
#NewsBytesExplainer: क्या है रक्षा कवच 'सुदर्शन चक्र', जिससे भारत का कोना-कोना होगा सुरक्षित?
क्या है खबर?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को दिल्ली के लाल किले से नए रक्षात्मक कवच 'मिशन सुदर्शन चक्र' का ऐलान कर नई बहस छेड़ दी है। यह एक ऐसा कवच होगा, जिससे भारत आने वाले दिनों में अपने सैन्य ठिकानों के साथ नागरिक स्थलों को भी घातक मिसाइलों और ड्रोन से बचा सकेगा। एक तरह से देखें तो ये इजरायल के बहुप्रशंसित 'आयरन डोम' और अमेरिका के प्रस्तावित 'गोल्डन डोम' के समान होगा। आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
बयान
प्रधानमंत्री मोदी ने क्यों बताई सुदर्शन चक्र की जरूरत?
प्रधानमंत्री मोदी ने भारत-पाकिस्तान संघर्ष का जिक्र करते हुए कहा कि जब पाकिस्तान सैन्य ठिकानों, एयरबेस, धार्मिक स्थल, संवेदनशील स्थानों और नागरिकों पर मिसाइल और ड्रोन बरसा रहे थे, तब हमारी तकनीक ने उनको तिनके की तरह बिखेर दिया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के मिसाइल-ड्रोन भारत का रत्ती भर भी नुकसान नहीं कर पाए, इसलिए राष्ट्र की रक्षा के लिए जो तकनीक का उपयोग किया गया है, उस महारत का और विस्तार करने की जरूरत है।
तकनीक
प्रधानमंत्री मोदी ने बताया- क्या है सुदर्शन चक्र?
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि 2035 तक देश के सामरिक और नागरिक क्षेत्र, जैसे अस्पताल, रेलवे, धार्मिक स्थलों को तकनीक के जरिए पूरी तरह सुरक्षा का कवच दिया जाएगा, जिससे हर नागरिक सुरक्षित महसूस करे। उन्होंने कहा कि मिशन सुदर्शन चक्र एक पावरफुल वेपन सिस्टम होगा, जो दुश्मन के हमले को निष्क्रिय करेगा और कई गुना ज्यादा हिट बैक करेगा। उन्होंने कहा कि इसके लिए शोध, विकास, विनिर्माण देश में होगा और नौजवानों के कौशल से बनाया जाएगा।
खासियत
क्या होगी सुदर्शन चक्र की खासियत?
प्रधानमंत्री मोदी ने सुदर्शन चक्र की विशेषता बताते हुए भगवान श्रीकृष्ण का जिक्र किया, जिनका सुदर्शन चक्र जहां जाना था, वहीं जाता था और और वापस श्रीकृष्ण के पास लौट आता था। उन्होंने कहा कि इस सुदर्शन चक्र के द्वारा भी लक्षित सटीक कार्रवाई विकसित करने की दिशा में आगे बढ़ेंगे। उन्होंने कहा कि एक बार सुदर्शन चक्र बन जाने पर इसे वॉरफेयर के हिसाब से भविष्य में संभावनाओं के मुताबिक प्लस वन की स्ट्रेटेजी पर तैयार करेंगे।
तकनीक
अभी भारत कैसे कर रहा है मिसाइलों और ड्रोन से देश की सुरक्षा?
भारत-पाकिस्तान संघर्ष के समय जब दोनों देशों के बीच मिसाइल और ड्रोन हमले हो रहे थे, तब भारत में अधिकतर हमलों को वायु रक्षा प्रणाली के जरिए निष्क्रिय किया जा रहा था। यह तकनीक वायुसेना का एकीकृत वायु कमान और नियंत्रण प्रणाली (IACCS) थी, जिसने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान की मिसाइलों को लगभग 100 घंटे तक नष्ट कर दिया। इसके जरिए भारत पाकिस्तान पर अपनी बढ़त बनाए हुए था, जबकि पाकिस्तान में भारतीय मिसाइलें नुकसान पहुंचा रही थीं।
संशय
जब भारत के पास IACCS तो सुदर्शन चक्र की जरूरत क्यों?
