पोलिया उन्मूलन कार्यक्रम में मिली सीख को कोरोना वैक्सीनेशन में कैसे इस्तेमाल कर सकता है भारत?
अगले साल की शुरुआत में कोरोना वायरस की कई वैक्सीन उपलब्ध होने की उम्मीद है। ऐसे में भारत ने जुलाई, 2021 तक लगभग 20-25 करोड़ लोगों को वैक्सीन की खुराक देने की तैयारियां शुरू कर दी है। वैक्सीन आने के बाद उसे लोगों तक पहुंचाना एक बड़ी चुनौती होगी। इस चुनौती से पार पाने के लिए भारत पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम में मिली सीख का पालन कर कोरोना वायरस से लड़ाई को आसान कर सकता है।
छह महीनों में लगभग 25 करोड़ लोगों को दो-दो खुराक देने का लक्ष्य
हाल ही में देश के स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने कहा था, "अगले कुछ महीनों में हमारे पास कम से कम एक वैक्सीन होगी और अगले छह महीनों में हमें इस देश के लोगों तक पहुंचाने की प्रक्रिया शुरू करनी होगी।" कोरोना वायरस से बचाव के लिए अभी तक विकसित की जा रही संभावित वैक्सीन्स में अधिकतर की दो खुराक देने की जरूरत होगी। इसका मतलब है कि अगले छह महीने में लगभग 40-50 करोड़ टीके लगाने पड़ेंगे।
क्या यह मुमकिन हो पाएगा है?
हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, रोटरी के भारत में पोलियो प्लस कार्यक्रम के प्रमुख दीपक कपूर कहते हैं कि यह लक्ष्य असंभव नहीं है। कपूर कहते हैं कि जब पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम शुरू हुआ था तब दुनियाभर के विशेषज्ञ यह कहते थे कि भारत इस अभियान में सफल नहीं हो पाएगा। अगर सफल होगा तो भी वह पोलियो से छुटकारा पाने वाला आखिरी देश होगा। उन्होंने कहा कि सारी चुनौतियों को पार करते हुए भारत ने पोलिया पर काबू पा लिया।
2014 में पोलिया मुक्त हुआ था भारत
भारत में पोलियो का आखिरी मामला 13 जनवरी, 2011 को आया था। उसके बाद 27 मार्च, 2014 को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भारत को पोलियो मुक्त घोषित कर दिया था। भारत की इस कामयाबी की खूब तारीफ हुई थी।
कोल्ड-चेन की क्षमता पर ध्यान देने की जरूरत
कपूर ने उम्मीद जताई कि भारत वैक्सीन को लोगों तक पहुंचाने में आने वाली मुश्किलों से पार पाने में सफल होगा। उन्होंने कहा कि वैक्सीन के लोगों तक पहुंचाने के लिए ट्रेनिंग की जरूरत होगी। साथ ही कोल्ड-चेन को को पर्याप्त मात्रा में तैयार करना होगा। कुछ वैक्सीन्स -30 डिग्री और कुछ -70 डिग्री पर रखी जाती है। भारत को -30 डिग्री वाली वैक्सीन्स के साथ जाना चाहिए क्योंकि देश में उसी क्षमता वाली कोल्ड-चेन मौजूद हैं।
स्टोरेज के मोर्चे को दुरुस्त करने में जुटी सरकार
भारत में इसके लिए तैयारी शुरू हो गई है। इसके तहत वेयरहाउस की पहचान कर वहां इलेक्ट्रॉनिक वैक्सीन इंटेलीजेंस नेटवर्क (eVIN) लगाया जा रहा है। इससे वैक्सीन की पूरी स्टोरेज डिजिटाइजल हो जाएगी। इसकी मदद से ही कोल्ड-चेन के तापमान को नियंत्रित किया जा सकेगा। इसके अलावा स्वास्थ्य केंद्रों की जियो-टैगिंग की जा रही है। साथ ही वैक्सीन स्टोर किए जाने वाले फ्रीजर में सेंसर लगाए जा रहे हैं ताकि खराबी आने पर तुरंत उनकी मरम्मत हो सके।
अफवाहों और गलत सूचनाओं से लड़ने की जरूरत
पोलियो के खिलाफ लड़ाई में भारत ने एक और सबक सीखा है कि अफवाहों और गलत सूचनाओं को तुरंत खारिज करने की जरूरत है। सोशल मीडिया के दौर में सूचनाएं कुछ ही पलों में आबादी के बड़े हिस्से तक पहुंच जाती है। ऐसे में हल्के बुखार या इंजेक्शन लगाने से होने वाली दर्द से जुड़ी गलत जानकारी वैक्सीन की सुरक्षा को संदेह के दायरे में डाल देगी। इसलिए अफवाहों को फैलने से रोकना और उनका तुरंत खंडन बहुत जरूरी होगा।
"वैक्सीनेशन को जन आंदोलन बनाने की जरूरत"
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी कहते हैं कि पोलियो की खुराक वॉलेंटियर देते थे, लेकिन कोरोना वैक्सीन के मामले में ऐसा नहीं होगा। इनकी खुराक देने के लिए स्वास्थ्यकर्मियों की जरूरत होगी। अकेला सरकारी क्षेत्र यह काम नहीं कर सकेगा। इसके लिए पोलिया उन्मूलन कार्यक्रम की तरफ साझेदारी की जरूरत होगी ताकि वैक्सीनेशन के लक्ष्यों को हासिल किया जा सके। साथ ही वैक्सीनेशन को जन आंदोलन बनाने की जरूरत है ताकि लोग आगे आकर वैक्सीन की खुराक लें।
कितना बड़ा था पोलिया उन्मूलन कार्यक्रम?
24 लाख पोलियो कार्यकर्ता, 1.5 लाख कर्मचारी, हर साल 1,000 करोड़ रुपये का बजट, हर साल 6-8 बार पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम और हर कार्यक्रम में लगभग 17 करोड़ बच्चों को दवा पिलाना। ये आंकड़े इस कार्यक्रम की विशालता दर्शाते हैं। इनके अलावा राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने पोलियो के मामलों से निपटने के लिए रैपिड रिस्पॉन्स टीमों का गठन किया था। भारत की यह मेहनत रंग लाई और देश सब चुनौतियों से पार पाते हुए पोलिया मुक्त बना था।