'शिव शास्त्री बालबोआ' रिव्यू: मिडिल क्लास लोगों के सपनों को लेकर अच्छा संदेश लेकर आई फिल्म
अनुपम खेर और नीना गुप्ता की फिल्म 'शिव शास्त्री बालबोआ' 10 फरवरी को सिनेमाघरों में दस्तक दे चुकी है। इस फिल्म में लंबे समय बाद जुगल हंसराज पर्दे पर नजर आए हैं। फिल्म का निर्देशन अजयन वेणुगोपालन ने किया है। फिल्म का संदेश अनुपम की पिछली फिल्म 'ऊंचाई' के काफी करीब है। यह फिल्म भी ढलती उम्र में खुलकर जीना सिखाती है। क्या यह फिल्म अपना संदेश मजबूती से दर्शकों तक पहुंचाने में कामयाब हुई है? आइए, आपको बताते हैं।
एक सेवानिवृत्त बुजुर्ग की कहानी है फिल्म
फिल्म नौकरी से सेवानिवृत्त एक व्यक्ति, शिव शास्त्री (अनुपम) की कहानी है जो अमेरिका में अपने बेटे के पास रहने के लिए आता है। शास्त्री के जीवन में सिल्वेस्टर स्टेलोन की फिल्म 'रॉकी' का काफी प्रभाव है। अमेरिका में उसकी मुलाकात एल्सा (नीना) से होती है, जिससे जबरदस्ती एक घरेलू सहायक का काम करवाया जा रहा है। शास्त्री एल्सा को भारत वापस भेजने में मदद करने का वादा करता है, लेकिन वे दोनों एक मुसीबत में फंस जाते हैं।
सफर के बहाने यह संदेश देती है फिल्म
एल्सा और शास्त्री अनजाने में एक सफर पर निकल पड़ते हैं। यह सफर शास्त्री को सिखाता है कि उन्होंने ताउम्र अपना कोई सपना पूरा नहीं किया। वह कभी अपने लिए नहीं जी पाए। इसके बाद वह खुलकर जीने का फैसला करता है। वहीं घरेलू सहायक के रूप में काम करने वाली एल्सा पहली बार आजादी का अनुभव करती है। जिंदगी आपको कभी भी, कहीं भी पहुंचा सकती है, आपको हर जगह उसे खुलकर जीना होगा, यही फिल्म का संदेश है।
लंबे समय बाद दिखे जुगल हंसराज
फिल्म में सबसे ज्यादा स्क्रीन स्पेस अनुपम और नीना का है और इस बात में कोई दो राय नहीं है कि वे हावभाव के मामले में मंझे हुए वरिष्ठ कलाकार हैं। अनुपम और नीना के अलावा फिल्म में जुगल भी नजर आए हैं। उन्होंने एक जिम्मेदार NRI बेटे के किरदार में खुद को सहजता से ढाला है। शारिब हाशमी के हिस्से हल्की-फुल्की कॉमेडी रही। हालांकि, 'द फैमिली मैन' के बाद एक्शन भूमिकाओं से हटकर कुछ करना उनके लिए चुनौतीपूर्ण रहा।
'रॉकी' के प्रभाव में छूट गई फिल्म की अपनी भावना
आदमी नौकरी से रिटायर होता है, जिंदगी से नहीं- फिल्म इस संदेश के साथ आगे बढ़ती है। इस तरह की फिल्मों में चुनौती यह होती है कि फिल्म अपने संदेश को इमोशन के साथ दे सके, न कि सिर्फ डायलॉगबाजी से। इस मामले में फिल्म कमजोर पड़ गई। 'रॉकी' का संदर्भ इतनी बार इस्तेमाल होता है कि फिल्म भावनाओं से पकड़ खो देती है। कई मजबूत दृश्य बन सकते थे, लेकिन वे 'रॉकी' के भारी भरकम डायलॉग बोलकर निकल गए।
कई किस्सों को बेतुका जाल बन जाती है फिल्म
फिल्म में हर किरदार की एक कहानी है। शास्त्री और एल्सा के छोटे से सफर में इतना कुछ होता है कि फिल्म कई घटनाओं का बेतुका जाल बन जाती है। शास्त्री के पोते की कहानी, एल्सा के परिवार की कहानी, उसके क्रूर मालिक की कहानी, सिनेमन (शारिब) की प्रेम कहानी, कानूनी पेचिदगियां, फिल्म छोटे-छोटे कई किस्से शुरू करती है और उन्हें अधूरा छोड़कर आगे बढ़ जाती है और उनके साथ ही अधूरा रह जाता है हर किस्से का इमोशन।
फिल्म में दिखा कभी हार न मानने का एक बेहतरीन सफर
भले ही फिल्म अपनी भावनाएं प्रेरित करने में कमजोर रह जाती है, लेकिन जिंदगी और मिडिल क्लास के सपनों को लेकर एक अच्छा संदेश लेकर आई है। फिल्म की सिनेमाटोग्राफी और बैकग्राउंड म्यूजिक फिल्म का पूरा साथ देते हैं। फिल्म में कई लंबे दृश्य हैं जो सिर्फ बिना किसी संवाद के सिर्फ म्यूजिक से रोचक बने हैं। फिल्म शास्त्री के कभी हार न मानने का एक बेहतरीन सफर को दिखाती है।
देखें या न देखें?
क्यों देखें?- अगर आप अनुपम या नीना के प्रशंसक हैं तो यह फिल्म देख सकते हैं। अगर आप हर तरफ 'पठान' देख-पढ़कर थक चुके हैं और कुछ अलग देखना चाहते हैं तो इस फिल्म को समय दे सकते हैं। क्यों न देखें?- बिना मनोरंजक मसालों की स्लो फिल्में नहीं पसंद तो यह फिल्म आपको अच्छी नहीं लगेगी। यह विषय आधारित फिल्म है, आप इसका OTT पर इंतजार कर सकते हैं। न्यूजबाइट्स स्टार- 2.5/5