दिल्ली हाई कोर्ट ने महिला को दी 23 हफ्ते के गर्भपात की अनुमति
दिल्ली हाई कोर्ट ने एक 31 वर्षीय महिला को 23 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति दे दी है। महिला ने कोर्ट में याचिका दायर कर रहा था कि वो अपने पति से अलग हो गई है, इसलिए उसके बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती। महिला की याचिका पर कोर्ट ने एक मेडिकल बोर्ड के गठन करने का आदेश देते हुए गर्भपात के सुरक्षित होने या न होने की रिपोर्ट मांगी थी।
क्या है मामला?
दरअसल, महिला की इसी साल मई में हुई थी। महिला का कहना है कि जून में उसे गर्भावस्था के बारे में पता चला था। महिला ने याचिका में आरोप लगाया कि ससुराल में उसके पति ने शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से प्रताड़ित किया गया। महिला ने बताया कि पति ने उसका तब भी शारीरिक उत्पीड़न किया, जब वो 3 महीने की गर्भवती थी। इसके बाद महिला अपने पति से अलग होकर मायके में रहने लगी।
कोर्ट ने क्या कहा?
पिछली सुनवाई में कोर्ट ने कहा था, "सुप्रीम कोर्ट की राय थी कि जब एक महिला अपने साथी से अलग हो जाती है तो भौतिक परिस्थितियों में बदलाव आ सकता है और उसके पास बच्चे को पालने के लिए वित्तीय संसाधन नहीं हो सकते हैं। कोर्ट AIIMS, नई दिल्ली को एक मेडिकल बोर्ड का गठन करने का निर्देश देती है, जो विचार करे कि क्या याचिकाकर्ता के लिए गर्भावस्था समाप्त करने की प्रक्रिया से गुजरना सुरक्षित होगा या नहीं।"
कोर्ट ने पति को भी बनाया पक्षकार
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि 48 घंटे के भीतर मेडिकल बोर्ड अपनी रिपोर्ट पेश करे। महिला ने याचिका में अपने पति को पक्षकार नहीं बनाया था। इस पर कोर्ट ने पति को भी मामले में शामिल करने के निर्देश दिया। बता दें कि महिला ने न तो पति के खिलाफ किसी तरह के उत्पीड़न की कोई शिकायत दर्ज कराई है और न ही तलाक की अर्जी दाखिल की है।
हाई कोर्ट ने दिया सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला
कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, यह महिला का विशेषाधिकार है कि वह अपने जीवन का मूल्यांकन करे और परिस्थिति में बदलाव के मद्देनजर कार्रवाई के सर्वोत्तम तरीके पर पहुंचे। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) कानून के नियम 3B (C) के तहत महिला के खिलाफ घरेलू हिंसा के मामलों में वैवाहिक स्थिति में बदलाव के आधार पर 24 सप्ताह तक के गर्भपात की अनुमति दी है।
न्यूजबाइट्स प्लस
गर्भपात को लेकर भारत में MTP कानून, 1971 बनाया गया है। इस कानून में 2020 में कुछ संशोधन किए गए थे और इसके तहत कुछ शर्तों के साथ अधिकतम 24 हफ्ते के भ्रूण के गर्भपात की इजाजत है। हालांकि, मेडिकल बोर्ड की सिफारिश, रेप पीड़िता और बाकी कई पहलुओं को ध्यान में रखते हुए इस अवधि को बढ़ाया भी जा सकता है। संशोधन से पहले ये अवधि 20 हफ्ते तक थी।