पिछले साल अज्ञात स्त्रोतों से प्राप्त चंदे का 80 प्रतिशत अकेली भाजपा को, मिले 553 करोड़
चुनावी पारदर्शिता पर नजर रखने वाली संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की रिपोर्ट में सामने आया है कि पिछले साल यानी 2017-18 में सभी पार्टियों को अज्ञात स्त्रोतों से मिले चंदे का 80 प्रतिशत भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खाते में आया है। भाजपा को इतना चंदा मिलने की वजह केंद्र और ज्यादातर राज्यों में उसकी सरकार होने को माना जा रहा है। ADR ने अपने विश्लेषण में चंदे की पारदर्शिता पर सवाल खड़े किए हैं।
सभी पार्टियों को मिले लगभग 690 करोड़
ADR ने यह विश्लेषण चुनाव आयोग के पास जमा राजनीतिक पार्टियों के आयकर रिटर्न और चंदे की जानकारी के आधार पर किया है। पिछले साल सभी पार्टियों को Rs. 689.44 करोड़ का चंदा अज्ञात स्त्रोतों से प्राप्त हुआ। इसमें से Rs. 553.38 करोड़ यानि लगभग 80 प्रतिशत चंदा केवल भाजपा को प्राप्त हुआ। सभी दलों को मिले Rs. 689.44 करोड़ के चंदे में से Rs. 215 करोड़ यानि 31 प्रतिशत इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए हासिल हुए।
पिछले 14 साल में अज्ञात स्त्रोतों से मिले 8,721 करोड़
अज्ञात स्त्रोतों से प्राप्त चंदे में से मात्र Rs. 16.80 लाख ही कैश के तौर पर प्राप्त हुए। बाकी का चंदा किस तरीके से प्राप्त हुआ, इसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं है। रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 14 साल में राष्ट्रीय पार्टियों को अज्ञात स्त्रोतों से Rs. 8,721.14 करोड़ का चंदा मिला। यह आंकड़े वित्तीय वर्ष 2004-05 से 2017-18 तक के हैं। इस दौरान कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) को बॉन्ड बिक्री के जरिए Rs. 3,573.53 करोड़ का चंदा हासिल हुआ।
20,000 रुपए से कम चंदे का नहीं देना होता हिसाब
बता दें कि राजनीतिक पार्टियों को Rs. 20,000 से कम के चंदे के स्त्रोत के बारे में जानकारी देना अनिवार्य नहीं होता। यही नहीं, इलेक्टोरल बॉन्ड के रूप में चंदा देने वालों की जानकारी भी सार्वजनिक करना जरूरी नहीं है। राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे का आधे से ज्यादा हिस्सा अज्ञात स्त्रोतों से ही प्राप्त होता है। इसी चंदे को राजनीति में भ्रष्टाचार और राजनीतिक-कारोबारी गठजोड़ का जनक माना जाता है।
RTI के अंतर्गत आने को तैयार नहीं पार्टियां
केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) ने जून, 2013 में राजनीतिक पार्टियों को सूचना के अधिकार कानून (RTI) के अंतर्गत आने का आदेश दिया था। सभी मसलों पर एक-दूसरे के खिलाफ रहने वाली राजनीतिक पार्टियों ने इस मसले पर एकजुटता दिखाते हुए आज तक इस नियम का पालन नहीं किया है। ADR जैसी संस्थाएं कई बार इस पर सवाल उठा चुकी हैं, लेकिन राजनीतिक दल चंदे में पारदर्शिता लाने के लिए कोई भी कदम उठाने को तैयार नहीं हैं।