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    'मैं अटल हूं' रिव्यू: वाजपेयी बन 'अटल' दिखे पंकज त्रिपाठी, यहां चूकी फिल्म 
    जानिए कैसी है 'मैं अटल हूं'

    'मैं अटल हूं' रिव्यू: वाजपेयी बन 'अटल' दिखे पंकज त्रिपाठी, यहां चूकी फिल्म 

    लेखन मेघा
    Jan 19, 2024
    03:37 pm

    क्या है खबर?

    पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जैसी महान शख्सियत की जिंदगी को रूपहले पर्दे पर उतारना आसान काम नहीं है, लेकिन राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता निर्देशक रवि जाधव ने इस कठिन चुनौती को स्वीकार किया।

    आज (19 जनवरी) जाधव वाजपेयी की बायोपिक 'मैं अटल हूं' लेकर आए हैं और पंकज त्रिपाठी जैसे उम्दा अभिनेता को उनके किरदार में ढाल दिया।

    आइए जानते हैं कि देश के 10वें प्रधानमंत्री वाजपेयी के सफर को कितनी खूबसूरती से दर्शाया गया और इसमें कितनी चूक हुई।

    कहानी

    अटला के अटल बिहारी वाजपेयी बनने तक का सफर

    'मैं अटल हूं' की कहानी 1999 से शुरू से होती है, जहां प्रधानमंत्री वाजपेयी (पंकज) पाकिस्तान की हरकतों को लेकर सैन्य दलों से बातचीत में जुटे हैं।

    इसके बाद यह धीरे-धीरे आगे बढ़कर वाजपेयी के बचपन में ले जाती है, जहां वह अटला थे और स्कूल में भाषण भी नहीं दे पाते थे।

    ऐसे में पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी (पीयूष मिश्रा) उनका यह डर दूर करते हैं और फिर उनके पीछे कानून की पढ़ाई के लिए कानपुर पहुंच जाते हैं।

    काहनी

    वाजपेयी की जिंदगी के महत्वपूर्ण पलों को दिखाती है फिल्म

    फिल्म वाजपेयी के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के निडर कार्यकर्ता बन देश की सेवा करने से लेकर उनके प्रधानमंत्री बनने तक के सफर को दिखाती है।

    इसमें कॉलेज के दिनों में उनकी राजकुमारी (एकता कौल) के साथ प्रेम कहानी के साथ दिखाया गया कि कैसे वे दीन दयाल उपाध्याय से मिले और फिर श्यामा प्रसाद मुखर्जी के करीबी बन गए।

    इसमें पोखरण, लाहौर बस यात्रा और कारगिल युद्ध समेत कई महत्वपूर्ण घटनाओं को शामिल किया गया है।

    अभिनय

    वाजपेयी बन पंकज ने दिखाया अपना अद्भुत अभिनय 

    फिल्म की सबसे अद्भुत बात है वाजपेयी के रूप में पंकज का अभिनय, जो इसकी खामियों पर भी पर्दा डालता है।

    पहले सीन में वाजपेयी बने पंकज थोड़े अटपटे लगते हैं, लेकिन किरदार की लय पकड़ने के बाद वह पूरी तरह से उसमें ढल जाते हैं।

    वाजपेयी की प्रेमिका राजकुमारी के किरदार को एकता ने बड़ी ही सुंदरता से जिया है। उनका किरदार फिल्म से दर्शकों को मिला ऐसा तोहफा है, जो अंत तक याद रह जाता है।

    प्रदर्शन

    साथी कलाकारों का कैसा रहा प्रदर्शन?

