स्कॉटलैंड के सबसे बड़े मोती की होने वाली है नीलामी, 64 लाख रुपये है अनुमानित कीमत
मोती एक कीमती जेवरात होता है, जो समुद्री सीपियों और मीठे पानी के मसल्स द्वारा बनाया जाता है। 6 दशक बाद स्कॉटलैंड में पाया गया अब तक का सबसे बड़ा मोती नीलाम होने वाला है। इस मोती का नाम एबरनेथी है, जो इसे खोजने वाले विलियम एबरनेथी के नाम पर रखा गया था। वह स्कॉटलैंड के आखरी मोती मछुआरे थे, जिनकी 2021 में मृत्यु हो गई थी। आइए इस कीमती मोती की नीलामी के विषय में विस्तार से जानते हैं।
1967 में पाया गया था यह दुर्लभ मोती
एबरनेथी मोती का वजन करीब 2.82 ग्राम है। इसे विलियम ने 1967 में खोजा था और इसे कुछ लोग 'लिटिल विली' भी कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि विलियम द्वारा इसे खोजे जाने से पहले यह मोती 80 वर्षों से भी अधिक समय से इसकी सीपी में पनप रहा था। लोगों का अनुमान है कि यह मोती रानी विक्टोरिया के शासनकाल के दौरान बना होगा। विलियम ने इस दुर्लभ खोज के सटीक स्थान का कभी खुलासा नहीं किया था।
कब और कहां होगी एबरनेथी मोती की नीलामी?
एबरनेथी मोती की नीलामी 21 अगस्त को ल्योन और टर्नबुल नामक नीलामी घर में होने वाली है। यह दुर्लभ मोती नीलामी घर के केयर्नक्रॉस कलेक्शन का हिस्सा है। एबरनेथी मोती की अनुमानित कीमत 43 लाख से लेकर 64 लाख रुपये तक हो सकती है। इच्छुक लोग इस मोती को खरीदने के लिए ऑनलाइन भी बोली लगा सकते हैं। नीलामी घर के आभूषण विभाग के प्रमुख रूथ डेविस ने कहा, "एबरनेथी मोती इस नीलामी का सितारा है।"
विलियम सीपी के आकार को देखकर लगा लेते थे मोती का पता
विलियम एबरनेथी ने मोतियों को खोजने की कला अपने पिता से सीखी थी। उन्होंने अपना अधिकांश जीवन स्कॉटलैंड की नदियों में मोतियों को खोजते हुए बिताया। 1970 के दशक की एक डॉक्यूमेंट्री के अनुसार, विलियम केवल सीपी के आकार को देखकर यह पता लगाने में सक्षम थे कि उसमें मोती है या नहीं। डॉक्यूमेंट्री के कैमरामैन डौग एलन ने विलियम की सराहना करते हुए कहा, "वह एक अनोखे व्यक्ति थे और उन्हें जानना मेरा सौभाग्य था।"
1998 से स्कॉटलैंड में पर्ल फिशिंग है अवैध
एबरनेथी मोती की खोज करने के बाद विलियम ने उसे खरोंच से बचाने के लिए एक पत्ते में लपेट लिया था। वह मोती को पूर्वी तट के स्कॉटिश शहर केयर्नक्रॉस ऑफ पर्थ के एक जौहरी के पास ले गए थे। स्कॉटिश नदियों में लगभग 5,000 सीपियों में से एक में मोती पाया जाता है। स्कॉटिश मसल्स अत्यधिक मछली पकड़ने के कारण विलुप्त होने की कगार पर थे। इसके चलते 1998 में पर्ल फिशिंग पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।