वनवेब सितंबर से भारत में शुरू कर सकती है सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस, मिली ये मंजूरियां
भारती ग्रुप के समर्थन वाली वनवेब सितंबर से भारत में सैटेलाइट आधारित ब्रॉडबैंड इंटरनेट सर्विस शुरू करने को तैयार है। कंपनी के अधिकारियों ने कहा कि उन्हें दूरसंचार विभाग (DoT) से 2 सैटेलाइट गेटवे स्थापित करने की अनुमति मिली है। इनमें से एक मेहसाणा (गुजरात) और दूसरा चेन्नई के पास स्थापित किया जाएगा। इससे पहले एलन मस्क की कंपनी स्टारलिंक ने भारत में बिना अप्रूवल के सैटेलाइट इंटरनेट के लिए प्री-बुकिंग शुरू कर दिया था, जिसे बंद करना पड़ा।
वनवेब को स्पेक्ट्रम का इंतजार
इकोनॉमिक टाइम्स ने कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से बताया कि वनवेब को इस साल के अंत तक सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सर्विस लॉन्च करने के लिए भारत में 2 गेटवे अर्थ स्टेशनों सहित सैटेलाइट ग्राउंड इंफ्रास्ट्रक्चर तैनात करने के लिए DoT से सभी सैद्धांतिक मंजूरी मिल गई है। अधिकारी ने कहा कि जैसे ही का/कू बैंड में प्रशासन की तरफ से स्पेक्ट्रम आवंटित किया जाता है, वैसे ही वनवेब सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सर्विस भारत में लाइव हो सकती हैं।
इस बात पर निर्भर करेगी मिशन की सफलता
सैटकॉम के लिए स्पेक्ट्रम आवंटन का तरीका सर्विस की शुरुआत के लिए महत्वपूर्ण है। वनवेब सहित अंतरराष्ट्रीय सैटकॉम कंपनियां स्पेक्ट्रम आवंटन के लिए प्रशासनिक तरीके के समर्थन में हैं। वहीं दूरसंचार ऑपरेटर रिलायंस जियो, वोडाफोन-आइडिया स्पेक्ट्रम की नीलामी चाहते हैं। टेलीकॉम रेगुलेटर को दी जानकारी में वनवेब ने कहा कि भारत में उसके मिशन की सफलता सैटेलाइट यूजर एक्सेस टर्मिनल्स (UATs) और गेटवे के लिए पूरे कू और का बैंड के हस्तक्षेप मुक्त उपयोग पर निर्भर करती है।
वनवेब का जेन-1 सैटेलाइट शुरुआती एक्सेस प्रदान करने में है सक्षम
UAT अंतिम यूजर को हाई-स्पीड सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सर्विस देने वाले सैटेलाइट गियर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। दूसरी तरफ कू/का बैंड सैटेलाइट संचार के लिए उपयोग किए जाते हैं। वनवेब ने कहा कि इसका जेन-1 सैटेलाइट डिजाइन पूरे कू और का बैंड तक शुरुआती एक्सेस प्रदान करता है। इसके अलावा जब लगभग 5 सालों में जेन-2 सैटेलाइट सिस्टम आ जाएंगे, तब इसके गेटवे लिंक के लिए फुल Q/V बैंड आवश्यक होगा।
कू/का बैंड क्या है?
कू/का बैंड का संबंध फ्रीक्वेंसी से है। कू बैंड 12 गीगाहर्ट्ज से 18 गीगाहर्ट्ज तक की फ्रीक्वेंसी और का-बैंड 26.5 गीगाहर्ट्ज से 40 गीगाहर्ट्ज तक की फ्रीक्वेंसी को दिखाता है। का-बैंड सिस्टम पर फ्रीक्वेंसी बढ़ाने से अधिक बैंडविड्थ प्राप्त हो सकती है।
वनवेब के पास है जरूरी GMPCS परमिट
वनवेब के पास GMPCS (ग्लोबल मोबाइल पर्सनल कम्यूनिकेशन बाय सैटेलाइट सर्विस) परमिट है, जो भारत में सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस रोल आउट करने के लिए जरूरी है। इसका उद्देश्य उन क्षेत्रों में लो-लेटेंसी और हाई-स्पीड ब्रॉडबैंड इंटरनेट पहुंचाना है, जहां अभी तक लोगों के पास पारंपरिक वायर्ड/केबल इंटरनेट नहीं पहुंचा है। इसे जल्द ही स्पेस सर्विस रेगुलेटर इन-स्पेस से लैंडिंग अधिकार और बाजार का एक्सेस सहित जरूरी अधिकार मिलने की उम्मीद है।
कोने-कोने में मिलेगी इंटरनेट सर्विस
फाइबर केबल इंटरनेट और मोबाइल नेटवर्क कई वजहों के चलते आज भी कोने-कोने में उपलब्ध नहीं है। इन समस्याओं का हल सैटेलाइट इंटरनेट है। सैटेलाइट इंटरनेट में कंपनियां लो-अर्थ ऑर्बिट में मौजूद सैटेलाइट्स के जरिए सीधे इंटरनेट देती हैं। इससे सुदूर जंगली, पहाड़ी और समुद्री इलाकों में भी अच्छी स्पीड वाली सैटेलाइट इंटरनेट की सुविधा मिल सकती है। सैटेलाइट इंटरनेट हाई-बैंडविड्थ कवरेज देता है, क्योंकि इसमें मिलीमीटर वेव्स का इस्तेमाल होता है।
लगाना होता है छोटा-सा सेटअप
सैटेलाइट इंटरनेट के लिए डिश टीवी की तरह छत पर एक छोटा सेटअप या एंटीना लगाना होता है, जिससे इंटरनेट मिलता है। सैटेलाइट इंटरनेट के जरिए चलती कार, ट्रेन, हवाई जहाज आदि में भी बेहतरीन इंटरनेट पा सकते हैं। मस्क की स्टारलिंक ने सैटेलाइट इंटरनेट प्रदान करने के लिए अब तक लगभग 4,500 ब्रॉडबैंड सैटेलाइट को अंतरिक्ष में तैनात किया है और इसके जरिए लगभग 40 देशों में सैटेलाइट इंटरनेट की सर्विस देती है।