'अजमेर 92' रिव्यू: 250 लड़कियों के साथ हुई दरिंदगी की कहानी बयां करती है फिल्म
क्या है खबर?
पुष्पेंद्र सिंह की देश के सबसे बड़े सेक्स स्कैंडल पर बनी फिल्म 'अजमेर 92' आज विवादों के बीच रिलीज हो गई है।
फिल्म 1992 में अजमेर में युवतियों के साथ हुए जघन्य कृत्य को दर्शाती है, जिसने उन्हें आत्महत्या करने के लिए मजबूर कर दिया था।
फिल्म को लेकर मुस्लिम समाज के प्रतिनिधि और अजमेर शरीफ दरगाह कमेटी के पदाधिकारी आपत्ति जता रहे हैं तो इसे लोगों का समर्थन भी मिल रहा है।
आइए जानते हैं कैसे है फिल्म।
विस्तार
यह है फिल्म की कहानी
'अजमेर 92' 1987 से 1992 तक राजस्थान के अजमेर के कॉलेज में पढ़ने वाली 250 लड़कियों के दुष्कर्म की कहानी को बयां करती है।
इसमें दिखाया गया है कि कैसे लड़कियों को उनकी नग्न तस्वीरें वायरल करने के धमकी देकर दुष्कर्म जैसी घटना को अंजाम दिया गया।
ऐसे में लड़कियां खुदकुशी करने को मजबूर हो गईं तो अजमेर में दहशत फैल गई थी।
इस घटना के बाद न सिर्फ राजनीति हुई बल्कि पुलिस की कार्यशैली पर भी सवाल उठे थे।
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एक पत्रकार की मौत के बाद आया नया मोड़
फिल्म में दिखाया है कि पत्रकार मोहन (आकाश दहिया) पैसे ऐंठने के लिए एक लड़की की नग्न तस्वीर के साथ खबर छापता है कि लड़कियां अजमेर शहर को गंदा कर रही हैं।
लड़की उसके खिलाफ शिकायत दर्ज कराती है, लेकिन मामले के तार राजनीति से जुड़े होने के चलते मोहन को ही मौत के घाट उतार दिया जाता है।
मोहन के बाद कहानी में नया मोड़ आता है और पत्रकार माधव (करण वर्मा) इस मामले की तहकीकात शुरू करता है।
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ऐसी आगे बढ़ी कहानी
एक ओर माधव कुछ सबूत मिलने के बाद मामले का पर्दाफाश करना चाहता है तो इसकी तह तक उसकी प्रेमिका गीता ही उसे ले जाती है, जो खुद इस घटना का शिकार हुई है।
गीता SP रणजीत (राजेश शर्मा) की बेटी है, जो माधव और रिटायर्ड पुलिस अफसर (सयाजी शिंदे) के साथ मिलकर अपराधियों को सजा दिलाने की जुगत में लग जाते हैं।
वह अपने मकसद में कैसे कामयाब हुए, यह जानने के लिए आपको सिनेमाघरों का रुख करना होगा।
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पर्दे पर साफ दिखी पीड़िताओं की बेबसी
'अजमेर 92' की कहानी जितनी जानदार है, उतने ही शानदार ढंग से कलाकारों ने भी उसे अपने अभिनय के जरिए पर्दे पर दिखाया है।
राजेश एक पिता की बेबसी और पुलिस के कर्तव्य को तो पीड़िताएं अपने दर्द को इतने बेहतरीन तरीके से दर्शाने में सफल रही हैं कि कुछ सीन देखकर आपकी आंखें नम हो जाएंगी।
परिवार का साथ न मिलना और चुप रहकर सब कुछ सहने की पीड़ा उनके हाव-भाव में साफ झलकती है।
अभिनय
इन कलाकारों ने भी किया अच्छा प्रदर्शन
पत्रकार माधव के किरदार को निभाने में करण काफी हद तक सफल रहे हैं, लेकिन कुछ जगह पर उनसे और बेहतर की उम्मीद होती है।
याकूब अंसारी के किरदार में महेश बलराज ने जान डाल दी है तो नेता की भूमिका में मनोज जोशी और सयाजी का अभिनय भी काबिलेतारीफ है।
इनके अलावा सुमित सिंह, विजेंद्र काला, जरीना वहाब, शालिनी कपूर और अलका अमीन का प्रदर्शन भी शानदार है।
निर्देशक ने सभी सितारों से उनका बेहतरीन काम लिया है।
कमियां
रोंगटे खड़े कर देगी फिल्म
'अजमेर 92' के जरिए पुष्पेंद्र पीड़िताओं की कहानी दिखाने में सफल रहे, लेकिन आरोपियों की मानसिकता से वह पर्दा हटाने में चूक गए।
ऐसे गंभीर मुद्दे पर फिल्म बनाने के दौरान निर्देशक की जिम्मेदारी बढ़ जाती है, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया है।
फिल्म के कुछ सीन ऐसे हैं जो झकझोर देते हैं, जैसे लड़कियों का एक-साथ आत्महत्या करना और उनका दुष्कर्म होना।
रोंगटे खड़े कर देने वाली यह फिल्म कई मौके पर सोचने पर मजबूर कर देती है।
निष्कर्ष
देखें या न देखें?
क्यों देखें?- अगर आप गंभीर मुद्दों पर बनी फिल्में देखना पसंद करते हैं तो यह आपको पसंद आ सकती है। इसके अलावा अगर आप अजमेर का इस सेक्स स्कैंडल के बारे में जानना चाहते हैं तो इसे देखा जा सकता है।
क्यों न देखें?- अगर आपको रोमांटिक, कॉमेडी या एक्शन फिल्में देखना अच्छा लगता है या फिर आप सिर्फ मनोरंजन के लिए यह फिल्म देखना चाहते हैं तो यह आपके लिए नहीं है।
न्यूजबाइट्स स्टार- 3/5