
रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा बनाई गई एकमात्र मूर्ती और पत्र हुए नीलाम, करोड़ों रुपये में लगी बोली
क्या है खबर?
रवींद्रनाथ टैगोर भारतीय साहित्य और संस्कृति के अहम स्तंभ थे। वह एक महान कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के नोबेल पुरस्कार विजेता थे। उनकी किताबें, कविताएं, कहानियां और गीत आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं। इसी कड़ी में टैगोर के प्रशंसकों के लिए शुक्रवार को एक खास नीलामी का आयोजन करवाया गया था, जिसमें उनके हाथों से लिखे गए पत्रों और मूर्तिकला को बेचा गया है। आइए इस नीलामी के बारे में विस्तार से जानते हैं।
नीलामी
कब और कहां हुआ था नीलामी का आयोजन?
इस ऐतिहासिक नीलामी का आयोजन कोलकाता के अस्तागुरु नामक नीलामीघर द्वारा करवाया गया था। इस बिक्री को नीलामीकर्ताओं ने 'कलेक्टर्स चॉइस' नाम दिया था, जिसमें टैगोर के हाथों से बनाई गई एकमात्र मूर्तिकला भी उपलब्ध थी। इसके अलावा, इस नीलामी के दौरान टैगोर के 35 पत्र और 14 लिफाफे भी बेचे गए थे। इन सभी पत्रों की कुल कीमत 5.6 करोड़ रुपये लगाई गई है, जबकि इनकी अनुमानित कीमत 5 से 7 करोड़ के बीच तय हुई थी।
मूर्तिकला
बेची गई टैगोर द्वारा बनाई गई एकलौती मूर्ति
नीलामी का मुख्य आकर्षण वह मूर्तिकला रही, जिसे टैगोर ने अपने हाथों से बनाया था। इसका नाम 'द हार्ट' रखा गया था, क्योंकि यह दिल के आकार की है। नीलामीघर के अनुसार, माना जाता है कि यह मूर्ति उनके भाई ज्योतिरिंद्रनाथ की पत्नी कादंबरी देवी को समर्पित थी। इसकी अनुमानित कीमत 55 लाख रुपये से 70 लाख रुपये के बीच तय हुई थी। हालांकि, लोगों ने इसके लिए बढ़-चढ़कर बोली लगाई और यह 1.04 करोड़ रुपये में नीलाम हुई।
पत्र
1927 से 1936 के बीच लिखे गए थे सभी पत्र
नीलामी के दौरान जो पत्र नीलाम किए गए वे सभी 1927 से लेकर 1936 से बीच लिखे गए थे। टैगोर ने ये सभी पत्र समाजशास्त्री धुर्जति प्रसाद मुखर्जी को भेजे थे। ये पत्र उनकी रचनात्मकता, दार्शनिक विचारों और साहित्यिक ज्ञान की एक झलक पेश करते हैं। नीलामीघर के CMO मनसुखानी ने कहा, "यह परिणाम विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि यह कोई दृश्य कलाकृति नहीं थी, बल्कि एक पांडुलिपि-आधारित संग्रह था।"
मूर्ति
22 साल की उम्र में बनाई थी मूर्ती
टैगोर ने 1883 में कर्नाटक के तटीय शहर कारवार में नीलाम हुई मूर्ति बनाई थी, जब वह महज 22 साल के थे। इस पर उन्होंने बंगाली में लिखा था, "पत्थर से अपना दिल काटकर मैंने अपने हाथों से उकेरा है। क्या यह कभी आंसुओं की धारा से मिट जाएगा?" इसे टैगोर के दोस्त कवि अक्षॉयचंद्र चौधरी को भेंट किया गया था, जो ज्योतिरिंद्रनाथ के सहपाठी थे। अक्षॉयचंद्र ने यह मूर्ती अपनी बेटी उमारानी को दे दी थी।
अन्य जानकारी
अब तक कहां थी यह दुर्लभ मूर्ती?
आगे चलकर उमारानी ने अपनी बेटी देबजानी को यह नायाब मूर्ती भेंट कर दी थी। देबजानी का विवाह पेंटर अतुल बोस से हुआ था और यह मूर्ती 2024 में कोलकाता में प्रदर्शित होने से पहले तक उनके स्वामित्व में ही रही। सत्येंद्रनाथ टैगोर के परपोते सुमंतो चट्टोपाध्याय ने कहा, "टैगोर की कोई भी कलाकृति अमूल्य है। यह पूरी तरह से मालिक का विशेषाधिकार है कि वह इसे कहां रखना चाहता है, लेकिन मैं उन्हें संग्रहालयों में देखना पसंद करूंगा।"