विक्रम साराभाई ने अंतरिक्ष समेत इन क्षेत्रों में दिया है अपना बड़ा योगदान
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक विक्रम साराभाई अंतरिक्ष शोध के क्षेत्र में अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाने जाते हैं। साराभाई का जन्म 12 अगस्त, 1919 को गुजरात के अहमदाबाद में एक संपन्न परिवार में हुआ था। उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा 'रिट्रीट' नामक एक निजी स्कूल से की, जिसे उनके माता-पिता चलाते थे। 12वीं के बाद साराभाई अपनी कॉलेज की शिक्षा के लिए कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय चले गए और उन्होंने अपनी PhD तक पढ़ाई पूरी की।
साराभाई का योगदान
साराभाई ने ग्रामीण भारत में शैक्षिक कार्यक्रम प्रसारित करने के लिए सैटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविजन एक्सपेरिमेंट (SITE) की शुरुआत की। उनके नेतृत्व में भारत का पहला रॉकेट 1963 में केरल के थुम्बा से लॉन्च हुआ, जो देश की अंतरिक्ष यात्रा की शुरुआत थी। उनके काम से अंतरिक्ष क्षेत्र में भी भारत के अंतरराष्ट्रीय साझेदारी को बढ़ावा मिला। ISRO से पहले साराभाई ने डॉ. होमी भाभा के साथ भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम में महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
हरित क्रांति में साराभाई का योगदान
साराभाई भारत की गरीबी और शिक्षा जैसी चुनौतियों का समाधान करने के लिए समर्पित थे। उन्होंने भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (PRL) की स्थापना की और भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1960 और 1970 के दशक में उन्होंने हरित क्रांति के दौरान खाद्य उत्पादन को बढ़ावा देने वाले कृषि बदलाव का समर्थन किया। अपनी पत्नी, शास्त्रीय नृत्यांगना मृणालिनी से प्रेरित होकर उन्होंने विज्ञान और संस्कृति में महिलाओं की भागीदारी का भी समर्थन किया।
साराभाई के नाम पर है इन चीजों का नाम
ISRO ने साराभाई की याद में चंद्रमा पर अपने दूसरे मिशन 'चंद्रयान-2' के लैंडर का नाम 'विक्रम' रखा है। ISRO का प्रमुख केंद्र भी साराभाई के नाम पर ही है। भारतीय खगोलीय संघ ने साराभाई के नाम पर चांद पर मौजूद एक गड्ढे (साराभाई क्रेटर) का नाम रखा है। गुजरात में 'विक्रम ए साराभाई' सामुदायिक केंद्र का नाम उनके नाम पर रखा गया है। ISRO द्वारा एक तरल ईंधन वाले रॉकेट इंजन (विकास) का नाम उनके नाम पर रखा है।