#Exclusive: ट्विटर को अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं मानती कू ऐप, को-फाउंडर मयंक ने कही ये बातें
क्या है खबर?
भारत सरकार और ट्विटर के बीच पिछले महीने देखने को मिली खींचतान के बीच भारतीय ऐप 'कू' (Koo) चर्चा में रही।
कू ऐप एक माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म है, जिसे खास तौर से भारतीय यूजर्स के लिए डिजाइन किया गया है।
पिछले दिनों कई बड़े नाम और सरकारी मंत्रालय कू ऐप से जुड़े हैं। सरकार ट्विटर ऐप के बजाय कू ऐप को प्राथमिकता दे रही है।
न्यूजबाइट्स ने कू ऐप के को-फाउंडर मयंक बिदवात्का से बातचीत की। जानिए उन्होंने क्या कुछ कहा।
परिचय
क्या है कू ऐप?
कू ऐप ट्विटर का 'मेड इन इंडिया' वर्जन है।
इसमें भी ट्विटर की तरह लोगों को फॉलो किया जा सकता है और 'कू' को लाइक और 'रिकू' किया जाता है।
इसे एंटरप्रेन्योर ए राधाकृष्णन और मयंक बिदवात्का ने पिछले साल की पहली छमाही में लॉन्च किया था।
इस ऐप में भी सीमित शब्दों में अपनी बात लिखने और फोटो-वीडियो शेयर करने का विकल्प मिलता है।
कू ऐप पिछले साल सरकार के आत्मनिर्भर ऐप इनोवेशन चैलेंज की विजेता भी रही है।
मामला
कैसे चर्चा में आई कू ऐप?
किसान आंदोलन के दौरान सरकार ने ट्विटर से कुछ अकाउंट्स और ट्वीट्स हटाने को कहा था।
ट्विटर ने यह कहते हुए सरकार की ओर से चिह्नित किए गए पोस्ट नहीं हटाए कि "पोस्ट उसके नियमों का उल्लंघन नहीं करते।"
इसके बाद ट्विटर और सरकार के बीच खींचतान हुई, जिसके फलस्वरूप 'आत्मनिर्भर भारत' के चलते कू ऐप इस्तेमाल करने की मांग तेज हुई।
भारत के IT मिनिस्टर रविशंकर प्रसाद ने ट्विटर के खिलाफ कार्रवाई की बात कही थी।
भाषा
स्थानीय भाषाओं में भारतीयों के लिए है ऐप
मयंक ने बताया कि मौजूदा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स मुख्य रूप से अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल करते हैं, यही वजह है कि भारतीय यूजर्स उनसे जुड़ाव नहीं महसूस कर पाते।
मयंक ने कहा, "हमने एक ओपेन एक्सप्रेशन प्लेटफॉर्म शुरू करने का मन बनाया जहां भारत के लोग अपनी भाषा में अपनों के बीच बेझिझक अपने विचार रख सकें।"
उन्होंने कहा, "बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर हिंदी, तेलुगू, तमिल में कंटेंट कम मिलता है क्योंकि उनके टूल्स भारतीय भाषाओं में नहीं हैं।"
फीचर्स
कैसे बाकी ऐप्स से अलग है कू?
