माइक्रोLED डिस्प्ले क्या होते हैं और ऐपल इनकी तरफ कदम क्यों बढ़ा रही है?
दिग्गज टेक कंपनी ऐपल अब माइक्रोLED डिस्प्ले टेक्नोलॉजी की तरफ कदम बढ़ा रही है। माइक्रोLED सेल्फ-इल्युमिनेटिंग डायोड होते हैं, जिनमें ऑर्गेनिक लाइट इमिटिंग डायोड (OLED) से बेहतर ब्राइटनेस और कलर मिलते हैं। डिस्प्ले टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में इसे अगला बड़ा कदम माना जा रहा है। बताया जा रहा है कि ऐपल 2024 के बाद से माइक्रोLED टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करना शुरू करेगी और आगे चलकर आईफोन और मैकबुक आदि में यही टेक्नोलॉजी देगी।
क्या होती है माइक्रोLED डिस्प्ले टेक्नोलॉजी?
माइक्रोLED डिस्प्ले टेक्नोलॉजी नीलम रत्न पर आधारित है, जो हमेशा रोशन रहता है। इसी तरह माइक्रोLED स्क्रीन में इसी तरह की छोटी लेकिन मजबूत लाइट इस्तेमाल की जाती है। इस स्क्रीन में कई लाइट-इमिटिंग डायोड (LED) मिलकर तस्वीर बनाते हैं। एक माइक्रोLED का आकार एक सेंटीमीटर बाल के 200वें हिस्से के बराबर होता है। एक-एक माइक्रोLED से मिलकर मॉड्यूल और मॉड्यूल से मिलकर स्क्रीन बनती है। सैमसंग को डिस्प्ले टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अगुआ माना जाता है।
यह बाकी डिस्प्ले से बेहतर कैसे?
माइक्रोLED डिस्प्ले में अन्य से बेहतर ब्राइटनेस और कलर रिप्रोडक्शन और दूसरे डिस्प्ले के मुकाबले बेहतर व्यूइंग एंगल मिलता है। इनकी मदद से तस्वीरें ऐसे दिखती हैं, जैसे वे डिवाइस के ग्लास पर लगी हो। इनकी मदद से बड़े डिस्प्ले बनाए जा सकते हैं और इनमें रिजॉल्यूशन, बैजल, रेशो और साइज की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं होती। ये किसी भी रिजॉल्यूशन, रेशो और साइज की तस्वीरें दिखा सकती हैं।
स्क्रीन को रिसाइज करना होता है आसान
इनका एक और फायदा यह है कि माइक्रोLEDs से बनी स्क्रीन को किसी भी तरह रिसाइज किया जा सकता है। सेल्फ-इमर्सिव होने के साथ-साथ माइक्रोLEDs खुद से ही लाल, हरा और नीला रंग पैदा करती हैं, जिससे परंपरागत डिस्प्ले की तरह बैकलाइटिंग या कलर फिल्टर लगाने की जरूरत खत्म हो जाती है। सैमसंग ने 4,000 निट्स पीक ब्राइटनेस वाला माइक्रोLED डिस्प्ले तैयार किया है। यह OLED और LCD में मिलने वाली ब्राइटनेस से लगभग दोगुना है।
ऐपल के लिए इस नई टेक्नोलॉजी के क्या मायने?
ऐपल अभी तक सैमसंग, LG, जापान डिस्प्ले इंक, शार्प कॉर्प आदि से अपने डिवाइस के लिए स्क्रीन खरीदती है, लेकिन माइक्रोLED डिस्प्ले का निर्माण खुद करेगी। इसकी वजह से उसकी दूसरी कंपनियों पर निर्भरता कम हो जाएगी। साथ ही वह अपने डिवाइसेस के लिए डिस्प्ले को पहले से ज्यादा कस्टमाइज कर पाएगी। कंपनी के लिए एक और फायदा यह होगा कि आपूर्ति श्रृंखला को लेकर उसकी चिंता कम हो जाएगी और उसे सामान के लिए इंतजार नहीं करना पड़ेगा।
लंबे समय से इस तकनीक पर काम कर रही है ऐपल
ऐपल ने 2014 में लक्सव्यू नामक स्टार्टअप को खरीदने के बाद इस टेक्नोलॉजी पर काम शुरू किया था। अब कंपनी ने अपनी वॉच अल्ट्रा में माइक्रोLED डिस्प्ले की टेस्टिंग शुरू कर दी है। उम्मीद है कि वॉच के बाद ऐपल आईफोन, आईपैड, मैक और दूसरे डिवाइसेस में यह डिस्प्ले दे सकती है। हालांकि, कई मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि मैक में यह डिस्प्ले मिलने में अभी एक दशक तक का समय लग सकता है।
इसमें क्या चुनौतियां पेश आ सकती हैं?
ऐपल ने 2020 में माइक्रोLED की तरफ कदम बढ़ाने की योजना बनाई थी, लेकिन ऊंची लागत और तकनीकी चुनौतियों के कारण इसमें देरी हो गई। कयास लगाए जा रहे हैं कि ऐपल का 2024 में माइक्रोLED डिस्प्ले के साथ डिवाइस उतारने की योजना में भी देरी हो सकती है। कुछ रिपोर्ट्स में संभावना जताई गई है कि कंपनी शुरुआत में सीमित डिवाइस से इस ट्रांजिशन की शुरुआत कर सकती है।