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    कुंभ में पहली बार निकली 'किन्नर अखाड़े' की देवत्व यात्रा, देखने के लिए उमड़ी भीड़

    कुंभ में पहली बार निकली 'किन्नर अखाड़े' की देवत्व यात्रा, देखने के लिए उमड़ी भीड़
    लेखन प्रदीप मौर्य
    Jan 08, 2019, 06:03 pm 1 मिनट में पढ़ें
    कुंभ में पहली बार निकली 'किन्नर अखाड़े' की देवत्व यात्रा, देखने के लिए उमड़ी भीड़

    हमेशा से यही माना जाता रहा है कि कुंभ में उसी अखाड़े को ज़्यादा महत्व दिया जाता है, जिसके पास नागा साधुओं की संख्या ज़्यादा होती है। नागा साधुओं की एंट्री के बाद ही कुंभ में रौनक़ आती है, लेकिन प्रयागराज में इस बार सबकुछ बदल गया है। इतिहास में पहली बार 'किन्नरों' ने अखाड़े के तौर पर, दूसरे अखाड़ों की तरह ही शाही रूप से कुंभ में पेशवाई की है। इस अद्भुत नज़ारे के गवाह हज़ारों लोग बने।

    पेशवाई में देशभर के किन्नरों ने लिया हिस्सा

    कुंभ में इस भव्य पेशवाई के दौरान आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मीनारायण के अलावा, अखाड़े की पीठाधीश्वर प्रभारी उज्जैन की पवित्रा माई, उत्तर भारत की महामंडलेश्वर भवानी माँ, अंतरराष्ट्रीय महामंडलेश्वर डॉक्टर राज राजेश्वरी, जयपुर की मंडलेश्वर पुष्पा माई उपस्थित रहीं। इसके अलावा दिल्ली की महामंडलेश्वर कामिनी कोहली, पश्चिम बंगाल की मंडलेश्वर गायत्री माई और महाराष्ट्र नासिक की मंडलेश्वर संजना माई के साथ देशभर के किन्नरों ने हिस्सा लिया।

    भव्य तरीक़े से लोगों ने किया स्वागत

    जानकारी के अनुसार हाथी, घोड़े और ऊँट पर सवार होकर जब किन्नर सन्यासी शहर की सड़कों पर दिखे तो लोगों को ख़ुद की आँखों पर यक़ीन नहीं हुआ। लोगों ने किन्नरों को ख़ूब सम्मान दिया और घर की छतों से फूल बरसाकर भव्य तरीक़े से उनका स्वागत किया। साधु-संतों से अलग किन्नर अखाड़े की पेशवाई चकाचौंध भरी थी। प्रयागराज में किन्नरों की किन्नर अखाड़े के रूप में एंट्री आसान नहीं थी, इसके लिए किन्नर अखाड़े ने लंबी लड़ाई लड़ी है।

    एंट्री के लिए किन्नर अखाड़े ने लड़ी लंबी लड़ाई

    किन्नर अखाड़े की आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी का कहना है कि, "कुंभ में एंट्री के लिए हम लोगों ने लंबी लड़ाई लड़ी और काफ़ी मेहनत और मशक़्क़त के बाद मंज़िल मिली है। यह इतिहास है प्रयागराज और उज्जैन में हमारा अखाड़ा स्थापित हुआ था।" उन्होंने आगे कहा कि, "कुंभ दर्शाता है मेरे भारत की विविधता और सनातन धर्म का विस्तार, कि वो हर एक जाति और लिंग को अपने अंदर समाता है।"

    पहली बार 2016 में अस्तित्व में आया था किन्नर अखाड़ा

    साल 2016 में उज्जैन में हुए कुंभ के दौरान किन्नर अखाड़ा पहली बार अस्तित्व में आया था। उसी दौरान किन्नर अखाड़े की विधिवत स्थापना की गई थी और लक्ष्मीनारायण को आचार्य महामंडलेश्वर नियुक्त किया गया था।

    मेला प्रशासन ने दिया किन्नर अखाड़े को हक़

    यह पहली बार है जब 13 अखाड़ों के अलावा किसी अन्य अखाड़े ने पेशवाई निकाली हो। लंबी लड़ाई के बाद किन्नर अखाड़े को कुंभ में एंट्री की इजाज़त मिली है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने किन्नर अखाड़े के ख़िलाफ़ मोर्चा शुरू किया था। कुंभ शुरू होने से पहले अखाड़ा परिषद और किन्नर अखाड़ा आमने-सामने आ गए थे। किन्नर अखाड़े ने लैंगिकता के आधार पर मेला प्रशासन से अपना हक़ माँगा और उन्हें देना पड़ा।

    मेला प्रशासन की तरफ़ से दी गई हैं VIP सुविधाएँ

    अखाड़ा परिषद किन्नर अखाड़े के ख़िलाफ़ है, लेकिन मेला प्रशासन ने किन्नर अखाड़े को VIP सुविधाएँ दी हैं। इसके अंतर्गत शिविर के लिए 25 बीघा ज़मीन, 200 स्विस कॉटेज, 200 फ़ैमिली कॉटेज टेंट, 250 अपर फ़्लाई टेंट की सुविधा दी गई है। इसके अलवा प्रवचन के लिए मैटिंग के साथ 500×500 पाइप टीन, 500 VVIP कुर्सी, 200 सोफ़ा, 250 तख़्त, 500 ट्यूबलाइट और 500 शौचालय की सुविधा की भी माँग थी, जिसमें से ज़्यादातर माँगे पूरी हो चुकी हैं।

    किन्नरों की दुनिया समझने के लिए किन्नर आर्ट विलेज का आयोजन

    बता दें कि किन्नरों की अपनी एक अलग ही दुनिया होती है और उनकी दुनिया के बारे में विस्तार से समझने के लिए कुंभ के दौरान किन्नर आर्ट विलेज बनाया गया है। इसमें चित्र प्रदर्शनी, कला प्रदर्शनी, फ़िल्में, फ़ोटो साहित्य का आयोजन किया जाएगा।

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