मौजूदा सोशल मीडिया ऐप्स से कू किस तरह अलग है इसके जवाब में मयंक ने कुछ फीचर्स का जिक्र किया।
उन्होंने बताया, "कू पर अकाउंट बनाते वक्त यूजर्स को भाषा चुनने के लिए कहा जाता है और सारी अकाउंट सेटिंग्स उनकी भाषा में पूछी जाती है। इसके अलावा एक बार अकाउंट सेटअप होने के बाद यूजर्स को अलग-अलग कैटेगरी में अपनी भाषा इस्तेमाल करने वाले यूजर्स दिखते हैं।"
कू पर भारतीय भाषाओं के लिए खास ट्रांसलिटरेशन कीबोर्ड दिया गया है।
तुलना
ट्विटर से तुलना का औचित्य नहीं- मयंक
ट्विटर से तुलना पर मयंक ने कहा कि ट्विटर और कू बिल्कुल अलग काम कर रहे हैं।
उन्होंने कहा, "हम प्रॉब्लम सॉल्विंग का काम कर रहे हैं और ऐसे यूजर्स को मंच दे रहे हैं, जो अपनी भाषा में दूसरों से जुड़ना चाहते हैं। ट्विटर हमारे कॉम्पिटीशन की लिस्ट में शामिल नहीं है क्योंकि उसके यूजर्स, हमारे यूजर्स से अलग हैं।"
मयंक के साफ कहा, "यह गर्व की बात है कि हमारी तुलना ट्विटर से की जा रही है।"
यूजर्स
उत्तर भारत से हैं सबसे ज्यादा यूजर्स
कू ऐप के यूजरबेस पर मयंक ने कहा, "पहले हम अपना प्लेटफॉर्म कन्नड़ में लेकर आए थे और बाद में इसे हिंदी में लॉन्च किया गया। कू ऐप पर आधा दर्जन से ज्यादा भाषाओं के यूजर्स मौजूद हैं, जिनमें सबसे ज्यादा हिंदी बोलने वाले हैं।"
भविष्य की योजनाओं का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, "हमारा लक्ष्य साल के आखिर तक 25 भाषाओं का विकल्प यूजर्स को देना है और हम करीब 97 प्रतिशत भारत को कवर करना चाहते हैं।"
भरोसा
"यूजर्स का भरोसा जीतना जरूरी"
मयंक ने माना कि ट्विटर और भारत सरकार के बीच देखने को मिली खींचतान से शुरू हुई चर्चा का फायदा कू ऐप को मिला।
उन्होंने कहा कि ट्विटर और दूसरे सोशल प्लेटफॉर्म्स पर एक्टिव लोग अब कू ऐप के बारे में जानने लगे हैं और ढेरों नए यूजर्स भी प्लेटफॉर्म से जुड़े हैं।
मयंक ने कहा, "कू जैसे प्लेटफॉर्म पर बड़े नेताओं, अभिनेताओं और हस्तियों को अकाउंट्स देखकर यूजर्स को भरोसा मिलता है और वे इससे जुड़ते हैं।"
प्राइवेसी
पूरी तरह सुरक्षित है यूजर्स का डाटा- मयंक
मयंक ने कहा कि ऐप पर यूजर्स खुद तय कर सकते हैं कि उनकी प्रोफाइल पर कौन सी जानकारी दूसरों को दिखेगी।
उन्होंने कहा, "कू एक पब्लिक सोशल नेटवर्क है, यूजर्स के प्रोफाइल पर नाम, जेंडर या ईमेल ID जैसी जानकारी बाकियों को दिखती है। यूजर्स चाहें तो अपनी प्रोफाइल में बाकियों को दिख रही जानकारी छुपा सकते हैं।"
प्लेटफॉर्म को-फाउंडर ने साफ किया कि जिस डाटा का इस्तेमाल यूजर्स लॉगिन के लिए करते हैं, वह पूरी तरह सुरक्षित है।
जिम्मेदारी
फेक न्यूज पर रोक लगाने के लिए कर रहे AI टूल का इस्तेमाल
मयंक ने कहा कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के ऊपर यूजर्स को फ्री स्पीच का मौका देने के अलावा कानून के दायरे में काम करने की जिम्मेदारी भी होती है।
फेक न्यूज और अफवाहों पर रोक लगाने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) टूल के इस्तेमाल का जिक्र भी उन्होंने किया।
मयंक ने कहा, "बेशक सोशल मीडिया यूजर्स को अपनी बातें रखने की आजादी देता है, लेकिन संविधान और कानून के दायरे में रहकर ही ऐसा किया जाना चाहिए।"