    वाजपेयी के पिता के किरदार में मिश्रा का प्रदर्शन अच्छा है, लेकिन वह अपनी छाप छोड़ने में कामयाब नहीं होते।

    लाल कृष्ण आडवाणी बन अभिनेता राजा रमेशकुमार सेवक ने वाजपेयी संग अपनी दोस्ती को शानदार तरीके से निभाया है। हालांकि, सुषमा स्वराज के किरदार में गौरी सुखतंकर और इंदिरा गांधी के किरदार में पायल कपूर का अभिनय कमजोर लगता है।

    इनके अलावा सहायक कलाकारों में दया शंकर पांडे, राजा रमेशकुमार, प्रमोद पाठक और हर्षद कुमार ने अच्छा काम किया है।

    निर्देशन

    कैसा रहा जाधव का निर्देशन?

    'मैं अटल हूं' की अवधि 2 घंटे 20 मिनट है इसलिए जाधव के सामने सभी बड़ी चुनौती थी कि वो वाजपेयी के जीवन के किन महत्वपूर्ण पलों को फिल्म में शामिल करेंगे।

    उन्होंने ऋषि विरमानी के साथ फिल्म लिखी और वाजपेयी के व्यक्तित्व को निष्पक्ष अंदाज में बिना महिमामंडन के दर्शाने की कोशिश की, जिसमें वे सफल भी रहे।

    हालांकि, फिल्म का पहला भाग बिखरा-सा लगता है, लेकिन दूसरे भाग में पंकज ने अपनी अदाकारी से समा बांध दिया।

    कमियां

    कई जगह हुई चूक

    2 घंटे में ज्यादा से ज्यादा कहानी कहने के चक्कर में निर्देशक से कई जगह पर चूक हो गई।

    फिल्म में कई ऐसे पहलु हैं, जहां ऐसा लगता है कि कुछ विषयों को बस छूकर बीच में ही अधूरा छोड़ दिया गया।

    जैसे वाजपेयी के कॉलेज के दिन, राम मंदिर विवाद, RSS में उनकी भूमिका, पंडित नेहरू संग मुलाकात, राष्ट्र धर्म पत्रिका में उनका काम और कारगिल युद्ध के पास से फिल्म गुजरकर तेजी से आगे बढ़ जाती है।

    कमी

    पहला भाग करेगा निराश

    फिल्म का पहला भाग काफी धीमी गति से आगे बढ़ता है और इसे देखते हुए ऐसा लगता है कि किसी इतिहास की किताब के पन्ने पलट रहे हैं, जो कुछ समय के बाद बोर करने लगते हैं।

    ऐसे में अगर आप इतिहास या राजनीति में रुचि नहीं रखते हैं तो आपका फिल्म से संपर्क बीच-बीच में टूटता रहेगा।

    हालांकि, पंकज इस फिल्म की ऐसी कड़ी है, जो अपने प्रदर्शन से बार-बार दर्शकों का ध्यान आकर्षित करने में सफल रहते हैं।

    जानकारी

    संगीत नहीं दिखा पाया कमाल 

    'मैं अटल हूं' का संगीत अलग-अलग संगीतकारों ने तैयार किया है, जो ज्यादा प्रभाव नहीं डाल सका। हालांकि, वाजपेयी की कविताओं का इस्तेमाल शानदार ढंग से किया गया है। सिनेमाटोग्राफी की बात करें तो लॉरेंस डिकुन्हा का काम अच्छा रहा है।

    निष्कर्ष

    देखें या नहीं देखें?

    क्यों देखें?- अपनी खामियों के बावजूद 'मैं अटल हूं' वाजपेयी की कहानी कहने का एक ईमानदार प्रयास है, जिसमें पंकज का शानदार प्रदर्शन है। इससे आपको वाजपेयी जैसी अद्भुत शख्सियत के बारे में कुछ अनसुनी कहानी जानने को मिलेंगी।

    क्यों न देखें?- अगर आपको राजनीतिक विषय पर बनी फिल्में पसंद नहीं हैं तो यह आपको कतई रास नहीं आएगी। इसका पहला हिस्सा काफी धीमा है, जो शुरुआत में ही आपका मन इससे हटा देगा।

    न्यूजबाइट्स स्टार- 2.5/5

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