क्या है ISRO का 'सूर्य' रॉकेट?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आज (18 सितंबर) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के हेवी लिफ्ट रॉकेट या नेक्स्ट जनरेशन लॉन्च व्हीकल (NGLV) के विकास को मंजूरी दे दी है, जिसे 'सूर्य' नाम दिया गया है। यह स्पेस-X के फाल्कन 9 के समान कई बार उपयोग करने योग्य रॉकेट होगा। केंद्र सरकार ने NGLV के विकास, सहायक ग्राउंड सुविधाओं और लॉन्च अभियान के लिए 8,240 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं।
कितना शक्तिशाली होगा ISRO का सूर्य रॉकेट?
सूर्या ISRO के परिचालन रॉकेटों से दोगुना लंबा होगा, जिसमें 3 गुना पेलोड क्षमता होगी और इसकी लागत लॉन्च व्हीकल मार्क-3 (LVM3) की लागत से केवल 1.5 गुना अधिक होगी, जो वर्तमान में ISRO के लॉन्च व्हीकल बेड़े में सबसे शक्तिशाली रॉकेट है। रॉकेट को पर्यावरण के अनुकूल ईंधन का उपयोग करने के लिए डिजाइन किया गया है। इसके निचले हिस्से में लिक्विड ऑक्सीजन और मीथेन पर आधारित इंजन होगा और ऊपरी हिस्से में क्रोमोजेनिक इंजन होगा।
मानव को अंतरिक्ष में ले जा सकेगा यह रॉकेट
सूर्य रॉकेट 40 टन भार को पृथ्वी की निचली कक्षा (LEO) में ले जाने में सक्षम होगा है, जो मानव को अंतरिक्ष में भेजने के लिए जरूरी है। इसी रॉकेट से ISRO भविष्य में भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर भेजेगा। NGLV की 3 परीक्षण उड़ानों की योजना बनाई गई है और ISRO का लक्ष्य 8 वर्षों में परिचालन रॉकेट तैयार करना है। इसे भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) को इकट्ठा करने की योजना के लिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा।