फली एस नरीमन: वकील समुदाय के 'भीष्म पितामह', जिन्होंने आपातकाल के विरोध में दिया था इस्तीफा
भारत के वरिष्ठ वकीलों में शुमार 95 वर्षीय फली एस नरीमन का बुधवार को निधन हो गया। उन्हें आज ही अंतिम विदाई दी जाएगी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील के रूप में अपनी पहचान बनाई और कई बड़े मामलों के कारण चर्चा में रहे। संवैधानिक मामलों के जानकार होने के साथ-साथ वह नागरिकों की स्वतंत्रता के पैरोकार भी थे। उन्हें 1991 में पद्म भूषण और 2007 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। आइए उनके बारे में जानते हैं।
नरीमन ने 70 साल से ज्यादा वकालत की
1929 में जन्मे नरीमन ने 70 साल से भी ज्यादा समय न्याय की सेवा की। कानून से स्नातक करने के बाद उन्होंने नवंबर, 1950 में बॉम्बे हाई कोर्ट से वकालत की शुरुआत की थी। वह न्यायपालिका की स्वतंत्रता के हिमायती थे, लेकिन कॉलेजियम सिस्टम में खामियों पर सवाल भी उठाते थे। 1961 में वह वरिष्ठ वकील नामित किये गए। 1972 में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में वकालत शुरू की। वे 1972 से 1975 तक भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) रहे।
आपातकाल के विरोध में नरीमन ने दे दिया था इस्तीफा
नरीमन के जीवन से जुड़ा एक किस्सा काफी मशहूर है। दरअसल, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल घोषित करने के फैसले से वह खुश नहीं थे, इसलिए उन्होंने ASG के पद से इस्तीफा दे दिया था। उनके बेटे रोहिंटन नरीमन भी वरिष्ठ वकील रह चुके हैं और सुप्रीम कोर्ट के जज हैं। नरीमन को वकील समुदाय का 'भीष्म पितामह' भी माना जाता था। वे 1991 से 2010 तक बार एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रहे हैं।
नरीमन ने लड़ा था यूनियन कार्बाइड का केस, बाद में मानी गलती
अपने 70 साल के न्यायिक कार्यकाल में नरीमन ने कई ऐतिहासिक मामले लड़े, जिन्होंने भारतीय कानून को आकार दिय। उन्होंने 1985 में यूनियन कार्बाइड कंपनी की ओर से मुकदमा लड़ा था, जो भोपाल गैस त्रासदी के लिए जिम्मेदार थी। उन्होंने कोर्ट के बाहर मामले को सुलझाने के लिए पीड़ितों को 715 करोड़ रुपये का मुआवजे देने के सौदे में मदद की थी। हालांकि, बाद में उन्होंने स्वीकारा था कि यह मुकदमा लड़ना उनकी गलती थी।
जयललिता को दिलाई थी जमानत
2014 में जब तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता को आय से अधिक संपत्ति मामले में ट्रायल कोर्ट ने 4 साल की सजा सुनाई थी, तब उनकी तरफ से नरीमन ने केस लड़ा था। सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए जयललिता को अंतरिम जमानत दे दी थी। उन्होंने नर्मदा पुनर्वास के मामले में गुजरात सरकार का प्रतिनिधित्व किया था, लेकिन ईसाइयों पर हमले और बाइबिल की प्रतियां जलाने के तुरंत बाद इस्तीफा दे दिया था।
'हॉर्स ट्रेडिंग' शब्द के थे विरोधी, बताया था घोड़ों का अपमान
देश में सांसदों-विधायकों की खरीद-फरोख्त से जुड़े कई मामले सामने आए हैं। 1980-90 के दशक में संविधान में संशोधन के बाद इस खरीद-फरोख्त को 'हॉर्स ट्रेडिंग' का नाम दिया गया था। नरीमन ने तब इस पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा था, "सांसद-विधायकों की खरीद-फरोख्त को घोड़ों से जोड़ना गलत है। घोड़े वफादार होते हैं और इंसानों की गलती के लिए हॉर्स ट्रेडिंग शब्द का इस्तेमाल किया जाना घोड़ों का अपमान है।"