कैसे रिलीज होते ही लीक हो जाती हैं फिल्में? जानिए पायरेसी का पूरा खेल
क्या है खबर?
सुनने में पायरेसी भले ही छोटा सा शब्द लगे, लेकिन इससे मनोरंजन इंडस्ट्री को हर साल करोड़ों रुपये का नुकसान होता है।
आज लगभग हर फिल्म रिलीज के बाद पायरेसी का शिकार होती है। इसे रोकने के लिए कई कड़े कदम उठाए जा चुके हैं, लेकिन इस पर लगाम लगती नहीं दिख रही। पायरेसी ने बॉलीवुड निर्माताओं की नाक में भी दम कर रखा है।
इंडस्ट्री के लिए सिरदर्द बन चुकी पायरेसी का पूरा खेल क्या है, आइए जानते हैं।
परिभाषा
पायरेसी है क्या?
पायरेसी का मतलब होता है गीत, संगीत या फिल्मों की अवैध कॉपियां बनाना और उन्हें मुफ्त में लोगों तक मुहैया कराना। इसका सीधा सा मतलब चोरी करना है।
किसी के कॉपीराइट कंटेंट को बिना अनुमति के इस्तेमाल करना या बेचना पायरेसी ही है। जिन वेबसाइटों पर पायरेसी की जाती है, उन्हें पायरेटेड वेबसाइट कहा जाता है।
वही वेबसाइट, जिन पर फिल्में रिलीज होते ही लोगों के लिए उपलब्ध करा दी जाती है, वो भी मुफ्त में।
माध्यम
फिल्में कैसे लीक हो जाती हैं?
एक फिल्म के प्री-प्रोडक्शन से लेकर पोस्ट प्रोडक्शन तक की प्रक्रिया में सैकड़ों लोग शामिल होते हैं। ऐसे में कुछ लोग चंद पैसों के लिए फिल्म को ऑनलाइन लीक करने में पायरेसी करने वालों की मदद करते हैं।
सिनेमाघरों में रिलीज हुई फिल्म को लीक करने में आम लोगों की भी बड़ी भूमिका होती है। ये लोग सिनेमाघरों से फिल्में रिकॉर्ड कर पायरेटेड साइटों को भेजते हैं, वहीं प्रतिस्पर्धी निर्माता भी एक-दूसरे की फिल्में लीक कराते हैं।
जानकारी
OTT पर आई फिल्म लीक करना आसान
फिल्में दो तरीकों से रिलीज होती हैं, सिनेमाघरों में और OTT पर। OTT पर आई फिल्मों को लीक करना सिनेमाघरों की अपेक्षा आसान है। किसी सॉफ्टवेयर की मदद से OTT प्लेटफॉर्म से फिल्म डाउनलोड करके मुफ्त में देखने के लिए उपलब्ध करा दी जाती है।
स्टूडियो स्टाफ
फिल्म स्टूडियो स्टाफ का भी होता है हाथ
रिलीज से पहले फिल्म की स्क्रीनिंग होती है। स्क्रीनिंग जिस स्टूडियो में होती है, उसके प्रबंधक, संचालक या स्टाफ के साथ पायरेसी करने वाले समूहों के साथ समझौता होता है।
समूह के सदस्य स्टूडियो कर्मचारी की पहचान के साथ वहां मौजूद होते हैं और स्क्रीनिंग के वक्त फिल्म को चुपके से रिकॉर्ड कर लेते हैं।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, इस काम के लिए स्टूडियो स्टाफ को एक लाख रुपये तक का भुगतान किया जाता है।
अन्य तरीका
सेंसर बोर्ड कॉपी भी है एक जरिया
जब फिल्मों को सेंसर बोर्ड सर्टिफिकेशन के लिए दिया जाता है तो वहां से भी ये लीक हो जाती हैं। आज की तारीख में कोई भी फिल्म एकसाथ कई देशों में रिलीज होती है।
अब जिन देशों में भी निर्माताओं को फिल्म रिलीज करानी है, वहां के सेंसर बोर्ड से इसे पास करवाना होता है।
इसके लिए प्रिव्यू की कॉपी हर देश में भेजी जाती है। ऐसे में विदेश से फिल्मों को लीक करने का काम आसान हो जाता है।
जानकारी
इन फिल्मों की सेंसर बोर्ड कॉपी हुई लीक
नवाजुद्दीन सिद्दीकी की फिल्म 'मांझी: द माउंटेन मैन', 'बजरंगी भाईजान' और 'उड़ता पंजाब' जैसी कई फिल्मों की सेंसर बोर्ड कॉपी ऑनलाइन लीक हो चुकी है। 'मांझी: द माउंटेन मैन' तो अपने तय वक्त से करीब 20 दिन पहले ही ऑनलाइन लीक हो गई थी।
शुरुआत
भारत में कब शुरू हुई पायरेसी?
