गुवाहाटी हाई कोर्ट ने सार्वजनिक स्थानों पर नमाज के अधिकार की याचिका को किया खारिज
असम की गुवाहाटी हाई कोर्ट ने गुरुवार को उस जनहित याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें गोपीनाथ बोरदोलोई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा के परिसर में नमाज पढ़ने के लिए अलग से जगह की मांग की गई थी। कोर्ट ने कहा कि परिसर में नमाज के लिए जगह न देने से याचिकाकर्ता के किसी भी मौलिक अधिकार का हनन नहीं हो रहा है। इससे पहले 29 सितंबर को कोर्ट ने याचिकाकर्ता से मौलिक अधिकारों को लेकर सवाल भी पूछा था।
हाई कोर्ट ने कहा- धार्मिक स्वतंत्रता का मतलब सार्वजनिक स्थान पर जगह देना नहीं हो सकता
मुख्य न्यायाधीश संदीप मेहता और न्यायाधीश कार्डक एटे की खंडपीठ ने कहा, "भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 विभिन्न संप्रदायों के लोगों को अपने धर्म को मानने, अचल संपत्ति अर्जित करने और ऐसी संपत्तियों को कानून के अनुसार प्रशासित करने की स्वतंत्रता देते हैं, लेकिन इस अधिकार को हवाई अड्डे जैसे सार्वजनिक स्थान पर नमाज करने के लिए समर्पित जगह देने तक नहीं बढ़ाया जा सकता है।"
कोर्ट ने कहा- सार्वजनिक स्थल पर कमरा न देना मौलिक अधिकार का हनन नहीं
कोर्ट ने कहा कि कोर्ट भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 द्वारा प्रदत्त असाधारण रिट क्षेत्राधिकार का प्रयोग करते हुए हवाईअड्डे परिसर में प्रार्थना करने के लिए एक कमरा आवंटित करने के लिए सरकार को निर्देश नहीं दे सकता है। कोर्ट ने कहा, "लोकप्रिय गोपीनाथ बोरदोलोई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर नमाज के लिए अलग से जगह न देने से याचिकाकर्ता के किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं हो रहा।"
याचिकाकर्ता ने क्या तर्क दिए थे?
दरअसल, याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि विभिन्न धर्मों से संबंधित यात्रियों को गुवाहाटी हवाई अड्डे से यात्रा करते समय उचित प्रार्थना स्थल नहीं मिल रहे, जो देशभर के विभिन्न हवाई अड्डों जैसे दिल्ली अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे, मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे, मंगलुरु हवाई अड्डे, अगरतला हवाई अड्डे आदि पर उपलब्ध हैं। याचिकाकर्ता ने दरगाह समिति, अजमेर बनाम सैयद हुसैन अली और रतिलाल पानाचंद गांधी बनाम बॉम्बे राज्य जैसे मामलों का हवाला दिया, जिनमें ऐसे आदेश दिए गए थे।
हाई कोर्ट पहले भी खारिज कर चुका है ऐसी याचिका
इससे पहले 29 सितंबर को भी मुख्य न्यायाधीश संदीप मेहता और न्यायमूर्ति सुस्मिता फुकन खौंड की खंडपीठ ने एक ऐसी ही याचिका को खारिज किया था। तब कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा था कि संविधान में इस अधिकार का उल्लेख कहां है कि सभी सार्वजनिक स्थलों पर एक 'प्रार्थना स्थल' होना चाहिए। कोर्ट ने कहा था, "हमारा देश एक धर्मनिरपेक्ष देश है। किसी विशेष समुदाय के लिए प्रार्थना कक्ष क्यों? इसमें जनहित कहां है, जो जनहित याचिका दाखिल की गई।"