#NewsBytesExplainer: कैसे ऑनलाइन लीक हो जाती हैं फिल्में? ऐसे काम करती हैं तमिल रॉकर्स जैसी वेबसाइट
भारत में लगभग हर हफ्ते नई फिल्म रिलीज होती है। दर्शकों को अपने पसंदीदा सितारों की फिल्मों का इंतजार होता है। एक फिल्म पर करोड़ों रुपये दांव पर लगे होते हैं। ऐसे में जब फिल्में ऑनलाइन लीक होती हैं तो निर्माताओं को बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है। आपको बताते हैं फिल्में रिलीज होते ही लीक कैसे हो जाती हैं। आखिर फिल्म पाइरेसी से जुड़े कानून इन्हें रोकने में कामयाब क्यों नहीं हैं?
क्या होती है पाइरेसी?
कॉपीराइट एक कानूनी अधिकार है, जो किसी भी रचनाकार को उसकी मूल रचना का स्वामित्व (ओनरशिप) देता है। कॉपीराइट से संरक्षित किसी भी कंटेंट की चोरी को पाइरेसी कहते हैं। इंटरनेट के विकास के साथ पाइरेसी में खूब बढ़ोत्तरी हुई है। पहले जहां किसी फिल्म को अवैध रूप से डीवीडी में कॉपी करके बेचा जाता था, वहीं आजकल फिल्में रिलीज होने के कुछ घंटों के भीतर ही ऑनलाइन लीक हो जाती हैं।
पाइरेटेड कंटेंट के लिए मशहूर हैं ये वेबसाइट
टोरेंट पाइरेटेड कंटेंट की सबसे चर्चित और पुरानी वेबसाइट में से एक है। वर्तमान समय में तमिल रॉकर्स फिल्मों को लीक करने के लिए सबसे ज्यादा कुख्यात है। शुरुआत में यह तमिल फिल्मों को गैरकानूनी रूप से ऑनलाइन अपलोड करती थी। धीरे-धीरे इसने बॉलीवुड फिल्मों की भी चोरी शुरू कर दी। इसके अलावा कई टेलीग्राम चैनल हैं, जो पाइरेटेड फिल्मों का प्रसार करते हैं। हाल ही में एक ट्विटर हैंडल पर 'डंकी' की लाइव स्ट्रीमिंग कर दी गई थी।
क्यों नहीं होती कार्रवाई?
तमिल रॉकर्स और ऐसी अन्य वेबसाइट का संचालन विदेश से किया जाता है। जानकारी के अनुसार, इसकी टीम के सदस्य अलग-अलग जगहों पर होते हैं। इनमें से अधिकांश एक-दूसरे को नहीं जानते हैं। वे पहचान छिपाकर सिर्फ अपना काम करते हैं। आमतौर, पर इन्हें रोकने के लिए किसी भी कार्रवाई में महीने भर का समय लगता है। जब तक साइबर पुलिस इनके URL पर कार्रवाई करती है, ये अपना डोमेन बदल लेते हैं।
वेबसाइट तक ऐसे पहुंचती हैं फिल्में
फिल्में लीक करने का काम कई स्तरों पर होता है। इसका पहला कदम है, फिल्मों की रिकॉर्डिंग। ज्यादातर सिनेमाघरों में रिकॉर्डिंग रोकने के पुख्ता इंतजाम नहीं हैं। ऐसे में इस काम में शामिल लोग सिनेमाघरों में दर्शक बनकर पहुंचते हैं और छिपाकर फिल्में रिकॉर्ड करते हैं। वे इसे एक खुफिया वेबसाइट पर लोड करते हैं। पाइरेटेड कंटेंट वाली वेबसाइटों के पास इन साइट का एक्सेस होता है। वे इसे यहां से डाउनलोड करके अपनी साइट पर अपलोड कर देती हैं।
कैसे करती हैं कमाई?
इस तरह की वेबसाइटों की कमाई का मुख्य जरिया हैं इन पर दिखाए जाने वाले विज्ञापन। प्रतिबंधित साइट, सट्टेबाजी ऐप, एडल्ट साइट जैसे विज्ञापनों को गूगल ब्लॉक कर देता है। ऐसे में पाइरेसी कंटेंट वाली वेबसाइट इन कंपनियों का सहारा बनती हैं। ये कंपनियां इन वेबसाइट पर विज्ञापन के बदले मोटा पैसा देती हैं। पाइरेटेड फिल्मों के बीच में भी इन विज्ञापनों को शामिल कर दिया जाता है। ऐसे में दोनों पार्टियों को मुनाफा होता है।
निर्माताओं के हक में क्या कहता है कानून?
कॉपीराइट एक्ट 1957 किसी रचयिता की बौद्धिक संपदा (इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी) के अधिकार के संरक्षण के लिए बनाया गया था। इसमें लेखन, ड्रामा, संगीत, कला, फिल्म और साउंड रिकॉर्डिंग के स्वामित्व के संरक्षण का प्रावधान किया गया है। कॉपीराइट कंटेंट के गैरकानूनी प्रसार पर 2 साल की जेल और जुर्माने का प्रवधान है। हालांकि, इंटरनेट के दौर में ऐसे अपराधियों को पकड़ना मुश्किल काम है। इसलिए अक्सर निर्माता दर्शकों से पाइरेसी रोकने की अपील करते नजर आते हैं।
लीक हुईं साल की बड़ी फिल्में
इस साल आईं 'पठान', 'जवान', 'एनिमल' जैसी बड़ी फिल्में रिलीज होने के कुछ ही समय में पायरेटेड साइट्स पर लीक हो गईं। टेलीग्राम पर भी इन फिल्मों को खूब साझा किया गया। ऐसे में बड़े बजट की इन फिल्मों के निर्माताओं को नुकसान उठाना पड़ा।