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    'मिसेज चटर्जी वर्सेज नॉर्वे' रिव्यू: मां के किरदार में दमदार लगीं रानी मुखर्जी
    'मिसेज चटर्जी वर्सेज नॉर्वे' रिव्यू

    'मिसेज चटर्जी वर्सेज नॉर्वे' रिव्यू: मां के किरदार में दमदार लगीं रानी मुखर्जी

    लेखन मेघा
    Mar 17, 2023
    06:00 pm

    क्या है खबर?

    रानी मुखर्जी पिछले काफी समय से फिल्म 'मिसेज चटर्जी वर्सेज नॉर्वे' को लेकर सुर्खियों में थीं। फिल्म का ट्रेलर रिलीज होने के बाद से ही इसे दर्शकों की ओर से जबरदस्त प्रतिक्रिया मिल रही थी।

    आशिमा छिब्बर के निर्देशन में बनी यह फिल्म 17 मार्च को सिनेमाघरों में दस्तक दे चुकी है।

    साल 2021 में आई 'बंटी और बबली 2' के बाद एक मां के किरदार में हुई रानी की वापसी दमदार है।

    आइए जानते हैं कैसी है यह फिल्म।

    कहानी

    सच्ची घटना पर है आधारित

    फिल्म की कहानी सागरिका चटर्जी की असल जिंदगी पर आधारित है, जो उनकी किताब 'द जर्नी ऑफ अ मदर' से ली गई है।

    सागरिका अपने पति और बच्चों के साथ नॉर्वे में रहती थीं, जहां नॉर्वे की चाइल्ड वेलफेयर सर्विस ने उनके बच्चों को अपनी कस्टडी में ले लिया था।

    सागरिका पर आरोप था कि वह एक अच्छी मां नहीं हैं और उनका मानसिक संतुलन भी ठीक नहीं है, जिस वजह से वह बच्चों को ध्यान रखने में असमर्थ हैं।

    कहानी

    यह है फिल्म की कहानी

    फिल्म में रानी देबिका चटर्जी के किरदार में नजर आई हैं, जो अपने पति अनिरुद्ध (अनिर्बान भट्टाचार्य) के साथ नॉर्वे में बच्चों, शुभ और शुचि के साथ रहती है।

    जैसा की आम भारतीय परिवार में होता है, देबिका भी उसी तरह अपने बच्चों का पालन-पोषण कर रही है, लेकिन हाथ से खाना खिलाना, बच्चों को एक ही बिस्तर पर सुलाना या काला टीका लगाना, उनके लिए मुसीबत ले आता है और बच्चों को उनसे दूर कर दिया जाता है।

    अभिनय

    रानी ने अपने कंधों पर उठाई फिल्म

    फिल्म का दारोमदार पूरी तरह से रानी के कंधों पर है। अपने बच्चों से बिछड़ने के बाद एक बेबस मां के किरदार में वह बेहतरीन लगी हैं।

    एक अनजान देश में पति के साथ के बिना ही वह टूटी-फूटी अंग्रेजी के सहारे अपने बच्चों को वापस पाने के लिए हर संभव कोशिश करती है।

    हर सीन में रानी दमदार लगी हैं, लेकिन पति के थप्पड़ मारने पर देबिका का वापस से उसे थप्पड़ जड़ने वाला सीन काबिल-ए-तारीफ है।

    अन्य कलाकार

    सर्भ और गौरी ने छोड़ी छाप

    फिल्म में कलाकारों का चयन शानदार है। यूं तो पूरी ही फिल्म में रानी आकर्षण का केंद्र रहती हैं, लेकिन आखिरी सीन में जिम सर्भ और बालाजी गौरी बेहतरीन लगते हैं।

    दोनों ही सितारे अदालत में अपनी बयानबाजी के दौरान दर्शकों के जहन में छाप छोड़ने में सफल रहे हैं।

    इसके अलावा पूर्व सांसद वृंदा करात के किरदार में नीना गुप्ता का कैमियो भी अच्छा है। वह दो-तीन जगह नजर आती हैं, लेकिन शानदार लगती हैं।

    कमी

    यहां चूकी फिल्म

    फिल्म में बांग्ला से हिंदी और फिर हिंदी से नॉर्वेजियन और अंग्रेजी में होने वाले संवाद कहानी में थोड़ा अवरोध पैदा करते हैं।

    लेखक समीर सतीजा, राहुल हांडा और आशिमा बच्चों के माता-पिता से अलग होने के बाद उनके बारे में भूल जाते हैं और वह नजर नहीं आते।

    इतना ही नहीं, घरेलू हिंसा के विषय को बस छूकर यूं ही छोड़ दिया गया है और रानी की मदद करने वाली नंदिनी भी बीच से ही गायब हो जाती है।

    गाने 

    म्यूजिक और स्क्रीनप्ले

    फिल्म के गाने सुनने में तो काफी अच्छे हैं, लेकिन बंग्ला में होने की वजह से वह हिंदी के दर्शकों पर खास प्रभाव नहीं डाल पाते।

    अमित त्रिवेदी हर बार अपने गानों से दर्शकों का दिल जीतने में सफल रहते हैं, लेकिन इस बार कुछ कमी लगती है।

    इसके अलावा स्क्रीनप्ले भी थोड़ा बेहतर हो सकता था। साथ ही कुछ ऐसे सीन भी हैं, जो नहीं भी होते तो कोई फर्क नहीं पड़ता। ऐसे में उन्हें हटाया जा सकता था।

    निष्कर्ष

    देखें या न देखें?

    क्यों देखें?- रानी की अदाकारी से सजी इस फिल्म में आपको एक मां के अपने बच्चों के प्रति अपार प्रेम की कहानी दिखने को मिलेगी। रानी के प्रशंसक इसे देखकर बिल्कुल भी निराश नहीं होंगे। इसे पूरे परिवार के साथ देखा जा सकता है।

    क्यों न देंखें?- भावुक करने वाली फिल्में पसंद नहीं है या आप रानी के प्रशंसक नहीं हैं, तो इसे छोड़ा जा सकता है।

    न्यूजबाइट्स स्टार- 3/5

    जानकारी

    न्यूजबाइट्स प्लस

    सागरिका के बच्चों को 2011 में नॉर्वे की चाइल्ड वेलफेयर सर्विसेज ने उनसे छीन लिया था। इसके बाद विदेश मंत्रालय के हस्तक्षेप बाद वह बच्चों को वापस पाने में सफल रही थीं। इसमें भारत की पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भी मदद की थी।

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