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    #KumbhMela2019: कुंभ के बाद कहा गायब हो जाते हैं नागा साधु, जानें इनसे जुड़े कुछ रहस्य

    #KumbhMela2019: कुंभ के बाद कहा गायब हो जाते हैं नागा साधु, जानें इनसे जुड़े कुछ रहस्य
    लेखन प्रदीप मौर्य
    Jan 24, 2019, 04:33 pm 1 मिनट में पढ़ें
    #KumbhMela2019: कुंभ के बाद कहा गायब हो जाते हैं नागा साधु, जानें इनसे जुड़े कुछ रहस्य

    कुंभ मेला 15 जनवरी, 2019 से प्रयागराज में शुरू हो चुका है। कुंभ में देशभर से लोग इकट्ठा होते हैं। कुंभ मेले में हर बार आकर्षण का केंद्र नागा साधु ही रहते हैं। अक्सर नागा साधु केवल कुंभ के समय दिखाई देते हैं और कुंभ ख़त्म होते ही ये कहीं गायब हो जाते हैं। ऐसे में लोग जानना चाहते हैं कि आख़िर ये कहाँ चले जाते हैं। आइए नागा साधु की जीवनशैली के बारे में विस्तार से जानते हैं।

    दिगंबर रूप त्यागकर धारण कर लेते हैं वस्त्र

    नागा साधुओं के बारे में महेशानंद गिरी बताते हैं कि कुंभ के बाद कुछ नागा साधना करने के लिए कंदराओं में चले जाते हैं, वहीं कुछ साधु अखाड़े में चले जाते हैं। कुछ युवा नागा दिगंबर (निर्वस्त्र) रूप त्यागकर वस्त्र धारण करते हैं और लोगों को धर्म और आध्यात्म से जोड़ने में लग जाते हैं। हालाँकि जब नागा साधना करते हैं तो वह पुनः अपने दिगंबर रूप में आ जाते हैं और साधना ख़त्म होने तक ऐसे ही रहते हैं।

    कुछ नागा वस्त्र धारण करते हैं, कुछ रहते हैं निर्वस्त्र

    आपकी जानकारी के लिए बता दें कि कुछ नागा साधु हर समय निर्वस्त्र रहते हैं, जबकि कुछ नागा साधु कुछ आवसरों को छोड़कर बाक़ी समय वस्त्र धारण करते हैं।

    शस्त्रधारी नागा संगठित हैं अखाड़े के रूप में

    अन्य साधुओं की तरह ही नागा भी अलग-अलग जगहों पर रहते हैं। पर्वतों में रहने वाले नागाओं को 'गिरी' और नगरों में भ्रमण करने वाले नागाओं को 'पूरी' कहा जाता है। जो नागा जंगलों में अपना जीवन व्यतीत करते हैं, उन्हें 'अरण्य' कहा जाता है, जबकि ज़्यादा शिक्षित नागाओं को 'सरस्वती' और 'भारती' उपनाम दिया जाता है। नागाओं में कुटीचक, बहूदक, हंस और परमहंस जैसे पद भी होते हैं। शस्त्र धारण करने वाले नागा अखाड़ों के रूप में संगठित हैं।

    अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर नहीं होते नागा

    किसी भी अखाड़े में सबसे बड़ा पद आचार्य महामंडलेश्वर का होता है। आपको बता दें कि आचार्य महामंडलेश्वर नागाओं को दीक्षा ज़रूर देते हैं, लेकिन ये नागा नहीं होते हैं। इसके बाद महामंडलेश्वर का पद आता है। यह पद अखाड़े के बाहर का होता है। महामंडलेश्वर किसी भी संत को बनाया जा सकता है। नागा दीक्षा हमेशा जोड़े में दी जाती है। दो व्यक्तियों को एक साथ दीक्षा एक ही गुरु देते हैं और उनकी उपाधियाँ अलग-अलग दी जाती हैं।

    कई बार हुए हैं वैष्णव और शैव नागा के बीच ख़ूनी संघर्ष

    इतिहास गवाह है कि हमेशा से ही शैव और वैष्णव मत को मानने वालों में संघर्ष हुए हैं। देश में शैव मत के सात अखाड़े हैं, जबकि वैष्णव मत के तीन अखाड़े हैं। इन दोनों ही अखाड़ों में लंबे समय तक मतभेद रहे और कई बार ख़ूनी संघर्ष भी हुए। नई पीढ़ी आने के बाद से मतभेद कम हुआ है। महेशानंद गिरी का कहना है कि उनके वाट्सऐप ग्रुप में ही कई वैष्णव नागा संत जुड़े हैं।

    नई पीढ़ी बना रही है नशे से दूरी

    नागा साधुओं को चिलम से कश लगाते देखना आम बात है, लेकिन नई पीढ़ी अब नशे से दूरी बना रही है। महानिर्वाणी अखाड़े के महंत रामसेवक गिरी इसके पुरज़ोर समर्थक हैं और जिसे भी नागा बनाते हैं, उसे नशे से दूर रहने की सलाह देते हैं। इन्ही के शिष्य और नागा सन्यासी प्रेमानंद पूरी का कहना है कि चिलम से कश लगाने से व्यक्ति जल्दी नपुंसक बन जाता है। नागा साधुओं को काम पर विजय पाना होता है।

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