सवाल है कि जब भारत के पास IACCS जैसी तकनीक है तो उसे सुदर्शन चक्र की जरूरत क्यों है? दरअसल, IACCS स्वचालित कमांड-नियंत्रण केंद्र है, जो हवाई और जमीनी सेंसर, हथियार प्रणालियों, रडार और नियंत्रण केंद्रों से समन्वय, एकीकरण और नियंत्रण करता है। इस आधार पर सेनाएं और वायु रक्षा प्रणालियां खतरे की पहचान कर उसे नष्ट करती हैं। ऐसे में सुदर्शन चक्र को IACCS और अन्य स्वदेशी 'आकाशतीर' समेत बहुस्तरीय वायु रक्षा प्रणालियों के साथ विकसित किया जाएगा।
खासियत
कितना जरूरी है IACCS?
इससे हवाई रक्षा प्रणाली को खतरों की तुरंत जानकारी मिलती है। यह अलग-अलग कमांड और कंट्रोल नोड्स में बेहतर समन्वय करता है। यह प्रणाली ऑटोमेटेड एयर डिफेंस सिस्टम को भी ऑपरेट करती है, ताकि खतरों की तुरंत पहचान कर उन्हें नष्ट किया जा सके। इससे सेना को समन्वित डेटा, वास्तविक समय के साथ ताजा जानकारी और कई स्तरों पर सैन्य कमांडर के लिए जरूरी व्यापक तस्वीर मिलती है, जो जल्दी निर्णय लेने और हमला करने की मदद करती है।
जानकारी
BEL ने इसे विकसित किया
IACCS निदेशालय की स्थापना 2003 में हुई। तब देशभर में एयर कमांड और कंट्रोल केंद्रों का डिजिटलीकरण हुआ। 2010 में वायुसेना ने पुराने ट्रोपोस्कैटर की जगह AFNET लॉन्च किया। इसके बाद IACCS अलग-अलग चरणों में लागू हुआ। इसे भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) ने बनाया है।
सुरक्षा
क्या है इजरायल का आयरन डोम?
सुदर्शन चक्र का जिक्र आते ही लोग इजरायल के 'आयरन डोम' से तुलना कर रहे हैं, जो व्यापक मिसाइल रक्षा प्रणाली का हिस्सा है। यह काफी सफल है। इसे कम दूरी के हथियारों को रोकने के लिए बनाया गया है। इसमें रडार ट्रैकिंग स्टेशन, नियंत्रण केंद्र और मिसाइल बैटरी सिस्टम होता है। अमेरिकी मदद से बनी प्रणाली का साल 2011 में पहली बार परीक्षण हुआ था। तब इसने दक्षिणी शहर बीरसेबा से दागे गए मिसाइलों को सफलतापूर्व मार गिराया था।
तकनीक
अमेरिका भी बनाने जा रहा गोल्डन डोम
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी इस साल 'आयरन डोम' की तरह गोल्डन डोम का ऐलान किया है, जो एक उन्नत मिसाइल सुरक्षा प्रणाली है। सिस्टम दुश्मन की मिसाइलों को लॉन्च के समय से लेकर उनके प्रभाव तक पहचान कर उन्हें रोकने का काम करेगी। इसमें अंतरिक्ष में मौजूद सेंसर और इंटरसेप्टर शामिल होंगे, जो वैश्विक स्तर पर सुरक्षा कवच तैयार करेंगे। यह किसी भी कोने से दागी गई मिसाइल को रोकने में सक्षम होगी। यह 2029 तक तैयार होगी।
प्रणाली
रूस और चीन भी वायु रक्षा प्रणाली पर कर रहे हैं काम
वायु रक्षा प्रणाली को उन्नत बनाने में भारत, अमेरिका और इजरायल ही नहीं हैं बल्कि रूस और चीन भी शामिल हैं। रूस A-135 एंटी-बैलिस्टिक प्रणाली से मॉस्को की रक्षा करती है और शक्तिशाली S-400 है, जो भारत के पास भी है। चीन के पास HQ-9 है, जिसे पाकिस्तान, मोरक्को, मिस्र, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान को बेचा गया है। ताइवान के पास स्काई-बो श्रृंखला और जापान के पास अमेरिकी PAC-3 है।