पायरेसी की शुरुआत 1980 के दशक में हुई, जब देश में वीडियो कैसेट रिकॉर्डर (VCR) आया। तब फिल्में देखने का एकमात्र जरिया सिनेमाघर थे।
फिल्में रिलीज होते ही लोग सिनेमाघर पहुंचते थे, लेकिन फिर VCR की मदद से सिनेमाघरों में आईं फिल्मों की कॉपी बेची जाने लगी।
खर्च और टिकट की लंबी लाइनों से बचने के लिए लोग घर पर बैठकर फिल्में देखने लगे।
इसके बाद आई CD/DVD की वजह से इसको और बढ़ावा मिला।
रफ्तार
डिजिटल दौर में और तीखे हुए पायरेसी के तेवर
डिजिटल इंडिया के इस दौर में मनोरंजन जगत में काम कर रहे लोगों की रफ्तार जितनी तेज है, उससे कहीं ज्यादा तेज मनोरंजन का अवैध धंधा करने वालों की रफ्तार है।
पहले जहां सिनेमाघरों में चलती फिल्म का वीडियो बनाकर पायरेसी की जाती थी, वहीं अब फिल्मों के सीधे OTT पर आने के बाद पायरेसी के मामले बढ़े हैं।
डिजिटल के दौर में फिल्मों की सेंधमारी आसान हो गई है, क्योंकि ऑनलाइन आसानी से फिल्में कॉपी पेस्ट हो जाती हैं।
परिचय
सबसे बड़ा गिरोह है तमिलरॉकर्स
तमिलरॉकर्स पायरेटेड कंटेट का जाना-माना ठिकाना है, जो पिछले 10-12 सालों में तेजी से उभरा है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, 2011 के आसपास यह समूह सामने आया था।
शुरुआत में यह इतना चर्चित नहीं था, क्योंकि यह सिर्फ तमिल फिल्में अपलोड करता था। इसकी लोकप्रियता तब चरम पर पहुंची, जब यह अन्य भाषाओं की फिल्मों की पायरेटेड कॉपी उपलब्ध कराने लगा।
इस पायरेसी वेबसाइट पर एक वेब सीरीज 'तमिल रॉकर्स' भी आ चुकी है, जो सोनी लिव पर है।
जानकारी
पायरेसी की आग में पेट्रोल का काम कर रहा टेलीग्राम
पहले VCR/CD/DVD कॉपी खरीदनी पड़ती थी, लेकिन टेलीग्राम ने इस प्रक्रिया को सबसे ज्यादा आसान बना दिया है। यूं तो टेलीग्राम एक मैसेजिंग ऐप है, लेकिन इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल पायरेटेड फिल्में देखने और प्रसारित करने के लिए किया जा रहा है।
कमाई
पायरेटेड वेबसाइटों की कमाई कैसे होती है?
पायरेटेड साइटों की असल कमाई विज्ञापनों से होती है। इनके पास ट्रैफिक इतना होता है कि हर दिन इनकी लाखों रुपये की कमाई होती है। ज्यादा कमाई के लिए इन पर ज्यादा विज्ञापनों का इस्तेमाल होता है।
यही वजह है कि पायरेटेड वेबसाइटों पर इतने विज्ञापन होते हैं कि फिल्म डाउनलोड करना मुश्किल हो जाता है।
पिछले साल हुए एक अध्ययन में सामने आया कि पायरेटेड फिल्में दिखाने वाली वेबसाइटें हर साल विज्ञापन से लगभग 10,000 करोड़ रुपये कमाती हैं।
जानकारी
क्या पायरेटेड साइटों से फिल्में डाउनलोड करना सही है?
पायरेसी गंभीर अपराध है। कॉपीराइट एक्ट 1957 सेक्शन 63 के तहत पायरेसी करते पकड़े जाने पर 50,000 से 3 लाख रुपये तक का जुर्माना और तीन साल की जेल की सजा का प्रावधान है।
पायरेटेड फिल्में देखने, डाउनलोड करने और बांटने पर भी जेल और जुर्मान की सजा है।
पायरेटेड साइटों पर फिल्म देखना या डाउनलोड करना अपराध की श्रेणी में आता है। अगर आप पायरेटेड साइट का इस्तेमाल करते पकड़े जाते हैं तो पुलिस आपको गिरफ्तार कर सकती है।
जानकारी
इंडस्ट्री को हुआ हजारों करोड़ का नुकसान
2020 में कोरोनाकाल के दौरान पायरेसी 62 प्रतिशत बढ़ गई। USIBC की रिपोर्ट के मुताबिक, एंटरटेनमेंट और मीडिया इंडस्ट्री को इससे 22,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। भारत दुनिया में पायरेसी करने वाला अमेरिका और रशिया के बाद तीसरा सबसे बड़ा देश है।