'14 फेरे' रिव्यू: हल्के-फुल्के अंदाज में एक गंभीर विषय को छूती है फिल्म
विक्रांत मैसी, कृति खरबंदा, गौहर खान, विनय पाठक और जमील खान जैसे कलाकारों के अभिनय से सजी फिल्म '14 फेरे' 23 जुलाई को ZEE5 पर रिलीज हो चुकी है। देवांशु सिंह के निर्देशन में बनी इस सोशल कॉमेडी फिल्म की कहानी मनोज कलवानी ने लिखी है। इस अनोखी शादी का अंदाज कितना गुदगुदाता है, यह जानने के लिए पढ़िए फिल्म का रिव्यू। इसके बाद आप खुद तय कर सकते हैं कि यह फिल्म आपको देखनी चाहिए या नहीं।
प्रेमी जोड़े के आसपास घूमती है फिल्म की कहानी
फिल्म की पूरी कहानी बिहार के लड़के संजू (विक्रांत मैसी) और राजस्थान की लड़की अदिति (कृति खरबंदा) की प्रेम कहानी के इर्द-गिर्द घूमती है। दोनों की मुलाकात दिल्ली के कॉलेज में होती है, दोस्ती होती है और फिर धीरे-धीरे प्यार परवान चढ़ता है। दोनों लिव-इन में रहने लगते हैं, लेकिन पेंच फसता है शादी में। दरअसल, दोनों के परिवार की रूढ़िवादी सोच आड़े आती है। वो परिवार, जिनके लिए प्रतिष्ठा और परम्परा बच्चों की खुशी से बढ़कर है।
दो शादियों के ताने-बाने में उलझाए रखती है फिल्म
एक ओर संजू के पिता बेटे की शादी के लिए घर पर लड़की देख रहे हैं, दूसरी तरफ अदिति के पिता लव मैरिज के नाम से भड़क उठते हैं। हालांकि, दोनों भागना नहीं चाहते, क्योंकि उन्हें पता है कि ढूंढकर गोली मारी जा सकती है। वे विकल्प तलाशते हैं कि कुछ ऐसा किया जाए, जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे। दोनों शादी के लिए क्या तिकड़में बिठाते हैं, यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।
फिल्म में कैसा है कलाकारों का अभिनय?
यह कहना गलत नहीं होगा कि फिल्म की पूरी कहानी विक्रांत मैसी अपने कंधों पर ढोते हुए आगे बढ़ते हैं। रोमांस, कॉमेडी और इमोशनल मेलोड्रामा में विक्रांत अपने हाव-भाव के साथ खरे उतरते हैं। कृति को देख ऐसा लगा जैसे वह ऐसे किरदारों में बस हीरोइन की खानापूर्ती कर रही हैं। नकली मां के रूप में गौहर खान ने अपने बेहतरीन अभिनय का परिचय दिया है। विनय पाठक, जमील खान और विनीत कुमार भी अपने किरदार में असर छोड़ते हैं।
क्या निर्देशन की कसौटी पर खरी उतरी फिल्म?
हिंदी सिनेमा में अब तक ऐसी कई कहानियां पर्दे पर दिखाई जा चुकी हैं, जिनमें झूठी शान और सामाजिक प्रतिष्ठा के नाम पर प्यार की बलि चढ़ जाती है। इस मायने में देवांशु के निर्देशन में बनी यह फिल्म थोड़ा हटकर है। देवांशु ने समाज की सोच पर तमाचा मारते हुए एक हल्की-फुल्की कॉमेडी फिल्म बनाई है, जो मनोरंजन के पैमाने पर निराश नहीं करती। एक घंटे और 51 मिनट की यह फिल्म कहीं भी ज्यादा बोर नहीं करती।
ये हैं फिल्म की खामियां
फिल्म की विषयवस्तु पुरानी है, वही नकली मां-बाप बनाने का फॉर्मूला पहले भी फिल्मों में दिख चुका है। निर्देशन में कसावट है, लेकिन कहीं-कहीं पर आपको कंफ्यूजन हो सकता है। कुछ हिस्सों पर फिल्म अपनी पकड़ छोड़ती दिखती है। यह शुरुआत से अच्छी चलती है, लेकिन अंत थोड़ा मजा किरकिरा कर देता है। इसका क्लाइमैक्स हड़बड़ी में खत्म कर दिया गया। संगीत ठीक-ठाक है। हालांकि, कहानी के किरदारों के हिसाब से इसे और बेहतर तरह से बुना जा सकता था।
देखें या ना देखें?
'14 फेरे' में विक्रांत का किरदार बेहद खूबसूरती से लिखा गया है, जो ना सिर्फ अच्छा बॉयफ्रेंड, बल्कि एक अच्छा भाई और एक आदर्श बेटा भी है, जिसे शादी के साथ अपने परिवार की भी चिंता है। फिल्म में गंभीर मुद्दा उठाया गया है, लेकिन इसमें भारी-भरकम उपदेश या बड़ी-बड़ी बातें नहीं की गई हैं। फिल्म में सामाजिक जटिलताओं को रोमांस और कॉमेडी के साथ बुना गया है, जो इसे दर्शनीय बनाता है। हमारी तरफ से फिल्म को तीन स्टार।