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    दिल्लीः 1991 में लगा 250 रुपये रिश्वत लेने का आरोप, 28 साल बाद बरी हुआ कर्मचारी
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    दिल्लीः 1991 में लगा 250 रुपये रिश्वत लेने का आरोप, 28 साल बाद बरी हुआ कर्मचारी

    लेखन प्रमोद कुमार
    June 06, 2019 | 12:38 pm 1 मिनट में पढ़ें
    दिल्लीः 1991 में लगा 250 रुपये रिश्वत लेने का आरोप, 28 साल बाद बरी हुआ कर्मचारी

    दिल्ली में रहने वाले 79 वर्षीय पूर्व नगर निगम कर्मचारी जगननाथ को 250 रुपये रिश्वत लेने के आरोप में 28 साल बाद बरी किया गया है। दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में उन्हें इस आरोप से बरी किया है। जगननाथ पर आरोप था कि उन्होंने पकड़ी गई एक गाय को छोड़ने के लिए 250 रुपये की रिश्वत ली थी। इससे पहले 2002 में एक ट्रायल कोर्ट ने उन्हें कथित तौर पर रंगे हाथ पकड़ने पर दोषी करार दिया था।

    1991 में लगा रिश्वत लेने का आरोप

    यह मामला 1991 का है। हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, तब जीतराम नामक शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि दिल्ली नगर निगम ने उसकी गाय को जब्त कर लिया। जगननाथ उस समय विभाग में बतौर मुंशी काम करते थे। CBI की भ्रष्टाचार-रोधी शाखा ने उन्हें रिश्वत की मांग करते और पैसे लेते पकड़ा था। CBI ने कहा कि कि जगन की जेब से यह रकम बरामद की गई थी। मामले में उन्हें तीन साल के लिए निलंबित कर दिया गया था।

    परिवार पर आई संकट की घड़ी

    जगननाथ के परिवार में आठ लोग है। उनके बेटे ने बताया कि इस घटना के बाद परिवार पर काफी मुश्किलें आईं। उन्हें और उनके भाई-बहनों को घर चलाने के लिए पढ़ाई के साथ-साथ काम भी करना पड़ा था।

    ट्रायल कोर्ट ने सुनाई एक साल की सजा

    यह घटना सामने आने के बाद जनगनाथ को एक ट्रायल कोर्ट ने 2002 में रिश्वत लेने का दोषी पाया और उन्हें एक साल की सजा सुनाई। इस फैसले के खिलाफ उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट में अपील की। कोर्ट ने अप्रैल 2002 में इस सजा पर रोक लगा दी। अब लगभग 17 साल बाद उन्हें 23 मई को इस मामले में बरी किया गया। अब जगननाथ को अपनी ग्रैच्युटी की चिंता सता रही है।

    जगननाथ को ग्रैच्युटी न मिलने का डर

    उन्होंने बताया, "मैं 2002 में रिटायर हो गया था, लेकिन अभी तक मुझे ग्रैच्युटी का पैसा नहीं मिला है। विभाग में केवल 10 साल तक रिकॉर्ड रखे जाते हैं इसलिए मुझे डर है कि अब वहां मेरा रिकॉर्ड भी नहीं होगा।"

    हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कही यह बात

    अदालत ने कहा कि ऐसा लगता है कि ट्रायल कोर्ट का फैसला इस बुनियाद पर था कि गाय को कैद में रखना गैर-कानूनी है। अगर ऐसा था भी तब भी जगननाथ को इस काम के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। ऐसी स्थिति में उस निगम कर्मचारी पर कार्रवाई होनी चाहिए जो गाय को पकड़कर मवेशी-खाने में लाया था। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने 28 साल पुराने मामले में जगननाथ को बरी कर दिया।

    न्याय मिलने पर खुश हैं जगननाथ

    बुढापे की वजह से मुश्किल से चल पाने वाले जगननाथ कहते है, "मैं खुश हूं कि 28 साल के संघर्ष के बाद मुझे न्याय मिला है। मुझे फंसाया गया था। अब मैं बरी हो गया हूं। मुझे खुशी होगी अगर विजिलेंस विभाग भी मेरा नाम मामले से निकाल दे ताकि मैं अपनी ग्रेच्युटी ले पाउं।" उन्होंने बताया कि ये 28 साल काफी चुनौतियों भरे रहे हैं और वो बीमार होने के बावजूद व्हीलचेयर पर बैठकर सुनवाई पर जातेे थे।

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