राष्ट्रपति के अंगरक्षकों के लिए केवल तीन जातियों के उम्मीदवारों पर विचार, कोर्ट ने मांगा जवाब
दिल्ली हाई कोर्ट ने राष्ट्रपति के अंगरक्षकों के लिए केवल तीन जातियों पर ही विचार करने के मामले में केंद्र और सेना प्रमुख से जवाब मांगा है। बता दें कि राष्ट्रपति के अंगरक्षकों की भर्ती के लिए केवल जाट, राजपूत और जाट सिख ही आवेदन कर सकते हैं। जस्टिस एस मुरलीधर और जस्टिस संजीव नरूला की पीठ ने रक्षा मंत्रालय, सेना भर्ती निदेशक आदि से भी जवाब तलब किया है। मामले की अगली सुनवाई 8 मई, 2019 को होगी।
'संवैधानिक अधिकारों का हनन'
कोर्ट ने यह जवाब हरियाणा निवासी गौरव यादव की याचिका पर मांगा है। गौरव ने 4 सितंबर, 2017 को राष्ट्रपति के अंगरक्षक पद पर हुई भर्ती को चुनौती दी है। गौरव ने कहा कि वे भर्ती के सभी मानकों पर खरें उतरते हैं, लेकिन इन तीन जातियों से नहीं होने के कारण उन्हें नौकरी नहीं मिली। उन्होंने याचिका लगाई कि यह अन्य जातियों के समानता व रोजगार के समान अवसर के संवैधानिक अधिकारों का हनन है।
कोर्ट ने नहीं सुनी थी जनहित याचिका
याचिका के मुताबिक, सरकारी कार्यालय में भर्ती के लिए केवल तीन जातियों के उम्मीदवारों से आवेदन लेना, दूसरी जातियों के साथ भेदभाव है। यह भर्ती प्रकिया दूसरे योग्य उम्मीदवारों को रोजगार से वंचित करती है। याचिका में कहा गया है कि इस तरह का पक्षपात संविधान के अनुच्छेद 14, 15(1) और 16 के प्रावधानों का उल्लंघन है। इससे पहले हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में जनहित याचिका सुनने से इनकार कर दिया था।
सेना ने सुप्रीम कोर्ट में स्वीकार किया तथ्य
भारतीय सेना ने 2013 में सुप्रीम कोर्ट में इस तथ्य को स्वीकार किया था। सेना ने कहा कि कुछ विशेषताओं के चलते सिर्फ राजपूत, जाट और जाट सिखों को ही राष्ट्रपति के अंगरक्षकों के तौर पर भर्ती किया जाता है।
लगभग 250 साल से चली आ रही है परंपरा
राष्ट्रपति के अंगरक्षकों की परंपरा लगभग 250 सालों से चली आ रही है। साल 1773 में वारेन हैंस्टिंग्स जब भारत के वायसराय जनरल बनकर आए थे, तब उन्होंने अपनी सुरक्षा के लिए यह टुकड़ी बनाई थी। इस टुकड़ी में अंगरक्षकों को घोड़ों पर तैनात किया जाता है। उस वक्त उन्होंने युद्ध कौशल में महारत रखने वाले लंबे कद के 50 जवानों को लेकर इस टुकड़ी का गठन किया था। तब से यह परंपरा आजादी के बाद भी लगातार जारी है।
बेहद खास है घोड़ों पर तैनात अंगरक्षकों की टुकड़ी
राष्ट्रपति की सुरक्षा में घोड़ों पर तैनात रहने वाली टुकड़ी की अपनी विशेषताएं हैं। इस टुकड़ी में शामिल जवानों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है। वहीं टुकड़ी में शामिल जर्मनी की खास नस्ल के घोड़े लगभग 50 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से दौड़ सकते हैं। साथ ही केवल इसी टुकड़ी के घोड़ों को लंबे बाल रखने की इजाजत है। इनके अलावा सेना की दूसरी टुकड़ियों में शामिल घोड़ों के बाल लंबे नहीं होते हैं।