रतन टाटा का पारसी रीति-रिवाज से नहीं होगा अंतिम संस्कार, जानिए कैसे निभाई जाएंगी अंतिम परंपरा
देश के दिग्गज उद्योगपति और परोपकारी रतन टाटा का अंतिम संस्कार शाम 4 बजे मुंबई में ई मोसेस रोड स्थित वर्ली श्मशान घाट पर होगा। पारसी परिवार से नाता रखने वाले रतन टाटा के शव का न तो हिंदुओं की तरह दाह संस्कार होगा और न ही मुस्लिम की तरह दफनाया जाएगा। पारसी मान्यताओं के अनुसार, धरती, वायु और जल तीनों पवित्र होते हैं, ऐसे में शव दफन करने, दाह करने और प्रवहित करने से ये दूषित होते हैं।
पारसी धर्म में कैसे करते हैं अंतिम संस्कार
पारसियों में परंपरागत रूप से पार्थिव शरीर को टॉवर ऑफ साइलेंस या 'दखमा' ले जाते हैं, जो अंतिम संस्कार के लिए बनी एक गोलाकार खोखली इमारत है। यह सिर्फ मुंबई में है। यहां गैर-पारसी नहीं आ सकते। शव को 'दखमा' के ऊपर पक्षियों के लिए रखते हैं, जहां चील, कौए, गिद्ध आकर शरीर का मांस खाते हैं और हड्डियां वहीं नष्ट हो जाती हैं। इस प्रथा को "दोखमेनाशिनी" कहते हैं। इस तरह शव को प्रकृति को वापस लौटाया जाता है।
रतन टाटा के लिए कितने निभाए गए पारसी रिवाज संस्कार
पारसी समुदाय में शव को सुबह नहलाकर नास्सेसलार द्वारा पारंपरिक पारसी पोशाक पहनाई जाती है। इसके बाद शव को सफेद 'सुद्रेह' (सूती बनियान) और 'कुस्ती' (एक पवित्र डोरी) कमर के चारों ओर पहनाया जाता है। रतन टाटा के शव के साथ कुछ अंतिम क्रियाएं पूरी करने के बाद उनको प्रार्थना कक्ष में रखा गया है। यहां पारसी रीति से 'गेह-सारनू' पढ़ा गया। इसके बाद शव के चेहरे पर सफेद कपड़ा रखकर 'अहनावेति' का अध्याय पढ़ा गया।
रतन टाटा का कैसे होगा अंतिम संस्कार
प्रार्थना कक्ष में तमाम अंतिम क्रियाएं पूरी करने के बाद उनके शव को विद्युत शवदाह गृह में रखा जाएगा, जहां बिजली से उनका अंतिम संस्कार होगा। इस तरह पारसी सिद्धांतों का पालन करते हुए रतन टाटा के शव को आग, पानी या धरती को नहीं सौंपा जाएगा बल्कि पर्यावरण के अनुकूल प्रकृति को सौंपा जाएगा। गिद्धों की संख्या घटने और शहरों में आबादी बढ़ने के बाद पारसी समाज अब इसी प्रक्रिया को अपना रहा है।
साइरस मिस्त्री का भी वर्ली में हुआ था अंतिम संस्कार
रतन टाटा के बाद 2012 में टाटा समूह के चेयरमैन बने साइरस मिस्त्री का अंतिम संस्कार भी वर्ली में विद्युत शवदाह गृह में किया गया था। साइरस की मृत्यु दिसंबर 2022 को महाराष्ट्र के पालघर में सड़क हादसे में हुई थी।
जेआरडी टाटा की पहल पर बना प्रार्थना स्थल
मंबई में दखमा के अलावा पारसियों के अंतिम संस्कार के लिए अन्य कोई स्थान नहीं था। जब अंतिम संस्कार में दिक्कत आने लगी तो जेआरडी टाटा की पहल पर 1980 में इसका निवारण हुआ। 1980 में जेआरडी ने अपने भाई बीआरडी टाटा के निधन पर मुंबई निगम से अनुकूल श्मशान घाट पूछा था, क्योंकि पारंपरिक प्रार्थना सभा में कई लोग आने थे। तब जैसे-तैसे प्रार्थना हुई, लेकिन जेआरडी की पहल पर वर्ली में प्रार्थना हॉल बना। बाद में सुधार हुआ।