उत्तर प्रदेश: 'लव जिहाद' पर विवादित कानून के तहत एक महीने में 35 गिरफ्तारियां
'लव जिहाद' पर उत्तर प्रदेश सरकार के विवादित अध्यादेश को लागू हुए एक महीना हो गया है। 27 नवंबर को प्रभाव में आए इस अध्यादेश के अंतर्गत अब तक लगभग एक दर्जद FIR दर्ज की जा चुकी हैं और 35 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। इस दौरान इस अध्यादेश को लेकर विवाद भी हुआ है और इसके दुरुपयोग के कई मामले सामने आमने आए हैं। कई कानूनी विशेषज्ञों ने भी इस पर गंभीर सवाल उठाए हैं।
एटा में गिरफ्तार किए गए सबसे अधिक आठ लोग
उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारियों ने टाइम्स ऑफ इंडिया का बताया कि पिछले एक महीने में जिन 35 लोगों को इस विवादित कानून के अंतर्गत गिरफ्तार किया गया है, उनमें से सबसे अधिक आठ एटा जिले में गिरफ्तार किए गए। वहीं सीतापुर में सात, ग्रेटर नोएडा में चार, शाहजहांपुर और आजमगढ़ में तीन-तीन, मुरादाबाद, बिजनौर, कन्नौज और मुजफ्फरनगर में दो-दो और बरेली और हरदोई में एक-एक शख्स को गिरफ्तार किया गया।
बरेली में दर्ज किया गया था पहला मामला
इस विवादित कानून के तहत पहला मामला बरेली में दर्ज किया गया था। जिले के शरीफ नगर गांव के रहने वाले टीकाराम राठौड़ ने 22 वर्षीय उवैश अहमद पर अपनी 20 वर्षीय बेटी के साथ दोस्ती करने और धर्म परिवर्तन के लिए दबाव डालने का आरोप लगाया था। आरोपी को 3 दिसंबर को गिरफ्तार किया गया। कानून के दुरुपयोग के मामले भी देखने को मिले और पुलिस ने बिना किसी आधार के लखनऊ में एक अंतर-धार्मिक शादी को रोक दिया।
कानूनी विशेषज्ञों ने उठाए अध्यादेश पर सवाल, हाई कोर्ट पहुंचा मामला
अध्यादेश पर कई कानूनी विशेषज्ञों ने सवाल भी उठाए हैं और इसे व्यक्तिगत आजादी और धर्म परिवर्तन करने के मौलिक अधिकार के खिलाफ बताया है। हाई कोर्ट के वकील संदीप चौधरी के अनुसार, ये संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदान किए गए व्यक्तिगत स्वायत्ता और निजता के अधिकार के भी खिलाफ है। इस संबंध में इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर की गई है और कोर्ट ने राज्य सरकार को जबाव दाखिल करने को कहा है।
अध्यादेश में 10 साल तक की सजा का प्रावधान
'उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020' नामक राज्य सरकार के इस अध्यादेश में बहला-फुसला कर, जबरन या छल-कपट कर, प्रलोभन देकर या विवाह द्वारा धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए प्रावधान किए गए हैं। ऐसा करने पर 10 साल तक की सजा और 25,000 रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया है। सामूहिक धर्म परिवर्तन पर 10 साल तक की जेल और 50,000 रुपये तक के जुर्माने की सजा हो सकती है।
विवाह के लिए धर्म परिवर्तन करने से पहले लेनी होगी जिलाधिकारी की मंजूरी
उत्तर प्रदेश सरकार के इस अध्यादेश में शादी के लिए धर्म परिवर्तन करने पर पूरी तरह से रोक नहीं लगाई गई है, हालांकि इससे संबंधित नियमों को बेहद कड़ा कर दिया गया है। विवाह के लिए धर्म परिवर्तन करने के लिए विवाह से दो महीने पहले जिलाधिकारी को इसकी सूचना देनी होगी और मंजूरी मिलने के बाद ही शादी और धर्म परिवर्तन को वैध माना जाएगा। इसका उल्लंघन करने पर सजा का प्रावधान किया गया है।
आरोपों को गलत सिद्ध करने की जिम्मेदारी आरोपी की
अध्यादेश में आरोपों को गलत साबित करने की जिम्मेदारी भी आरोपी शख्स पर डाली गई है और उसे सिद्ध करना होगा कि धर्म परिवर्तन उत्पीड़न करके नहीं किया गया। इसके अलावा किसी नाबालिग और अनुसूचित जाति और जनजाति की महिला के संबंध में नियमों का उल्लंघन करने पर कम से कम तीन साल और अधिकतम दस साल की सजा का प्रावधान किया गया है। इसके साथ 25,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया जा सकता है।