#NewsBytesExplainer: विलफुल डिफॉल्टर को लेकर RBI का सर्कुलर क्या है और क्यों हो रहा विरोध?
क्या है खबर?
8 जून को भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने एक सर्कुलर जारी किया था, जिसमें बैंकों को निर्देश दिया गया कि वे विलफुल डिफॉल्टर या लोन फ्रॉड से जुड़े लोगों और कंपनियों को फिर से लोन दें।
इसमें कहा गया है कि बैंक इस तरह के लोगों के साथ समझौता करे या बकाया राशि को बट्टे खाते में डाल सकती है। RBI के इस कदम का खूब विरोध हो रहा है।
समझते हैं पूरा मामला क्या है।
सर्कुलर
RBI के सर्कुलर में क्या है?
RBI के सर्कुलर में विलफुल डिफॉल्टर्स या लोन फ्रॉड में शामिल लोन खातों को बैंकों के साथ अपनी बकाया राशि के लिए समझौता करने की बात कही गई है।
बैंक अगर चाहें तो इस तरह के विलफुल डिफॉल्टर्स के लोन को तकनीकी तौर पर बट्टे-खाते में डाल सकते हैं।
सर्कुलर में एक बड़ी बात यह है कि विलफुल डिफॉल्टर अगर समझौते के बाद नया लोन लेना चाहते हैं तो 12 महीने के बाद फिर से लोन ले सकते हैं।
विलफुल डिफॉल्टर
ये विलफुल डिफॉल्टर क्या होता है?
विलफुल डिफॉल्टर यानी कर्ज चुकाने की हैसियत होने के बावजूद अगर कोई जानबूझकर लोन न चुकाए, तो उसे विलफुल डिफॉल्टर कहा जाता है।
आसान भाषा में समझें तो ऐसे लोग या कंपनियां, जो चाहें तो बैंक का कर्ज चुका सकते हैं, लेकिन वो जानबूझकर ऐसा नहीं करते।
जब इस तरह के व्यक्ति या कंपनी से कर्ज वापसी की उम्मीद नहीं रहती तो बैंक इस कर्जे को बट्टे खाते में डाल देते हैं।
संगठन
बैंक संगठनों ने किया विरोध
अखिल भारतीय बैंक अधिकारी परिसंघ और अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ ने RBI के इस कदम का विरोध किया है।
संगठनों का कहना है कि RBI के इस कदम से ऐसा प्रतीत होता है कि जानबूझकर लोन न चुकाने वाले लोगों को इनाम दिया जा रहा है।
संगठनों के मुताबिक, इससे न सिर्फ बैंकों की परेशानी बढ़ेगी बल्कि ईमानदार कर्जदारों के बीच गलत संदेश भी जाएगा। इससे विलफुल डिफॉल्टर से निपटने के प्रयास कमजोर होंगे।
वजह
क्या है विरोध की वजह?
विशेषज्ञों के मुताबिक, सर्कुलर में जो समझौते वाली बात कही गई है उसका मतलब लोन के निपटारे से है। इस तरह के समझौतों में बैंक को लोन की पूरी बकाया राशि और ब्याज नहीं मिलता है बल्कि आपसी सहमति से कुछ राशि तय कर ली जाती है।
इसका नुकसान ये होता है कि इससे बैंकों का नॉन परफॉर्मिंग असेट (NPA) बढ़ता है। दूसरी तरफ विलफुल डिफॉल्टर का फायदा होता है, क्योंकि उसे पूरी रकम और ब्याज नहीं चुकाना पड़ता है।
विशेषज्ञ
मामले पर विशेषज्ञों का क्या कहना है?
BBC से बात करते हुए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के पूर्व प्रोफेसर प्रोफेसर अरुण कुमार ने कहा कि विलफुल डिफॉल्टर के लिए ऐसा प्रावधान लाना सहीं नहीं लगता है।
उन्होंने कहा, "अगर मंदी की वजह से किसी ऐसी कंपनी के साथ कोई परेशानी आती है तो उनके साथ ऐसा समझौता करना समझ में आता है, लेकिन विलफुल डिफॉल्टर के साथ समझौता नहीं करना चाहिए। ऐसे मामलों में तो मुकदमा चलाया जाना चाहिए ताकि भविष्य में लोग ऐसा न करें।"
कांग्रेस
कांग्रेस ने भी सरकार को घेरा
कांग्रेस ने इस कदम को लेकर सरकार पर निशाना साधा है।
जयराम रमेश ने ट्वीट कर कहा कि RBI को ये स्पष्ट करना चाहिए कि क्यों उसने जानबूझकर कर्ज न चुकाने वालों और धोखाधड़ी से संबंधित अपने ही नियमों में बदलाव किया।
जयराम ने कहा, "ईमानदार कर्जदार जैसे किसान, छोटे और मध्यम व्यापारी, मध्यमवर्गीय लोग EMI के बोझ तले दबे हैं। उन्हें कभी भी कर्ज पर बातचीत करने या इसका बोझ कम करने का अवसर नहीं दिया जाता है।"
भगोड़े
विलफुल डिफॉल्टर्स ने बैंकों को 88,435 करोड़ रुपये का चूना लगाया
मार्च में मनीकंट्रोल में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, विलफुल डिफॉल्टर्स ने बैंकों को इस साल 88,435 करोड़ रुपये का चूना लगाया है। पिछले साल ये राशि 75,294 करोड़ रुपये थी।
सबसे बड़ी विलफुल डिफॉल्टर कंपनी गीतांजलि जेम्स लिमिटेड है, जिस पर 7,848 करोड़ रुपये बकाया है। ये कंपनी भगोड़े मेहुल चोकसी की है।
दिसंबर, 2022 तक देश में 15,778 विलफुल डिफॉल्ट खाते थे, जिनकी कुल बकाया राशि 3,40,570 करोड़ रुपये है।