ग्रामीणों ने इसकी सूचना वन विभाग को दी। ग्रामीणों का मगरमच्छ 'गंगाराम' से काफ़ी गहरा लगाव था।
बयान
पास के गाँव में चला जाता था मगरमच्छ
साहू ने मगरमच्छ 'गंगाराम' के बारे में बताया कि वह कई बार पास के गाँव में भी चला जाया करता था, लेकिन गाँव वालों को उससे इतना ज़्यादा लगाव था कि वह उसे बार-बार वापस ले आते थे।
अंतिम यात्रा
मगरमच्छ की अंतिम यात्रा में शामिल हुए थे 500 लोग
वन विभाग के अनुसार, मगरमच्छ की उम्र लगभग 130 साल और वज़न 250 किलोग्राम था। उसकी मौत से गाँव वाले इतने दुखी हुए कि फूट-फूट कर रोए।
मगरमच्छ को पूरे सम्मान के साथ फूलों से सजे ट्रैक्टर पर अंतिम विदाई दी गई। इस अंतिमयात्रा में लगभग 500 लोगों ने हिस्सा लिया था।
मौत के बाद मगरमच्छ को गाँव में ही दफ़नाया गया। गाँव वालों को उससे इतना लगाव था कि उस दिन पूरे गाँव में चूल्हा नहीं जला।
मंदिर
जल्द ही गाँव में बनेगा 'गंगाराम' का मंदिर
मांसाहारी जीव होते हुए भी एक मगरमच्छ इस तरह से लोगों के साथ बिना नुक़सान पहुँचाए तालाब में निवास करता था, यह किसी चमत्कार से कम नहीं था।
शायद इसी वजह से गाँव वाले मगरमच्छ को भगवान की तरह पूजते थे। साथ ही लोग उसे दाल और चावल खिलाया करते थे।
गाँव के सरपंच ने कहा कि ग्रामीण गंगाराम का स्मारक बनाने की तैयारी कर रहे हैं। जल्द ही मंदिर बनाया जाएगा, जहाँ लोग गंगाराम की पूजा कर सकेंगे।