
'केसरी चैप्टर 2' के वो असली हीरो, जिन्होंने जलियांवाला हत्याकांड पर ऐतिहासिक केस लड़कर रचा इतिहास
क्या है खबर?
फिल्म 'केसरी चैप्टर 2' में अक्षय कुमार ने सी शंकरन नायर का किरदार निभाया है। वो अकेले भारतीय शख्स, जिन्होंने ब्रिटेन जाकर ब्रितानी अदालत में अपने दम पर जलियांवाला हत्याकांड को लेकर एक ऐतिहासिक केस लड़ा था।
फिल्म रिलीज हो गई है और एक बार फिर इसके असली हीरो यानी शंकरन नायर चर्चा में हैं, जिन्होंने न केवल हत्याओं के खिलाफ आवाज उठाई, बल्कि ब्रिटिश साम्राज्य को भी हिलाकर रख दिया।
आइए नायर के बारे में विस्तार से जानें।
जन्म और शिक्षा
शंकरन नायक का जन्म और शिक्षा
शंकरन नायर का जन्म 11 जुलाई 1857 को ब्रिटिश राज के समय मद्रास प्रेसीडेंसी के पालघाट जिले में हुआ था।
उनके पिता ब्रिटिश प्रशासन में तहसीलदार थे, जिससे उन्हें उस समय अच्छी शिक्षा पाने का मौका मिला, जो हर भारतीय को नहीं मिल पाता था।
नायर ने मद्रास हाई कोर्ट में वकील के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की और बाद में मद्रास सरकार में एडवोकेट जनरल और हाई कोर्ट के जज बने।
आवाज
बने भारतीयों की आवाज
1904 में नायर को 'कम्पेनियन ऑफ इंडियन एम्पायर' की उपाधि मिली और वह ब्रिटिश वायसरॉय की काउंसिल में शामिल हुए। इस काउंसिल के 5 सदस्यों में नायर अकेले भारतीय थे, जो उस दौर में किसी भी भारतीय के लिए सबसे ऊंची आधिकारिक पोस्ट मानी जाती थी।
ऊंचे सरकारी पदों पर रहते हुए भी चेत्तूर ने लगातार भारतीयों के हित की आवाज उठाई और सरकारी नीतियों का भी जमकर विरोध किया था।
लड़ाई
नायर ने हत्याकांड के बाद ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ी न्याय की लड़ाई
नायर ने अंग्रेजों को उन्हीं की भाषा में जवाब दिया।
इतने बड़े पद पर होते हुए जब उन्हें 13 अप्रैल, 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड की जानकारी मिली तो उन्होंने वायसराय की परिषद से इस्तीफा दे दिया।
उनके इस्तीफे से ब्रिटिशों को झटका लगा, जिसके कारण पंजाब में मार्शल लॉ हटा दिया गया।
1922 में नायर ने 'गांधी एंड एनार्की' नाम की एक किताब लिखी, जिसमें उन्होंने माइकल ओ'डायर पर नरसंहार के दौरान अत्याचारों को बढ़ावा देने का आरोप लगाया।
परिचय
माइकल ओ'डायर कौन था?
माइकल ओ'डायर पंजाब सरकार का लेफ्टिनेंट था।
डायर ने ही जलियांवाला बाग में गोलियां चलाने का आदेश दिया था। इतिहास के इस सबसे बड़े हत्याकांड का दोषी डायर ही था। डायर न होता तो ये खौफनाक घटना भी ना होती।
यह घटना इतनी क्रूर थी कि आज भी सोचनेभर से रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
डायर भारतीयों को सबक सिखाना चाहता था। उसी के आदेश पर सैकडों भारतीयों को गोलियों से छलनी कर मौत के घाट उतारा गया था।
मानहानि का मामला
नायर ने नहीं मांगी डायर से माफी
नायर के आरोप के कारण डायर ने उन पर मानहानि का मुकदमा दायर किया, जिसकी सुनवाई लंदन के उच्च न्यायालय में हुई।
मामले की सुनवाई करने वाले न्यायाधीश खुद भारतीयता के खिलाफ थे। मामले में सर्वसम्मति से कोई फैसला नहीं हुआ था, इसलिए नायर को 2 विकल्प दिए गए। पहला ये कि वो ओ'डायर से माफी मांगें और दूसरा 7,500 पाउंड दें।
तेज-तर्रार और आत्मविश्वासी नायर डायर के आगे झुके नहीं। उन्होंने उससे माफी मांगने के बजाय दूसरा विकल्प चुना।
जानकारी
ब्रिटिश हुकूमत को खुली चुनोती देने वाले नायर
अंग्रेजी हुकूमत की ईंट से ईंट बजाने वाले नायर ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन उनके योगदान को इतिहास में वो पहचान नहीं मिली, जिसके वो हकदार थे। ब्रिटिश शासन के खिलाफ नायर के संघर्ष को उतनी प्रमुखता नहीं दी गई।
हत्याकांड
13 अप्रैल का वो काला दिन
जलियांवाला बाग भारत की आजादी के इतिहास की वो दुखद घटना है, जो 13 अप्रैल 1919 को घटना घटी थी, जिससे जलियांवाला बाग शवों से पट गया था। हर तरफ सिर्फ लाशों के ढेर थे।अंग्रेजों ने निहत्थे और मासूम भारतीयों पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई थीं। इस घटना में 1,000 से भी ज्यादा लोगों की मौत हुई थी और भारी संख्या में लोग घायल भी हुए थे।
'केसरी चैप्टर 2' नायर की बहादुरी और इसी घटना को सामने लाई है।