#KumbhMela2019: जानिए कौन होते हैं नागा साधु और कैसी है इनकी दुनिया
आज शाही स्नान के साथ प्रयागराज में कुंभ मेले की शुरुआत हो चुकी है। पहले शाही स्नान का नज़ारा बड़ा ही भव्य था। हर बार ही कुंभ मेले का सबसे मुख्य आकर्षण नागा साधु होते हैं। नागा साधुओं का जीवन अन्य साधुओं की अपेक्षा बिलकुल ही अलग और कठिन होता है। इनका संबंध शैव परंपरा के साथ माना जाता है। इनकी एक अलग दुनिया होती है, जो रहस्यों से भरी होती है। आइए विस्तार से इनके बारे में जानते हैं।
महाकुंभ के दौरान शुरू हो जाती है नागा साधु बनाने की प्रक्रिया
इतिहास के पन्नों को पलटा जाए तो पता चलता है कि नागा साधुओं का अस्तित्व सबसे पुराना है। नागा साधु बनाने की प्रक्रिया महाकुंभ के दौरान ही शुरू हो जाती है। सबसे पहले ब्रह्मचर्य की परीक्षा देनी होती है। इसमें छह महीने से लेकर 12 साल तक का समय लग जाता है। परीक्षा पास करने के बाद व्यक्ति को 'महापुरुष' का दर्जा दिया जाता है। उनके लिए पाँच गुरु भगवान शिव, विष्णु, शक्ति, सूर्य और गणेश निर्धारित किए जाते हैं।
करना पड़ता है अपनी इच्छाओं का त्याग
कुंभ में शामिल होने वाले 13 अखाड़ों में से सबसे ज़्यादा नागा साधु जूना अखाड़े से बनाए जाते हैं। नागा साधु बनने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को अपनी सभी इच्छाओं का त्याग करना पड़ता है।
'महापुरुष' से 'अवधूत' बनने की प्रक्रिया
महापुरुष बनने के बाद अवधूत बनने की प्रक्रिया शुरू होती है। इसके लिए साधुओं को स्वयं का ही श्राद्ध करके पिंडदान करना पड़ता है। नागा साधु बनने वाले लोगों को 24 घंटे तक नग्न अवस्था में अखाड़े के ध्वज के नीचे खड़ा रहना पड़ता है। सफल होने के बाद नागा साधु का दर्जा दिया जाता है। कुंभ का आयोजन हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और प्रयागराज में किया जाता है और इन्ही चारों जगहों पर नागा साधु बनाने की प्रक्रिया होती है।
चारों जगहों पर गिरी थी अमृत की बूँदे
कुंभ और महाकुंभ के आयोजन स्थल के बारे में कहा जाता है कि इन्ही चारों जगहों पर अमृत की बूँदे गिरी थीं। तब से आज तक कुंभ और महाकुंभ का आयोजन इन्ही चार जगहों पर किया जाता है।
नागा साधुओं के होते हैं अलग-अलग नाम
आम लोगों की धारणा है कि हर जगह के नागा साधुओं को एक ही नाम से जाना जाता है, जबकि ऐसा नहीं है। अलग-अलग जगहों से दीक्षा लेने वाले नागा साधुओं को अलग-अलग नाम से जाना जाता है। प्रयागराज से दीक्षा लेने वाले साधुओं को 'नागा', हरिद्वार में दीक्षा लेने वाले साधुओं को 'बर्फ़ानी नागा', उज्जैन में दीक्षा लेने वाले साधुओं को 'ख़ूनी नागा' और नासिक से दीक्षा लेने वाले साधुओं को 'खिचड़िया नागा' कहा जाता है।
नागा साधु समय-समय पर बदलते रहते हैं अपनी जगह
नागा साधु अपने शरीर पर मुर्दे की राख को शुद्ध करके लगाते हैं। मुर्दे की राख न होने पर हवन की राख लगाते हैं। इसके अलावा नागा साधु बनने के बाद केवल ज़मीन पर सोने की अनुमति होती है। कुंभ के बाद नागा साधु कहीं गायब हो जाते हैं। नागा साधु समय-समय पर अपनी जगह बदलते रहते हैं, इसी वजह से इनकी सही स्थिति का पता लगाना बहुत मुश्किल होता है।