दो साल में एक बार विश्व कप कराने पर विचार कर रही है फीफा
फीफा विश्व कप का पहला संस्करण 1930 में खेला गया था और तब से लेकर अब तक इसे हर चार साल में एक बार आयोजित किया जाता है। हालांकि, अब फीफा इस मेगा इवेंट को दो साल में एक बार कराने पर विचार कर रही है। बीते शुक्रवार को हुई सालाना कांग्रेस में अधिकतर देशों ने चार साल के इस क्रम को हटाने के पक्ष में वोट किया है। आइए जानते हैं पूरी खबर।
209 में से 166 सदस्यों ने पक्ष में किया वोट
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक इस विचार को धरातल पर लाने का आइडिया सउदी अरब ने दिया है। फीफा के 209 में से 166 सदस्यों ने इसके पक्ष में तो वहीं केवल 22 सदस्यों ने इसके विपक्ष में वोट किया है। गौरतलब है कि आर्सनल के पूर्व मैनेजर और वर्तमान समय में फीफा के डॉयरेक्टर ऑफ डेवलेपमेंट आर्सेन वेंगर ने भी इस सुझाव को मार्च में ही बताया था।
पूर्व फीफा अध्यक्ष ने 1999 में ही दिया था यह विचार
फीफा के पूर्व अध्यक्ष सेप ब्लाटर ने 1999 में ही यह विचार दिया था। यूरोपियन फुटबॉल की गवर्निंग बॉडी UEFA ने उनकी आलोचना भी की थी। ब्लाटर के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल को मजबूत करने के लिए यह किया जाना आवश्यक था।
वर्तमान फीफा अध्यक्ष ने भी किया है इस विचार का समर्थन
फीफा प्रेसीडेंट जियानी इन्फैंटिनो ने दावा किया था कि अंतरराष्ट्रीय कैलेंडर में बदलाव लाने से अधिक अच्छे मैच देखने को मिलेंगे। उनका कहना था कि विश्व कप को दो साल में खेले जाने से यूरोप के बाहर के देशों को अच्छे मैच खेलने का मौका मिलेगा। उन्होंने कहा था, "अफ्रीका के 54 में से केवल पांच देश ही फीफा विश्व कप के लिए क्वालीफाई करते हैं। यदि आप क्वालीफाई नहीं कर सके तो अगले चार साल क्या करेंगे?"
इस कारण होता रहा है इस विचार का विरोध
फीफा विश्व कप को दो साल में एक बार कराने के विचार पर सबसे अधिक यह कहा जाता है कि इससे टूर्नामेंट की प्रतिष्ठा पर असर पड़ेगा। फीफा विश्व कप ने अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखी है क्योंकि टीमें इसमें हिस्सा लेने के लिए चार साल इंतजार करती हैं। वेंगर ने इस बारे में कहा है, "चैंपियन्स लीग का आयोजन हर साल किया जाता है फिर भी यह काफी महत्वपूर्ण है।"
विपक्ष में जा सकती हैं ये चीजें
विश्व कप को हर दो साल में आयोजित करने का असर कॉन्टिनेंटल चैंपियनशिप पर पड़ेगा। विश्व कप के बाद हर दो साल में UEFA द्वारा आयोजित होने वाले यूरो और यूरोप के कॉन्टिनेंटल चैंपियनशिप अपना अस्तित्व खो देंगे। फुटबॉल के दो सबसे बड़े टूर्नामेंट्स का आपस में टकराव हो सकता है। इसी तरह कोपा अमेरिका को भी अपने कैलेंडर में बदलाव करना होगा। खिलाड़ियों पर भी अधिक वर्कलोड का दबाव रहेगा।